स्वतंत्रता क्रांति के अग्रदूत, जाबांज स्वततंत्रता सेनानी थे यमुना गिरि ,गाज़ीपुर में सबसे पहले जलाई थी क्रांति की चिंगारी

स्वतंत्रता क्रांति के अग्रदूत, जाबांज स्वततंत्रता सेनानी थे यमुना गिरि ,गाज़ीपुर में सबसे पहले जलाई थी क्रांति की चिंगारी

यमुना गिरि एक जांबाज स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनका भारत की आजादी के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान रहा और गाज़ीपुर में क्रांति की चिंगारी को सबसे पहले हवा दी।

संक्षिप्त जीवन परिचय, सम्पूर्ण घटनाक्रम के साथ / गाज़ीपुर से त्रिलोकी नाथ राय की रिपोर्ट 

12 अगस्त 1942 आजाद क्रान्ति के अग्रदूत जाबांज स्वतंत्रता सेनानी यमुना गिरि अर्थात स्व. यमुना गिरि पुत्र स्व. सुदेश्वर गिरि का जन्म 26.09.1928 को ग्राम-शेरपुर कलॉ, जनपद गाजीपुर में हुआ था। बचपन मेंही आपका लगाव स्वतंत्रता आन्दोलन और कांग्रेस के प्रति हो गया था। प्रारम्भिक शिक्षा गांव से ही पूरी करने के बाद आपने डीएवी हाईस्कूल गाजीपुर में आगे की शिक्षा हेतु प्रवेश ले लिया ।

विद्रोह का बिगुल 
 कक्षा नौ (9) का विद्यर्थी रहते ही 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी और अन्य नेताओं की गिरफ्तारी का समाचार 10 अगस्त को समाचार पत्र में पढ़़कर यमना गिरि का मन विद्रोह कर उठा । उन्होंने अपने साथी भोला राय और अन्य छात्रों के साथ योजना बनाकर १2 अगस्त को नगर के सभी विद्यालयों सीटी हाईस्कूल D.A.V. हाईस्कूल, विक्टोरिया कालेज  

गाजीपुर आदि  के छात्रों को समझाकर हड़ताल करा दी। स्कूलों पर तिरंगा फहराने के बाद छात्रों का जूलूस निकाला, इनको तथा भोला राय गिरफ्तार हुए। फिर सायंकाल प्रताड़ित करके छोड़ दिया गया किन्तु छूटने के बाद ही यमुना गिरि ने आंदोलन की रणनीति बनाई, और सवतंत्रता आंदोलन के चिंगारी को हवा दे दी।

 गांधी जी के आह्वान पर आंदोलन में कूदे 
13 अगस्त को यमुना गिरि के नेतत्व में छात्रों द्वारा गाजीपुर घाट स्टेशन फूंक दिया गया ~ अंग्रजो भारत छोड़ो के क्रम में 14 अगस्त को श्री गिरि अपने साथियों के साथ गौसपुर निर्माणाधीन हवार्ड अड्डा को फूँक दिया, जो फिर कभी नहीं बन सका । पुलिस द्वारा की गयी फायरिंग में यमुना गिरि घायल हो कर गिर पड़े ,इनको बेहोशी की हालत में कैद कर लिया गया। 

इनके साथ चांदपुर के बिसुनी राय को भी गोली लगी थी दूसरे  तत्कालीन कलेक्टर  मुनरो के माफीनामा को न स्वीकार करने पर यमुना गिरि को गाजीपुर जेल भेज दिया गया। इसकी सूचना शेरपुर पहंचते ही वहाँ के यवकों में उबाल आ गया। 18 अगस्त को डॉक्टर शिवपूजन राय के नेतृत्व में जो जुलूस मुहम्मदाबाद तहसील की तरफ बढ़ रहा था उसमें इन्कलाब जिन्दाबाद , यमुना गिरि का बदला लेगें अग्रेजों भारत छोड़ो, भारत माता की जय आदि नारे प्रमुखता से लगे थे।

18  अगस्त 1942 को मुहम्मदाबाद तहसील पर तिरंगा झंडा फहराने के लिए और यमुना गिरी के संघर्षो को हवा देने के लिए शेरपुर के नौजवानों का काफिला चल पड़ा था,अंग्रेजो की गोली से एक ही गाँव शेरपुर के आठ जवान इस आंदोलन में शहीद हुए थे जिन्हे आज हम अष्ट शहीद के नाम से याद करते हैं।

गिरफ्तारी और सजा
 गिरफ्तार होने के कुछ महीने बाद 13.01.1943 को आईपीसी की धारा 436.,395 में उन्हे पाँच वर्ष की कठोर सश्रम कारावास की सजा मिली । जेल मैन्युअल के विरुद्ध आचरण को देखते हुए इनको 03.02.1943 को गाजीपुर जेल से निकाल कर सीतापुर जेल भेज दिया । दिनांक- 03.04.1946 को सभी बन्दियों के साथ रिहा हुए।

रिहाई के बाद का जीवन
स्वतंत्र भारत में यमुना गिरि ने उपनिरीक्षक (पुलिस इंस्पेक्टर)  के पद पर भी सेवा की। वे अपनी सेवाओं के दौरान समाज को काफी योगदान दिया और स्वतंत्रता संग्राम में अपने अनुभवों को साझा किया। 6 जून 1969 को उनकी मृत्यु तो हो गई, लेकिन आज भी उनकी विरासत जीवित है।

यमुना गिरि की विरासत
यमुना गिरि की कहानी हमें स्वतंत्रता संग्राम के दौरान युवाओं की भूमिका के बारे में बताती है। उन्होंने अपने साहस और बलिदान से देश को आजादी दिलाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। आज भी, उनकी कहानी युवाओं को प्रेरित करती है और उन्हें देश के लिए कुछ करने के लिए प्रोत्साहित करती है ।बलिदानी धरती शेरपुर इन  महापुरुषों द्वारा दिये गये योगदान के लिए सदैव ऋणी रहेगा 

कंटेंट स्रोत- यमुना गिरि के भतीजे पूर्व प्रधान विद्यासागर गिरि से वार्तालाप एवं डॉक्टर मान्धाता राय एवं कृष्ण देव राय द्वारा लिखित पुस्तक "अगस्त क्रांति का शिखर" , पंडित जगदीश राय शर्मा द्वारा रचित पुस्तक "इस मिट्टी से तिलक करो "

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