.....मैं हूँ मजदूर मेरा दर्द न जानें कोय, नहीं कम हुई प्रवासी मजदूरों की मुश्किलें, पांच दिनों से पुलिस व डीएम के नम्बर पर ट्राई कर रहा चन्दौली का युवक

.....मैं हूँ मजदूर मेरा दर्द न जानें कोय, नहीं कम हुई प्रवासी मजदूरों की मुश्किलें, पांच दिनों से पुलिस व डीएम के नम्बर पर ट्राई कर रहा चन्दौली का युवक

                                                         By:हरवंश पूर्वांचली                    Purvanchal News Print
लखनऊ: जहां-तहां दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूर अपने घर पहुंचने के लिये कुछ भी करने को तैयार हैं. हाई-वे पर पुलिस खड़ी है तो बचने के लिये रेलवे ट्रेक के सहारे ही अपने गंतव्य की ओर बढ़ने का फैसला करने को मजबूर हैं.चन्दौली जनपद के धानापुर सहित क्षेत्रों के सैैकड़ों मजदूर इस समय दूसरे राज्य में फंसे हुए है, यह पिछले 5 दिनों से उत्तर प्रदेश चन्दौली पुलिस के मोबाइल नम्बर पर पंजीकरण के लिए ट्राई कर है. लेकिन अभी तक बात नहीं हुई. इनका कहना है कि थक हार कर साइकिल से ही निकलने को मजबूर हैं, उसका मोबाइल नम्बर- 7266 88 2140 है. इस तरह की कहानी किसी एक की नहीं है, तमाम ऐसे युवक हैं जो घर आने के लिए परेशान हैं, मगर उन्हें कोई रास्ता नहीं दिख रहा है.
सच तो यह है कि सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी मजदूरों के पलायन का सिलसिला थम नहीं रहा है .                                                      पंजाब , हरियाणा और दिल्ली से मजदूर रेल की पटरियों के सहारे यूपी और बिहार लिए निकल पड़े हैं. इनका कहना है सड़कों और हाईवे से गुजरते हुए पुलिस का डंडा खाना पड़ता है और क्वॉरेंटाइन होने का भी अंदेशा रहता है. इसके अलावा सड़कों की भूलभुलैया उलझने से बेहतर सीधी जाती इन पटरियों के सहारे अपनी मंजिल पर पहुंच जाए. रास्ते में पड़ने वाले स्टेशनों से इनकी पानी की व्यवस्था हो जाती है और गांव वाले इन्हें भोजन करा देते हैं. जिससे उनकी यात्रा में कुछ सहूलियत हो जाती है.                                                कड़ी धूप होने पर पेड़ों की शीतल छाया सुकून देती है. ये सुबह और रात भर चलते हैं जिस रेल की पटरी ने कुछ महीने पहले जीवन को पटरी पर लाने के लिए बड़े गांव की तरफ रुख किया था आज उसी रेलवे ट्रैक को पकड़कर मजदूर पैदल ही घर लौट रहे हैं. आज मजदूरों की ज़िंदगी पटरी से उतर गई है. दिल्ली से चलकर यूपी के गोरखपुर को जाने वाले मजदूर  प्रमोद पाठक का कहना है कि पेट में भूख है, जेब में पैसे नहीं है, ऊपर से गांव में परिवार परेशान है. स्थिति यह है कि मरता क्या न करता, जान है तो जहान है. कहते हैं कि उन्होंने डीएम गोरखपुर आफिस में फोन किया तो लखनऊ के किसी मैडम का नम्बर मिला. जब उनसे अपनी परेशानी बताया तो अपना पर्सनल नम्बर बोलकर काट दिया. दूसरे राज्यों से निकलने वाले हर मजदूर की एक ही कहानी है कि उसे घर पहुंचना है.लॉक डाउन में इन मजदूरों ने जो दर्द मिला है उसे बयां करना इनके लिए इतना आसान नहीं है. कहीं मकान मालिकों ने ताला बंद कर दिया तो कहीं मालिकों ने रोजगार और तनख्वाह देने से मना कर दिया. अब इनका यही कहना है कि उसके लिए दिन दूर है पर अंधेर नहीं जैसे तैसे आज नहीं तो कल वह घर पहुंच ही जाएगा.

इन मजदूरों की परेशानी को देखकर इनके दर्द को कम करने वाले मददगार भी इनको देखकर खाने के पैकेट बनवा कर भोजन की व्यवस्था करने में जुट गए. 30 साल के सुनील खारी पैर से विकलांग हैं फिर भी इनके जज्बे को सलाम है. सुनील अपनी गाड़ी में खाने के पैकेट भरवा कर इन मजदूरों को रेलवे ट्रैक पर ही बांटने पहुंच गए.