बेटी को एक दर्जन लोगों के चंगुल में फंसा देख मां चीखती है और कट्टरपंथियों के सामने हाथ जोड़ती है, पैर पकड़ती है! कहती है, एक- एक आदमी बारी-बारी से करो नहीं तो बेटी मर जाएगी। यह क्लाइमेक्स सीन है 30 अगस्त को रिलीज हो सिनेमा घरों में आ रही हिंदी फिल्म "द डायरी ऑफ़ वेस्ट बंगाल " का।

अभिनेता, अभिनेत्री और निर्माता, निर्देशक

पूर्वांचल न्यूज़ प्रिंट / अनूप कर्णवाल / चंदौली / मुंबई । लगभग एक दर्जन घुसपैठिए रोहंगिया मुस्लमान धड़धड़ाते हुए एक छोटे से कस्बे के निवासी ब्राह्मण अमीरचंद के मकान में घुस जाते हैं। घुसपैठिए अमीरचंद की बड़ी बेटी को पकड़ लेते हैं, और बुरी तरह नोचने खसोटने के साथ ही शुरू होता है बलात्कार का नंगा नाच।
बेटी को एक दर्जन लोगों के चंगुल में फंसा देख मां चीखती है और कट्टरपंथियों के सामने हाथ जोड़ती है, पैर पकड़ती है! कहती है, एक- एक आदमी बारी-बारी से करो नहीं तो बेटी मर जाएगी। यह क्लाइमेक्स सीन है 30 अगस्त को रिलीज हो सिनेमा घरों में आ रही हिंदी फिल्म "द डायरी ऑफ़ वेस्ट बंगाल" का।
इस संबंध में फिल्म के राइटर और डायरेक्टर सनोज मिश्रा, प्रोड्यूसर जितेंद्र नारायण सिंह उर्फ वसीम रिजवी सहित सभी कलाकारों से बातचीत हुई।
पटकथा लेखक और निर्देशक सनोज मिश्रा ने बताया कि फिल्म "रोहिंगिया शरणार्थी संकट", "अवैध बांग्लादेशियों की घुसपैठ" और "लव जिहाद" की घटना पर आधारित है।
वसीम रिजवी द्वारा निर्मित और सनोज मिश्रा द्वारा निर्देशित फिल्म के विषय में प्रोड्यूसर, डायरेक्टर दोनों का कहना है कि इसकी कहानी चर्चाओं को जन्म तथा धारणाओं को चुनौती देगी। "द डायरी ऑफ़ वेस्ट बंगाल" म्यांमार के रोहंगिया शरणार्थियों की दुर्दशा और बांग्ला देश से बड़े पैमाने पर अवैध घुसपैठ को गहराई से प्रस्तुत करती है।
फिल्म मनोरंजन के साथ ही उत्तेजक भी है। निर्माता निर्देशक कहते हैं कि फिल्म का मसाला बांग्ला देश की लेखिका "तस्लीमा नसरीन" की पुस्तक "लज्जा" से लिया गया है। फिल्म सच्ची घटना पर आधारित है जो पश्चिम बंगाल के एक कस्बे में एक अक्टूबर 2001 को घटी थी। इस घटना की पूरी कहानी तस्लीमा नसरीन की पुस्तक "लज्जा" में पढ़ने को मिलेगी।
इस पुस्तक के प्रकाशित होने के बाद बांग्ला देश सरकार ने तस्लीमा नसरीन को देश से निकाल दिया था। फिल्म मेकर जितेंद्र कुमार सिंह (वसीम रिजवी) कहते हैं कि उन्हें फिल्म के रिलीज होने से पहले ही धमकियां मिलने लगी हैं।
उन्होंने कट्टरपंथियों द्वारा मारे जाने की धमकियों की चर्चा की। साथ ही आशंका जताई की पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री "ममता बनर्जी" वेस्ट बंगाल में फिल्म पर प्रतिबंध लगा सकती हैं। साथ ही यह भी आशंका जताई की वेस्ट बंगाल की दुर्दशा दिखाए जाने के बाद सीएम से भी उन्हे खतरा हो सकता है। डायरेक्टर कहते हैं कि वेस्ट बंगाल में फिल्म की शूटिंग करना उनके लिए बहुत चुनौती भरा काम था।
एक वर्ष का समय उन्हें वहां का सोशल इन्वायरमेंट जानने में लगा और चोरी चुपके से शूटिंग के काम को पूरा किया गया। फिल्म का अधिकांश भाग मुर्शिदाबाद और सुंदरवन के जंगली क्षेत्र में फिल्माया गया है। निर्देशक कहते हैं कि पश्चिम बंगाल सरकार घुसपैठ को बढ़ावा दे रही है और उन्हें वोट बैंक के चक्कर में वोटर आईडी सहित आधार कार्ड भी उपलब्ध करा रही है।
वेस्ट बंगाल के हालात 50 प्रतिशत से भी अधिक काश्मीर जैसे हो गए हैं, जहां अब आम आदमी की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं रह गई है। कहते हैं फिल्म जेहादियों का अड्डा बन चुके वेस्ट बंगाल में कट्टरपंथियों की साजिश को बेनकाब करती है। निर्माता वसीम रिजवी कहते हैं कि ममता बनर्जी सरकार देश को खतरे में डाल चुकी है, जहां एक और काश्मीर तैयार हो किया जा रहा है।
लेखक और निर्देशक श्री मिश्रा कहते हैं कि " द डायरी ऑफ़ वेस्ट बंगाल" मूवी पश्चिम बंगाल को आकार देने वाली ताकतों की एक साहसिक परीक्षा है। इसका उद्देश्य विचारों को जगाना, बहस छेड़ना और बदलाव को प्रेरित करना है। उन्होंने शूटिंग के दौरान वेस्ट बंगाल के सुंदरवन क्षेत्र में कलाकारों सहित पूरी टीम को खाने पीने, जंगली जानवरों के भय सहित जिन मुश्किलों से गुजरना पड़ा उसकी भी चर्चा की। बताया कि हमने फिल्म के माध्यम से लव जिहाद, इस्लामिक जिहाद और रोहंगिया जिहाद से पर्दा उठाया है।
गोविंदा के परिवार से जुड़े "यजुर मारवाह" फिल्म के हीरो हैं तथा अभिनेत्री के रोल में "अर्शिन मेहता" हैं। वार्ता के दौरान अन्य कलाकार रामेंद्र चक्रवर्ती, गौरी शंकर, अवध अश्वनी, आशीष कुमार सहयोगी निर्माता जीएस किशोर, मार्सेलिना डिकोस्टा, संतोष फर्नांडिस, संजय गुप्ता एवम सहयोगी निर्माता छत्रपाल सूर्यवंशी, संजय कुमार, अर्जुन सिंह आदि उपस्थित रहे।