पूर्वांचल की बात : पूर्वांचल की बदहाली का कौन जिम्मेदार, अलग राज्य ही विकल्प !

पूर्वांचल की बात : पूर्वांचल की बदहाली का कौन जिम्मेदार, अलग राज्य ही विकल्प !

आप जान लें कि यह पूर्वांचल, यूपी का एक ऐसा हिस्सा है| जिसे यहां के नेताओं ने दिल्ली पहुंचने का एक आसान रास्ता समझ रखा है | यही वजह हैं, इसे अलग राज्य का दर्जा देने से डरते हैं |

पूर्वांचल की बात : पूर्वांचल की बदहाली का कौन जिम्मेदार, अलग राज्य ही विकल्प !

इस दुनिया में आए मुझे स्कूली जन्म तिथि के हिसाब से तक़रीबन 56 साल हो चुका है। अपनी बात आगे बढ़ाऊ। इसके पहले आपका अपना छोटा सा परिचय दे दूं। मैं पैदा हुआ यूपी के वाराणसी जिले में अब यह जिला चंदौली है। 

तहसील की बात करें तो सकलडीहा है और गांव बरठी है। इसी गांव के देश को आजाद कराने वाले 85 सेनानियों ने (तथ्यात्मक रूप से) अंग्रेजों से मोर्चा संभाला था। रेलवे लाइन उखाड़ दिया था। जेल गए व यातनाएं सही। पटना रेल खंड के सकलडीहा रेलवे स्टेशन से सटे हुए उनकी याद में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्मारक स्तंभ बना हुआ है।

 मेरे गांव के पीछे के बीच से पटना बक्सर पंडित दीनदयाल उपाध्याय डीडीयू खंड की रेल गुजरती है। गांव की आबादी 5 हजार से अधिक है। गांव के दोनों तरफ एक सड़क सैयदराजा होकर बिहार कोलकाता को जाती है और दूसरी सड़क धीना - जमानियां मार्ग है जो गाजीपुर को जोड़ती है। खैर, यही मेरी जन्मभूमि है, कभी इस पर विस्तृत चर्चा करूंगा। 

दरअसल, मुझे  "पूर्वांचल पर बात " करनी है। आप जान लें कि यह पूर्वांचल, यूपी का एक ऐसा हिस्सा है। जिसे यहां के नेताओं ने दिल्ली पहुंचने का एक आसान रास्ता समझ रखा है। 


हम उस क्षेत्र की बात कर रहे हैं जहां कभी स्वतंत्र भारत के पहली संसद में गाजीपुर जिले ( छोटकी काशी कहा जाता है) के कांग्रेस के तत्कालीन सांसद स्व. विश्वनाथ सिंह गहमरी, जो इस इलाके पूर्वांचल की व्यथा, वेदना को कहते हुए संसद में रो पड़े थे। इस पूर्वांचल की बदहाली को सुनते हुए प्रधानमंत्री नेहरू जी भी कराह उठे, उनके आंखों में आंसू भर आया। 

उसी पूर्वांचल की बदहाली, दर्द और पूर्वांचलियों की भावनाओं को कुरेद कर यहां के नेता आज भी पूर्वांचलियों के वोटों को लेते हैं। वोटों के लिए पूर्वांचल की बदहाली को अपने भाषण में इस्तेमाल कर वोट लेकर चुनाव जीतने के बाद दिल्ली-लखनऊ पहुंचते हैं।

 मैं स्व.विश्वनाथ गहमरी जी को सच्ची श्रद्धांजलि देता हूं। उन्हें मेरा कोटि-कोटि नमन। उनके द्वारा दिए गए संसद में भाषण की एक-एक शब्द से अवगत कराऊंगा। उसके लिए अलग से एक एपिसोड लिखूंगा, बस धैर्य रखें।

 सच तो यह है कि स्व. विश्वनाथ सिंह गहमरी जी के अंदर पूर्वांचल की बदहाली को लेकर इतनी पीड़ा थी, आप भी सुनकर रों पड़ेंगे। यह कहानी साल 1962 के आसपास की है। तब से लेकर अब तक देश के भीतर सरकारें बदली और नए-नए नेताओं की नई तस्वीर सामने आई। विकास के वादे हुए, परिणाम भी प्रदर्शित किया गया। अगर कोई जमीनी परिवर्तन नहीं हुआ तो वह पूर्वांचल की बदहाली का। आज भी मेरा पूर्वांचल पिछड़ा हुआ है। सबसे अधिक पलायन यहां के लोग करते हैं। पश्चिम व बुंदेलखंड आय से भी मेरा पूर्वांचल आमदनी में पीछे है।

