विज्ञान भी सृष्टि के सृजन के साथ ही मच्छरों के अस्तित्व की बात करता है, मच्छर तो स्वतः मानव जीवन के लिए रोगी नहीं होते है, लेकिन ये कई रोगों के वाहक होते है |
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मलेरिया और अन्य मच्छर-जनित बीमारियों के प्रसार को नियंत्रित करने में कारगर साबित हो रही " लार्वाभक्षी मछली गम्बूजिया " |
🔹क्षेत्रीय समन्वयक, एम्बेड धर्मेन्द्र त्रिपाठी बोले - मच्छर जनित बीमारियों के जैविक नियंत्रण में उपयोगी है लार्वाभक्षी मछली गम्बूजिया
🔹मछलियों को जल स्रोतों में छोड़ने से मच्छरों की संख्या में कमी आई , मलेरिया और अन्य मच्छर-जनित बीमारियों के प्रसार को नियंत्रित करने में सहायक बनीं
पूर्वांचल न्यूज़ प्रिंट / लखनऊ : क्षेत्रीय समन्वयक, एम्बेड-एफ0एच0आई0,एलिमिनेशन ऑफ माॅसकीटो बाॅर्न इन्डेमिक डिजीज (एम्बेड) कार्यक्रम के क्षेत्रीय समन्वयक धर्मेन्द्र त्रिपाठी ने मच्छर जनित रोंगों की चर्चा करते हुए बताया कि हमारे पुराण ग्रन्थों के अनुसार मच्छरों का उद्भव काल द्वापर युग से चला आ रहा है |
विज्ञान भी सृष्टि के सृजन के साथ ही मच्छरों के अस्तित्व की बात करता है, मच्छर तो स्वतः मानव जीवन के लिए रोगी नहीं होते है, लेकिन ये कई रोगों के वाहक होते है जिनमें मलेरिया, डेंगू, फाइलेरिया, चिकनगुनिया, जापानी इंसेफेलाइटिस, जीका वायरस, व यलोफीवर प्रमुख रोग हैं |
इनसे मानव जीवन के बचाव हेतु तीन स्तरों पर प्रयास किया जाता है, यथा व्यक्तिगत उपायों में मच्छरदानी, अगरबत्ती, शरीर के खुलें अंगों को ढकना व तुलसी नीम, सिन्ट्रोलेना , गेंदा और लेमन ग्रास के वृक्ष रोपण, पर्यावरणीय नियंत्रण में घर व घर के अन्दर व घर के बाहर जल जमाव को खत्म करना, मच्छर प्रजनन स्थलों को खत्म करना, रोशनदानों में जाली लगवाना, और मच्छर मारने वाले स्प्रे की फागिंग की व्यवस्था है |
जैविक नियंत्रण के तौर पर गम्बूजिया मछलियों का विकास
धर्मेन्द्र त्रिपाठी ने बताया कि लखनऊ व आस-पास के क्षेत्रों में लार्वाभक्षी गम्बूजिया मछली का वृहद स्तर पर उत्पादन कर तालाबों, पोंखरों, जलाशयों, व अन्य जल संग्रहण स्थलों पर डालने का कार्य युद्ध स्थलों पर किया जा रहा है जिससे लार्वाभक्षी गम्बूजिया मछली मच्छरों के लार्वों का भक्षण कर उनके प्रजनन को रोक करके मच्छर जनित रोगों से मानव का बचाव करती है।
" इस अभियान के क्रियान्वयन हेतु धर्मेन्द्र त्रिपाठी द्वारा स्वास्थ्य विभाग, नगर निगम, पिकप भवन, एवं अन्य सामुदायिक संस्थानों यथा सहारा सिटी, समर्पण इंस्टिट्यूट ऑफ नर्सिंग कालेज, लखनऊ विश्वविद्यालय, ए0जी0एम0 बाॅटानिका एपार्टमेंट, हिमालय अपार्टमेंट आदि से समन्वय कर लगभग 70 हजार से अधिक गम्बूजिया मछली इन विभिन्न जलाशयों में डाल कर लखनऊ एवं आस पास के जनपदों के लोगों को मच्छर जनित रोगों से बचाव हेतु सतत प्रयास किया जा रहा है। "
1880 के दशक में हुई थी गैम्बूसिया मछली की खोज
गैम्बूसिया मछली की खोज 1880 के दशक में हुई थी। इसे वैज्ञानिक रूप से ळंउइनेपं ंििपदपे के रूप में जाना जाता है। यह मछली मुख्य रूप से मच्छरों के लार्वा खाने के लिए प्रसिद्ध है और मलेरिया नियंत्रण में उपयोग की जाती है।
भारत और कंबोडिया में 20वीं शताब्दी की शुरुआत में शुरू हुआ उपयोग
गैम्बूसिया मछली को 20वीं शताब्दी की शुरुआत में कई देशों में मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रमों के तहत पेश किया गया था। भारत में इसे पहली बार 1928 में लाया गया था, और कंबोडिया सहित कई अन्य देशों में भी इसका उपयोग जल स्रोतों को मच्छर-मुक्त रखने के लिए किया गया।
गैम्बूसिया मछली, जिसे मच्छरमछली के नाम से भी जाना जाता है, का उपयोग विश्वभर में मच्छरों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए किया गया है। हालांकि, कंबोडिया में गैम्बूसिया मछली के परिचय का सटीक वर्ष उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह 20वीं शताब्दी के मध्य में मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रमों के तहत कई देशों में पेश की गई थी। इन मछलियों को जल स्रोतों में छोड़ने से मच्छरों की संख्या में कमी आई है, जिससे मलेरिया और अन्य मच्छर-जनित बीमारियों के प्रसार को नियंत्रित करने में सहायता मिली है।
गैम्बूसिया मछली पर कई शोध और अध्ययन, यहाँ कुछ प्रमुख निष्कर्ष प्रस्तुत हैं :-
1. आहार संबंधी अध्ययन- गैम्बूसिया मछलियाँ मुख्य रूप से जूप्लवक, बीटल्स, मेफ्लाई, कैडिसफ्लाई, माइट्स और अन्य अकशेरुकी जीवों का सेवन करती हैं मच्छरों के लार्वा उनके आहार का एक अहम हिस्सा होते हैं।
2. प्रभावशीलता और पर्यावरणीय प्रभाव- मच्छरों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए गैम्बूसिया मछलियों को दुनिया के कई हिस्सों में पेश किया गया है।
3. प्रजनन और जीवन चक्र- गैम्बूसिया मछलियाँ जीवित शिशुओं को जन्म देती हैं, और एक मादा प्रति गर्भधारण में लगभग 60 शिशुओं को जन्म दे सकती है। नर 43 से 62 दिनों में यौन परिपक्वता प्राप्त करते हैं, जबकि मादाएँ 21 से 28 दिनों में परिपक्व होती हैं।