सिक्किम के राज्यपाल महामहिम लक्ष्मण आचार्य जी का जनपद चंदौली में प्रथम आगमन पर जिस तरह से स्थानीय लोगों ने सम्मान प्रकट किया, उसको देखते हुए उनके हृदय के भाव को समझा जा सकता है| उन्होंने हर साल की भांति राज्यपाल होते हुए भी सैयदराजा के शहीदी दिवस पर आना नहीं भूले |
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सिक्किम के राज्यपाल महामहिम लक्ष्मण आचार्य जी |
👉हर साल की भांति राज्यपाल होते हुए भी सैयदराजा के शहीदी दिवस पर आना नहीं भूले महामहिम लक्ष्मण आचार्य जी
👉राज्यपाल होते हुए बॉर्डर के गांव -गांव , घर-घर जाकर पूछता हूं कि केंद्रीय योजनाओं का लाभ मिला की नहीं
By-जयराम राय / Purvanchal News Print
चंदौली । सिक्किम के राज्यपाल महामहिम लक्ष्मण आचार्य जी का जनपद चंदौली में प्रथम आगमन पर जिस तरह से स्थानीय लोगों ने सम्मान प्रकट किया, उसको देखते हुए उनके हृदय के भाव को समझा जा सकता है| उन्होंने हर साल की भांति राज्यपाल होते हुए भी सैयदराजा के शहीदी दिवस पर आना नहीं भूले |
उन्होंने प्रेस वार्ता के दौरान अपने दिल की बात खुलकर कहीं, कहा - सामाजिक जीवन जीने वाला व्यक्ति आज प्रोटोकॉल के तहत सामान्य आदमी से मिलना भूल गया है। कहते हैं कि इस प्रोटोकॉल ने मेरा जीना हराम कर दिया है। मैं एक सामाजिक जीवन जीते जीते समाज में लोगों के दरवाजे पर जाकर उनके दुख-सुख का साथी था। लेकिन आदरणीय मोदी जी ने जो काम मुझे सौंपा की, उसको मैं इनकार नहीं पाया।
लेकिन, इस प्रोटोकॉल के जाल को तोड़ते हुए मैंने अपने सामाजिक सेवा की बुनियाद को संचालित करते हुए मैंने केंद्रीय योजनाओं को गांव-गांव घर-घर पहुंची है कि नहीं उसको देखने के लिए मैं राज्यपाल होते हुए भी बॉर्डर के गांव गांव , घर घर जाकर पूछता हूं कि आपको किसान सम्मान निधि मिला कि नहीं सुमंगला योजना का लाभ आपको मिल रहा है कि नहीं उज्जवला योजना का लाभ आपको मिल रहा है कि नहीं यह सब छोटी-छोटी चीजों को लेकर मैं राज्यपाल भवन से निकलकर सामाजिक जीवन जी रहा हूं नहीं तो वहां मेरा दम घुट जाता। अब ऐसी स्थिति में मुझे धरातल पर केंद्रीय योजनाओं का लाभ मुझे देखने को मिल रहा है |
धन्य है यह युग और धन्य है हमारा जीवन| इस समय जो मैं जीवन जी रहा हूं, जो नहीं होने वाली घटना ,वह मैं देख रहा हूं मेरा जीवन धन्य हो गया ।एक खून कतरे का बहा नहीं और अयोध्या में श्री राम मंदिर बनकर तैयार है। एक खून का कतरा बाहर नहीं आया की 370 धारा काश्मीर से समाप्त हो गई।आज हम चंद्रयान पर अपनी उपलब्धि का झंडा गाड़े हुए हैं ।
लेकिन ऐसा विधि के व्यवस्था के ही अनुसार हुआ है कि हममें तुममें खड़क खंभ में हर जगह भगवान है। परमात्मा ने हमारे वैज्ञानिकों को वह युक्ति बता दी जो आज हम सफलता के झंडे चांद पर गढ़ दिए हैं ।और जो वहां से अदृश्य धातुओं को मिट्टी के माध्यम से वहां के वातावरण को समझने का मौका मिल रहा है।इस अमृत काल में यादों को संजोकर रखने का मौका मिल रहा है। ऐसा मौका इस पृथ्वी पर जितने भी देश हैं उनके वैज्ञानिकों को यह नसीब नहीं हुआ।
आज देश की आजादी के लिए बलिदान देने वालों के कारण ही हम आजादी के हवा में सांस ले रहे हैं जिन बलिदानियों ने अपनी माटी के लिए अपना बलिदान दिया उन शहीदों को इस आशा के साथ कि उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया। हम उनको आज भी नमन कर रहे हैं। याद कर रहे हैं। हृदय से उनको पुष्पांजलि अर्पित कर रहे हैं। ताकि उनका बलिदान होना धन्य हो जाए। देश के प्रति मरने मिटने का जो सपना था वह सच हो रहा है। आज इस धरा पर जीवन जी रहे हर इंसान को करीब से जानने की जरूरत है।
पंडित दिन दयाल जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा हूं। "सच की दस्तक" पत्रिका के विमोचन पर भी मैंने कहा कि समाज को सच के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि देश के विकास के पथ पर चंद्रयान-3 की सफलता इसका प्रमाण है। विकास में सबको योगदान देना चाहिए। महामहिम लक्ष्मण आचार्य जी ने अपने हृदय के भाव को खोलते हुए देश के प्रति जान देने वालो के लिए सम्मान अर्पित करने का वचन भी पूरा करते नजर आ रहे हैं ।
पूरे देश में सांसदों की बैठक हो रही थी। जिसमें प्रधानमंत्री मोदी जी ने पूरे सांसदों के बीच में लक्ष्मण आचार्य जी सिक्किम के राज्यपाल का नाम लेते हुए उन्होंने कहा कि आप लोग इनसे सीख लीजिए कि केंद्रीय योजनाओं का प्रचार-प्रसार हकीकत में समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचा है कि नहीं आप उनके रास्ते पर चलकर दिखाएं और इकलौता राज्यपाल इस भारतवर्ष का वही है जो राज्यपाल भवन से निकलकर बॉर्डर के गांव में बॉर्डर के रक्षा करने वाले सैनिकों से जाकर रूबरू होते हैं और उनके दुख-सुख के साथी होते हैं|
आप उनका अनुसरण करें, ऐसा मोदी जी ने मेरे बारे में कहा | जबकि मुझे यह पता ही नहीं था। इस प्रकार के वक्तव्य देते हुए आदरणीय लक्ष्मण आचार्य जी ने अपने राज्यपाल और सामाजिक जीवन को जीने की जो कला उन्होंने निकाला है, उनकी अभिव्यक्ति साफ जाहिर करती है कि सामाजिक जीवन जीने वाला व्यक्ति समाज को ,देश को बलिदानियों को सर्वोच्च शिखर पर देखना चाहता है।सामाजिक क्रिया क्रम को उन्होंने गप थिरैपी की संज्ञा दी।