कहा जाता है कि मनुष्य परिस्थितयों का गुलाम होता है , मगर भारतीय जूनियर हॉकी टीम के खिलाड़ी शारदानंद ने परिस्थितियों को कभी अपने सपनों की उड़ान में बाधा नहीं बनने दिया।
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परिस्थितियां भी नहीं रोक पाई शारदानन्द की उड़ान |
लखनऊ /Purvanchal News Print। कहा जाता हैं कि मनुष्य परिस्थितयों का गुलाम होता है , मगर भारतीय जूनियर हॉकी टीम के खिलाड़ी शारदानंद ने परिस्थितियों को कभी अपने सपनों की उड़ान में बाधा नहीं बनने दिया।
अपने जीवन में आर्थिक तंगी को देखा ही नहीं बल्कि उसको सहा भी है, बावजूद भारतीय जूनियर हॉकी टीम के खिलाड़ी शारदानंद की कहानी आज के युवाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत है।
पारिवारिक स्थिति के बारे में बताय जाता है कि शारदानंद के पिता गंगा प्रसाद तिवारी होमगार्ड है। पिता खुद मानते हैं कि उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह अपने बेटे की खेल की सारी जरूरतें पूरी कर सकें, लेकिन शारदानंद में बचपन से हॉकी खेलने का ऐसा जुनून था कि उसने कभी भी अपना हौसला टूटने नहीं दिया। शारदानंद ने अपने माता-पिता और दो भाई और एक बहन के साथ दो कमरे के मकान में रहते हुये हॉकी के प्रति अपने जुनून को बराबर जारी रखा।
उसके घर के पास बना स्टेडियम उनके इस जुनून को पूरा करने में अहम भूमिका निभाता आया है। इसके अलावा भी शारदानंद के इस संघर्ष में उनके कोच और सीनियर ने बहुत ही मदद किया। जिसकी वजह से वह आज जूनियर एशिया कप - 2023 के फाइनल में पाकिस्तान को हराने वाली भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा बन सका । जूनियर एशिया कप - 2023 टूर्नामेंट में उन्होंने कई गोल दागे।
आज शारदानंद तिवारी भारतीय हॉकी स्टार के रूप में जाने और पहचाने जा रहे हैं, लेकिन उनके यहां तक पहुंचने की यात्रा संघर्षों भरी हुई है। सात साल की उम्र से जब शारदानंद ने हॉकी खेलना शुरू किया था। उस समय परिवार की माली हालत काफी ख़राब थी, फिर भी पिता गंगा प्रसाद तिवारी जितना कर सकते थे, उतना अपने बेटे के लिए करते रहे , लेकिन बेहतर खेल के लिए जरूरतें भी बढ़ रही थीं। इसी बीच स्टेडियम के कोच राशिद ने शारदानंद को खेलते हुये देखा। जिसके बाद उन्होंने शारदानंद की हेल्प शुरू कर दी।शारदानंद के मदद में कुछ दोस्तों ने भी अपना भरपूर योगदान दिया है।
यही नहीं शारदानंद हॉकी के प्रति अपने लगाव को अंजाम तक पहुंचाने के लिए एक पैकेजिंग की दुकान पर कुछ दिनों तक नौकरी की थी । महज 700 रूपये के लिए वह रात में पैकिंग का काम करते और दिन में हॉकी खेलते रहे ।
इतना ही नहीं शारदानंद खेल में इतना मशगूल हो गये कि उन्हें कभी समय का ध्यान ही नहीं रहता था, उस समय कुछ लोग तो उनके पिता से कहते कि उनका लड़का बिगड़ चूका है। जरा ध्यान रखा करिये, लेकिन पिता को अपने बेटे पूरा भरोसा था। जिसका नतीजा आज सबके सामने आया है। आज गंगा प्रसाद के बेटे शारदानंद की लोग मिशाल देते फिर रहे हैं।