कविता: तुम्हारे और मेरे भीतर है....।

कविता: तुम्हारे और मेरे भीतर है....।

Hindi Samachar- साहित्य

कविता: तुम्हारे और मेरे भीतर है अब भी

कवियत्री लता प्रासर

एक बच्चा कुलबुलाता हुआ
तुम्हारे और मेरे भीतर है अब भी

वह मांगता है अपने लिए 
मासूमियत भरा एहसास के क्षण
चाहता है रूठने पर मनाता रहे कोई

एक बच्चा कुलबुलाता हुआ
तुम्हारे और मेरे भीतर है अब भी

एक सच्ची अनूभूति सहलाती है
तुम्हारे और मेरे मन को 
टूटे हुए खिलौनों की याद दिला जाता
वो चोर वो सिपाही धमाचौकड़ी करता हुआ
तुम्हारे और मेरे भीतर है अब भी

एक बच्चा कुलबुलाता हुआ
तुम्हारे और मेरे भीतर है अब भी

दादी-नानी की हिदायतों में
खुद को घोलना कठिन था
कठिन तो अब भी है
नई पीढ़ी की सीढ़ी सम्हालना
जरा सम्हल के भी लड़खड़ा जाना
और लड़खड़ाते हुए सम्हलने की कोशिश करना
दूर तक दिल की गहराइयों में बसी नन्हीं शरारतें
तुम्हारे और मेरे भीतर हैं अब भी

एक बच्चा कुलबुलाता हुआ
तुम्हारे और मेरे भीतर है अब भी

तोतले से शब्द और पोपली मुस्कान
अनायास बचपन की दहलीज पर ले जाती है
गहरे दुख दर्द को परे धकेल कर
झुरमुटों से झांकते सूर्य की तरह 
आता है तुम्हारा प्रकाश मेरी ओर
थिर जल की भांति आंचल में लपेटकर
बचा पाने की कोशिश में कुछ छटपटाहटें
तुम्हारे और मेरे भीतर है अब भी

3एक बच्चा कुलबुलाता हुआ
तुम्हारे और मेरे भीतर है अब भी

प्रलय कभी प्रेम का
न हुआ है न होगा कभी
थाम लिया है वक्त ने पतवार
धरती के कोने-कोने से गूंजती प्रेम लहरियां
आपस में समाहित होकर सागर से महासागर बनेंगी
टूटे फ़ूटे कड़वे मीठे अनुभवों का पुलिंदा
खुलने की कोशिश में तुम्हारे और मेरे भीतर है अब भी

एक बच्चा कुलबुलाता हुआ
तुम्हारे और मेरे भीतर है अब भी

कवियत्री
लता प्रासर
पटना बिहार।                                         7277965160

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