बाबू जगत सिंह, 1799 भारत के स्वतंत्रता संग्राम की अनकही गाथा - पुस्तक का विमोचन किया गया | जिनमें वक्ताओं ने बाबू जगत सिंह को स्वतंत्रता सेनानी और सर्वधर्म समभाव के प्रतीक बताया |
बनारस के भूले हुए लोगों के नेता: बाबू जगत सिंह, 1799 भारत के स्वतंत्रता संग्राम की अनकही गाथा - पुस्तक का हुआ विमोचन
महामना सभागार में अतिथि वक्ताओं ने बाबू जगत सिंह पर अपने बहुमूल्य विचार किये प्रस्तुत
आजादी की पहली लड़ाई 1799 में काशी में लड़ी गई थी
पूर्वांचल न्यूज़ प्रिंट / साक्षी सेठ / वाराणसी | बाबू जगत सिंह, 1799 भारत के स्वतंत्रता संग्राम की अनकही गाथा - पुस्तक का विमोचन किया गया | जिनमें वक्ताओं ने बाबू जगत सिंह को स्वतंत्रता सेनानी और सर्वधर्म समभाव के प्रतीक बताया । वक्ताओं ने कहा कि काशी समरसता की भूमि है। इसने अपने अंदर सभी धर्मों, संप्रदायों और वैचारिक दर्शनों को समाहित कर लिया।
इस दृष्टिकोण से, बाबू जगत सिंह एक भूले-बिसरे जन नेता थे, जिन्होंने मंदिर के साथ-साथ एक मस्जिद भी बनवाई, गुरुद्वारे के लिए जमीन दी और सारनाथ के पुरातात्विक स्थल की खोज में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
इस कार्यक्रम में प्रोफेसर रामचन्द्र पांडे, चन्द्रमा भंते, प्रोफेसर राणा पीवी सिंह, अधिवक्ता त्रिपुरारी शंकर, पद्श्री चन्द्रशेखर सिंह, मौलाना अब्दुल बातिन नोमानी, शिवनाथ यादव, रामाज्ञा जी, केदार तिवारी, डाॅ. आनंद सिंह और प्रोफेसर जयराम सिंह आदि मौजूद रहे और लोगों ने अपने विचर व्यक्त किये |