हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-बी के तहत उप-धारा (1) के तहत याचिका दायर करने से पहले पक्षकारों को एक वर्ष या उससे अधिक अवधि तक अलग रहना आवश्यक है।
प्रयागराज / पूर्वांचल न्यूज़ प्रिंट : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तलाक के एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-बी के तहत उप-धारा (1) के तहत याचिका दायर करने से पहले पक्षकारों को एक वर्ष या उससे अधिक अवधि तक अलग रहना आवश्यक है। यदि अलगाव की अवधि के दौरान सहमति से तलाक के लिए आवेदन करने पर सहमति बन जाती है, तो सहमति से तलाक के लिए आवेदन को तब तक अस्वीकार नहीं किया जा सकता जब तक कि इस बात का सबूत न हो कि दोनों पक्ष समझौते के दौरान या उसके बाद एक साथ रहते थे।
न्यायमूर्ति अरिंदम सिन्हा और न्यायमूर्ति अवनीश सक्सेना की खंडपीठ ने श्रीमती मीनाक्षी गुप्ता की अपील को स्वीकार करते हुए कहा स्पष्ट किया कि वर्तमान मामले में, सहमति से तलाक के लिए याचिका दायर करने से पहले, दोनों पक्ष एक वर्ष से अधिक समय से अलग रह रहे थे और 2013 से उनके बीच कोई शारीरिक संबंध नहीं था। अदालत ने पाया कि दोनों पक्षों ने छह महीने की कूलिंग-ऑफ अवधि का भी पालन किया था। यदि पक्षों ने 1 अगस्त, 2023 को सहमति से तलाक के लिए आवेदन करने का निर्णय लिया है, तो यह नहीं कहा जा सकता कि उस तिथि को दोनों पक्ष एक साथ थे।
तथ्यों पर विचार करने के बाद न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि दोनों पक्षों की शादी 2004 में हुई थी और तीन बच्चे होने के बाद आपसी मतभेद के कारण वे 12 जनवरी 2022 से अलग रहने लगे। 1 अगस्त 2023 को दोनों पक्षों ने सहमति से तलाक के लिए अर्जी दाखिल करने का फैसला किया। संभल फैमिली कोर्ट ने अलगाव की तारीख की गणना में गलती की और याचिका खारिज कर दी। पारिवारिक न्यायालय के इसी आदेश को इस याचिका में उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। अंततः, अदालत ने दोनों पक्षों के बीच विवाह को विघटित करते हुए तलाक का आदेश जारी करने का आदेश दिया।