कोल जाति को आदिवासी का दर्जा दिलाने के सवाल पर राबर्ट्सगंज सांसद की रही चुप्पी : अजय राय

कोल जाति को आदिवासी का दर्जा दिलाने के सवाल पर राबर्ट्सगंज सांसद की रही चुप्पी : अजय राय

कोल जाति को आदिवासी का दर्जा दिलाने के लिए राबर्ट्सगंज सांसद अगर संसद में मांग उठाते तो आज कोल जाति को वनाधिकार कानून का लाभ मिल जाता | 

आईपीएफ राज्य कार्य समिति सदस्य अजय राय 


🔹 कोल जाति को आदिवासी का दर्जा मिला होता तो मिलता वनाधिकार कानून का लाभ 

 purvanchalnewsprint.co.in/ चन्दौली (उतर प्रदेश)  | कोल जाति को आदिवासी का दर्जा दिलाने के लिए राबर्ट्सगंज सांसद अगर संसद में मांग उठाते तो आज कोल जाति को वनाधिकार कानून का लाभ मिल जाता और जंहा बेदखली से बच जाते वहीं पुश्तैनी जमीन पर बसे जमीन का मालिकाना हक मिल जाता | 

उक्त बातें आज मुसाखांड़ के कोल बस्ती में आईपीएफ द्वारा चुनाव ऐजेण्डा 2024 के तहत संवाद जनसंपर्क करते हुए आईपीएफ राज्य कार्य समिति सदस्य अजय राय ने कहा | 

उन्होंने कहा कि आदिवासी कोल जाति को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के लिए आईपीएफ के राष्ट्रीय संस्थापक अखिलेंद्र प्रताप सिंह ने सचिव जनजाति कार्य मंत्रालय को पत्र भी लिखा था और उसकी प्रतिलिपि प्रधानमंत्री व सचिव सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय को भेजा था लेकिन भाजपा सरकार ने कोई पहल नहीं लिया लेकिन वहीं कोल जाति से ही आने वाले भाजपा के सहयोगी दल के सांसद ने कोल जाति को आदिवासी दर्जा दिलाने के लिए संसद में एक भी शब्द नहीं बोले जबकि 1965 में भारत सरकार के सामाजिक सुरक्षा विभाग द्वारा गठित लोकर कमेटी ने अपनी संस्तुतियों में उत्तर प्रदेश में लाखों की संख्या में रहने वाली कोल आदिवासी जाति समेत धागंर (उरांव), कोरवा, मझवार, भूइयार को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की संस्तुति की थी पर आज तक इन जातियों को केन्द्र में बनी भाजपा और कांग्रेस की सरकारों ने आदिवासी होते हुए भी आदिवासी का दर्जा नहीं दिया।

 जबकि कोल जाति तो ऐतिहासिक रूप से आदिवासी जाति रही है। इसीलिए देश के अन्य प्रातों मध्य प्रदेश, बिहार, उडीसा, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र में इस जाति को अनुसूचित जनजाति में रखा गया है। इस जाति को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने के सम्बंध में उ0 प्र0 सरकार द्वारा समय-समय पर प्रस्ताव भी केन्द्र सरकार को भेजे गए है। कोल समेत कोरवा, मझवार, धागंर आदि आदिवासी जाति को अनुसूचित जनजाति का घोषित करने का प्रस्ताव भी उ0 प्र0 सरकार के हरिजन एवं समाज कल्याण विभाग द्वारा लिया गया है। 

 बाबजूद इसके इन जातियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की कार्यवाही भारत सरकार द्वारा नहीं की गयी। परिणामतः आज इन जातियों को संसद द्वारा बने अनुसूचित जनजाति व अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 (2007) का लाभ नहीं मिल पा रहा है। इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत अनुसूचित जनजाति का न होने के कारण तीन पीढ़ी या 75 वर्ष पूर्व का प्रमाण मांगा जा रहा है। यदि इन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा भारत सरकार ने दे दिया होता तो महज 13 दिसम्बर 2005 पूर्व के कब्जे के आधार पर ही इन जातियों को अपनी पुश्तैनी वन भूमि पर अधिकार प्राप्त हो जाता। इन जातियों के आदिवासी के दर्जे को आईपीएफ चुनाव का मुद्दा बना रहा हैं


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