अब लोग गो-पालन से लेकर बत्तख, मूर्गी, बकरी पालन करने लगे हैं। जिससे उनकी आर्थिक हालत भी सुधरती है।
लखीसराय: कृषि आज भी हाशिए पर रहने वाले परिवारों के लिए स्थिर आय का साधन है। लेकिन हाल ही में रुझान बदल गया है। अब लोग गो-पालन से लेकर बत्तख, मूर्गी, बकरी पालन करने लगे हैं। जिससे उनकी आर्थिक हालत भी सुधरती है।
खासकर इस क्षेत्र में, महिलाएं भी काम कर रही हैं। लखीसराय में भी महिलाएं अब आय का स्रोत खोजने लगी हैं।
आज हम एक ऐसी महिला की बात करेंगे जो बकरी पालती है और इससे पैसा भी कमाती है। लखीसराय जिले के दरियापुर गांव की रहने वाली यह महिला वंदना कुमारी है। अपने और अपने परिवार के लिए काम करती है।
वंदना कुमारी ने बताया कि परिवार की स्थिति बकरी पालन शुरू करने के बाद बदल गई है। पहले रोजाना काम करना था। वह सिर्फ प्रतिदिन 200 से 300 रुपये कमा पाती थी। यह भी नहीं था कि रोजाना काम मिल जाएगा।
वंदन ने बताया कि लोगों ने देसी बकरियों की जगह सिरोही और ब्लैक बंगाल बकरियों को पालना शुरू कर दिया है। हम फिलहाल पच्चीस बकरियों को पाल रहे हैं। उन्होंने बताया कि सिरोही नस्ल की बकरियां देसी बकरियों से अधिक दूध देती हैं और साल में दो बार बच्चे देती हैं। दूध बेचने से भी अच्छा मुनाफा मिलता है।
वंदना ने बताया कि उन्होंने साहूकारों से ब्याज पर पैसे लेकर दो बकरियों से शुरूआत की थी। आज उन्हें पच्चीस बकरियां हैं। इससे सालाना दो लाख रुपये मिलते हैं। वंदना ने कहा कि एक बकरे की कीमत 10 हजार तक होती है।
पति जय हिन्द कुमार का भी पूरा सहयोग मिल रहा है। पति भी पानीपूरी बेचते हैं और अपने दो बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं। वंदना ने बताया कि जीवन में सुधार करने के लिए निरंतर प्रयास करते हुए जीवन में सुधार करते हैं। अब पूरे गांव के लोग वंदना कुमारी की कार्यशैली से बहुत प्रभावित हैं।
खासकर इस क्षेत्र में, महिलाएं भी काम कर रही हैं। लखीसराय में भी महिलाएं अब आय का स्रोत खोजने लगी हैं।
आज हम एक ऐसी महिला की बात करेंगे जो बकरी पालती है और इससे पैसा भी कमाती है। लखीसराय जिले के दरियापुर गांव की रहने वाली यह महिला वंदना कुमारी है। अपने और अपने परिवार के लिए काम करती है।
वंदना कुमारी ने बताया कि परिवार की स्थिति बकरी पालन शुरू करने के बाद बदल गई है। पहले रोजाना काम करना था। वह सिर्फ प्रतिदिन 200 से 300 रुपये कमा पाती थी। यह भी नहीं था कि रोजाना काम मिल जाएगा।
वंदन ने बताया कि लोगों ने देसी बकरियों की जगह सिरोही और ब्लैक बंगाल बकरियों को पालना शुरू कर दिया है। हम फिलहाल पच्चीस बकरियों को पाल रहे हैं। उन्होंने बताया कि सिरोही नस्ल की बकरियां देसी बकरियों से अधिक दूध देती हैं और साल में दो बार बच्चे देती हैं। दूध बेचने से भी अच्छा मुनाफा मिलता है।
दस हजार रुपये का एक बकरा
वंदना ने बताया कि उन्होंने साहूकारों से ब्याज पर पैसे लेकर दो बकरियों से शुरूआत की थी। आज उन्हें पच्चीस बकरियां हैं। इससे सालाना दो लाख रुपये मिलते हैं। वंदना ने कहा कि एक बकरे की कीमत 10 हजार तक होती है।
पति जय हिन्द कुमार का भी पूरा सहयोग मिल रहा है। पति भी पानीपूरी बेचते हैं और अपने दो बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं। वंदना ने बताया कि जीवन में सुधार करने के लिए निरंतर प्रयास करते हुए जीवन में सुधार करते हैं। अब पूरे गांव के लोग वंदना कुमारी की कार्यशैली से बहुत प्रभावित हैं।