Success Story : ज़िंदगी हर किसी के लिए आसान रास्ता नहीं बनाती। कुछ लोगों को ऐसी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है जो दूसरों को तोड़ सकती हैं, लेकिन वही मुश्किलें किसी को मज़बूत भी बना सकती हैं।
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आयुषी IAS अधिकारी बनीं और KBC में 25 लाख रुपये जीती |
- उनकी सफलता की कहानी आपको रुला देगी
दिल्ली की आयुषी डबास ने इसे साबित कर दिखाया। उन्हें बचपन से ही आँखों की समस्या थी। कई लोगों को लगता था कि वह आम बच्चों की तरह आगे नहीं बढ़ पाएंगी। लेकिन आयुषी ने अपनी परिस्थितियों के आगे घुटने नहीं टेके और हिम्मत, कड़ी मेहनत और अपने सपनों के साथ लाखों लोगों के लिए प्रेरणा बन गईं।
पढ़ाई में हमेशा आगे, अपने सपनों पर अडिग
आयुषी बचपन से ही एक मेधावी छात्रा थीं। स्कूल हो या कॉलेज, वह हमेशा अव्वल नंबर लाती थीं। उन्होंने इतिहास में मास्टर डिग्री पूरी की और फिर सबसे कठिन मानी जाने वाली UPSC परीक्षा देने का फैसला किया।
इन असफलताओं के बावजूद, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। UPSC की तैयारी आसान नहीं थी। आयुषी ने कई बार परीक्षा दी, लेकिन असफल रहीं। कोई और शायद हार मान लेता, लेकिन उसने हार नहीं मानी। बार-बार असफल होने के बावजूद, उसने खुद को संभाला और अपने चौथे प्रयास में 48वीं रैंक हासिल की। यह उसकी कड़ी मेहनत और आत्मविश्वास का सबसे बड़ा प्रमाण था।
एक आईएएस अधिकारी बनना, समाज के लिए एक आदर्श बनना
इस सफलता के बाद, आयुषी एक आईएएस अधिकारी बनीं और दिल्ली के वसंत विहार में एसडीएम के पद पर आसीन हुईं। वहाँ से, उनका सफर और भी बड़ा हो गया, क्योंकि उन्होंने न केवल अपने लिए, बल्कि समाज के लिए भी काम करना शुरू कर दिया।
केबीसी तक सपनों की उड़ान
आईएएस अधिकारी बनने के बाद भी, वह अपने सपनों तक ही सीमित नहीं रहीं। हाल ही में, वह लोकप्रिय टीवी शो केबीसी, यानी कौन बनेगा करोड़पति में शामिल हुईं। लाखों लोगों में से उनका चयन हुआ और वह अमिताभ बच्चन के सामने बैठीं। अपनी बुद्धिमत्ता और साहस से, उन्होंने 25 लाख रुपये जीते।
माँ की खुशी सबसे बड़ा इनाम है
आयुषी कहती हैं कि उनकी माँ की सबसे बड़ी इच्छा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमिताभ बच्चन से मिलने की थी। केबीसी ने उनके उस सपने को साकार कर दिया। आयुषी के चेहरे की मुस्कान ही उसकी सबसे बड़ी जीत है।
वह एक सवाल पर रुक गई, लेकिन हारी नहीं।
खेल के दौरान, एक सवाल आया: वह कल्पना चावला का कौन सा एल्बम अंतरिक्ष में ले गई थी? आयुषी को इसका जवाब नहीं पता था। जोखिम को भांपते हुए, उसने हार मानने का फैसला किया और 25 लाख रुपये लेकर लौटी। लेकिन यह हार नहीं थी, बल्कि साहस और समझदारी से लिया गया फैसला था।