सभी प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) अनिवार्य करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, राज्य भर के शिक्षकों की नौकरी खतरे में है।
- अनिवार्य टीईटी के खिलाफ PMO को भेजे गए 2.50 लाख पत्र
- अनिवार्य टीईटी से शिक्षकों की नौकरी खतरे में
- शिक्षकों ने विरोध प्रदर्शन कर सरकार से सुरक्षा की गुहार लगाई
- 20 सितंबर तक ज्ञापन सौंपने का अभियान
लखनऊ। सभी प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) अनिवार्य करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, राज्य भर के शिक्षकों की नौकरी खतरे में है। आदेश के अनुसार, अगले दो वर्षों के भीतर टीईटी पास करना अनिवार्य होगा, अन्यथा उन्हें अपनी नौकरी छोड़नी पड़ सकती है। इस फैसले से असंतुष्ट शिक्षकों ने अपना विरोध तेज कर दिया है।
भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुशील कुमार पांडे ने रविवार को हजरतगंज स्थित संघ मुख्यालय में एक बैठक के बाद सरकार से शिक्षकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेने और इस अव्यवहारिक आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा याचिका दायर करने की अपील की।
उन्होंने कहा कि अगर सरकार सकारात्मक कार्रवाई नहीं करती है, तो शिक्षक संगठन के बैनर तले हम सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करेंगे और कानूनी लड़ाई भी लड़ेंगे। इसके अलावा, 20 सितंबर तक प्रधानमंत्री, केंद्रीय शिक्षा मंत्री और देश भर के राज्यों के मुख्यमंत्रियों को ज्ञापन भेजे जा रहे हैं।
प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र-लेखन अभियान 10 सितंबर से चल रहा है। अब तक प्रधानमंत्री कार्यालय को कुल 2,50,453 पत्र भेजे जा चुके हैं। 20 सितंबर तक 5,00,000 पत्र भेजने का लक्ष्य है। मुख्य मांग यह है कि 25 अगस्त 2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों को टीईटी से छूट दी जाए।
संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल यादव ने कहा कि टीईटी लागू होने से शिक्षकों में गहरा आक्रोश है। 55 साल की उम्र में शिक्षकों का बच्चों को पढ़ाना या खुद परीक्षा की तैयारी करना अनुचित है।