 नीति आयोग से लेकर अन्य  सरकारी संस्थाओं की रिपोर्ट कहती है कि पूर्वांचल अभी भी बदहाल है। देश भर के 110 जनपदों के सर्वे रिपोर्ट में पूर्वांचल के पांच जिले सबसे पिछड़े घोषित किये गए। फिर भी पूर्वांचल की भोली भाली जनता का फायदा उठाते हुए राजनीतिक दलों व उनके नेताओं की जुबान पर पूर्वांचल के विकास की चर्चाएं खूब सुनने को मिलती रही हैं। 

योगी सरकार के प्रथम कार्यकाल में भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष व मौजूदा गृह मंत्री अमित शाह के प्रयासों से पूर्वांचल विकास बोर्ड भी बनाया गया। यह विकास बोर्ड वैसा ही बना जैसे कभी सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में पूर्वांचल विकास निधि बनाया गया था, जो बाद में पीडब्ल्यूडी में मर्ज कर दी गयी।

  जब भाजपा सरकार ने पूर्वांचल विकास बोर्ड की स्थापना की तब पूर्वांचलियों में उम्मीद जागी और हमें भी लगा कि आने वाली हमारी उम्र 56 साल के साथ पूर्वांचल के विकास को लेकर कहने में गर्व महसूस करेंगे। पूर्वांचल के विकास को लेकर मेरी छाती भी 56 इंच की हो जाएगी, हमें अपने पूर्वांचल पर गर्व होगा। 

अब मैं ऐसी स्थिति में नहीं हूं कि इस सवाल का जवाब , आप को बता या लिख सकूं। उसका मूल आधार यह है कि बगैर पृथक पूर्वांचल राज्य का गठन किए यहां विकास की कल्पना भी अधूरी होगी। आज दिख रहा है कि पूर्वांचल के विकास के झूठे वादे और सत्ता के खेल ने सब कुछ झुठला दिया है।

 मेरे जिले (चन्दौली) का उदाहरण सामने है,  जब यह जिला वाराणसी में था तब डीएम के यहां दरखास्त पोस्ट कार्ड और लिफाफे में भर कर भेज दिया जाता था। इससे पैसा, समय तो अवश्य बच जाता था लेकिन न्याय नहीं मिल पाता था। ऐसा लगता था कि सारे प्रार्थना पत्र रद्दी की टोकरी में चले जाते हैं। मेरी फरियाद जिला मजिस्ट्रेट के पास काफी मशक्कत के बाद पहुंच पाती थी। इसमें डीएम की मजबूरी थी।

वजह साफ थी, वाराणसी जिला भदोही, चंदौली को समेटे हुआ था। एक डीएम जिसे लोग पूर्ण न्याय की उम्मीद रखते हैं, आखिर इतनी आबादी के लोंगों को कहां तक न्याय दे सकेगा। आज हम अपनी फरियाद चंदौली के जिला मजिस्ट्रेट के सामने हाजिर होकर कर लेते हैं। नौकरशाही की वजह से कभी न्याय मिल जाता है और कभी निराश भी होना पड़ता है, क्योंकि हम अपने प्रदेश के मुखिया के यहां शिकायत लेकर पहुंच नहीं पाते हैं।

आप भी जानते हैं कि यूपी की राजधानी बनारस और गाजीपुर से तकरीबन 250 से 300 किमी दूर है। यूपी के सीएम लखनऊ में बैठते हैं। लखनऊ जाने-आने में कम से कम 5 सौ रुपये लग जायेगा। समय भी निकालना होगा। यह तो एक मजदूर, किसान, बहुजन समाज और गरीब, मध्यम वर्ग के लिए ज्यादातर समय मुश्किल ही है। फिर लखनऊ जाने पर मेरी फरियाद सुनी जाएगी अथवा नहीं यह भी संशय है। आखिर मौजूदा भाजपा सरकार के मुखिया माननीय  योगी आदित्यनाथ जी को गाजियाबाद से लेकर गाजीपुर तक जिम्मेदारी भी संभालनी है।

 यही है पूर्वांचल के पिछड़ेपन की असली वजह। अब बगैर देर किए अलग पूर्वांचल राज्य की घोषणा करना होगा। सिर्फ विकास के झूठे तोता वाले रट से हटना पड़ेगा। मेरा मानना है कि अब ऐसा विधानसभा , मंत्रिमंडल चाहिए, जिनमें सिर्फ पूर्वांचल लोगों के लिए नीति बनें, उनके लिए बहस हो। उनका बजट हो। सरकारी मशीनरी सिर्फ पूर्वांचल के लिए हो। इसके लिए अलग से नीति और नियत बनानी पड़ेगी और देश का अगला राज्य पूर्वांचल घोषित करना पड़ेगा।

लेखक - पूर्वांचल राज्य संगठन का संयोजक हैं और दैनिक शुभ भास्कर का कार्यकारी संपादक है | इनका संपर्क नंबर - +91 - 8543805467 . 

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