क्यों ज़रूरी है पृथक पूर्वांचल राज्य ?

क्यों ज़रूरी है पृथक पूर्वांचल राज्य ?

Purvanchal नाम लेते ही हमारे जेहन में मेहनतकश लोग, पसीने से भीगी मिट्टी, छोटी–छोटी कच्ची–पक्की बस्तियाँ, कस्बों की भीड़ और महानगरों की ओर जाते बसों–ट्रेनों में ठुंसे हुए नौजवानों की तस्वीर एक साथ उभर आती है।
क्यों ज़रूरी है पृथक पूर्वांचल राज्य ?

यह वही पूर्वांचल है, जिसने देश को मज़दूर दिया, सैनिक दिए, शिक्षक–बाबू–अफ़सर दिए, राजनीतिक नेतृत्व दिया, मगर बदले में अपने हिस्से में क्या पाया?
  •  पलायन
  •  बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था
  •  बिखरी हुई शिक्षा व्यवस्था
  •  कमजोर इंडस्ट्री और
  •  हमेशा “पिछड़ा इलाका” कहकर टाल दी जाने वाली पहचान
यही सवाल आज हमें पृथक पूर्वांचल राज्य Prithak Purvanchal Rajy की ज़रूरत पर गंभीरता से सोचने के लिए मजबूर करता है।

 1. पूर्वांचल की पहचान और भूगोल

आम बोलचाल में पूर्वांचल से तात्पर्य उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से से है, जिसमें गोरखपुर, आज़मगढ़, बलिया, बनारस, मऊ, देवरिया, बस्ती, संतकबीरनगर, सिद्धार्थनगर, महाराजगंज, कुशीनगर, गाज़ीपुर, जौनपुर, प्रयागराज के कुछ हिस्से और आसपास के अनेक ज़िले शामिल माने जाते हैं।

यह क्षेत्र
 आबादी में बहुत बड़ा,
 श्रमशक्ति में बहुत मजबूत,
 संस्कृति–भाषा में समृद्ध,
  लेकिन राजनीतिक और आर्थिक प्राथमिकता में अपेक्षाकृत पीछे रहा है।

2. विकास असमानता की कहानी

जब हम विकास की तस्वीर देखते हैं, तो साफ़ दिखता है कि:
  •  सड़क, उद्योग, बड़े संस्थान, निवेश –
  ज़्यादातर पश्चिमी यूपी, लखनऊ–इलाहाबाद–कानपुर जैसे बेल्ट के इर्द–गिर्द केंद्रित रहे।
  •  पूर्वांचल के हिस्से में
  या तो “सस्ता श्रम” आया,
  या “सस्ता वोट बैंक” की छवि थोप दी गई।

स्वास्थ्य की बात करें तो
अभी भी बहुत से ज़िलों में

  •  बड़े सरकारी अस्पतालों की कमी,
  •  स्पेशलाइज्ड डॉक्टरों की कमी,
  •  और रेफरल पर रेफरल की मजबूरी आम बात है।

शिक्षा के क्षेत्र में

 उच्च शिक्षा संस्थान और
 रोज़गार से जुड़ी स्किल–बेस्ड शिक्षा
  आज भी पर्याप्त नहीं है।

नतीजा –
पढ़ाई भी बाहर, नौकरी भी बाहर, इलाज भी बाहर
यानी पैसा भी बाहर, प्रतिभा भी बाहर।

 3. पलायन – पूर्वांचल का स्थायी दर्द

पूर्वांचल की सबसे बड़ी त्रासदी “पलायन” है।
  •  लाखों नौजवान रोज़गार की तलाश में
  दिल्ली, मुंबई, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, यहाँ तक कि विदेश तक जाते हैं।
 गाँवों में बूढ़े माता–पिता, महिलाएँ और बच्चे रह जाते हैं।
  • यह पलायन सिर्फ आर्थिक नहीं
भावनात्मक और सामाजिक विघटन भी है।

जब किसी क्षेत्र से

 युवा शक्ति,
 कुशल मज़दूर,
 और पढ़े–लिखे दिमाग
  लगातार बाहर जाते रहें,
  तो उस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था
  कैसे मजबूत होगी?

इस सवाल का ईमानदार जवाब
कोई भी नीति–निर्माता दे तो सही।

 4. सिर्फ “नया राज्य” नहीं, “नई सोच वाला राज्य”

कुछ लोग कहते हैं –
“राज्य बढ़ाने से क्या होगा? विकास तो नीयत और नीति से होता है।”

बात आंशिक रूप से सही है,
लेकिन सिर्फ आधी सच्चाई है।

जब कोई क्षेत्र
बहुत बड़ा हो,
जनसंख्या बहुत ज्यादा हो,
और क्षेत्रीय असंतुलन बहुत गहरा हो,
तो अक्सर

बजट,
प्रशासनिक ध्यान,
 और राजनीतिक इच्छा–शक्ति
  कुछ चुनिंदा क्षेत्रों तक सीमित रह जाती है।

पृथक पूर्वांचल राज्य का मतलब
सिर्फ नई कुर्सियाँ नहीं,
बल्कि –

अलग बजट,
अलग प्रशासनिक फोकस,
और अलग विकास प्राथमिकताएँ,
  जो सिर्फ और सिर्फ
  पूर्वांचल की ज़रूरतों के हिसाब से बनें।

यह मॉडल हम दूसरे राज्यों के अनुभव में देख चुके हैं –
छोटे–छोटे राज्यों ने
शिक्षा, स्वास्थ्य, इंफ्रास्ट्रक्चर और निवेश में
अच्छी प्रगति दिखाई है,
बशर्ते नेतृत्व ईमानदार और दूरदर्शी हो।

 5. पूर्वांचल राज्य – क्षेत्रीय न्याय का सवाल

पृथक पूर्वांचल राज्य की मांग
कोई “विभाजनकारी एजेंडा” नहीं,
बल्कि क्षेत्रीय न्याय (Regional Justice) का सवाल है।

जब एक ही राज्य के अंदर
कुछ क्षेत्र

 लगातार समृद्ध,
  और कुछ
 लगातार उपेक्षित बने रहें,
  तो संवैधानिक रूप से
  यह भी एक प्रकार का अन्याय है।

पूर्वांचल राज्य बनने का अर्थ होगा कि –

 यहाँ की समस्याएँ
  “साइड नोट” नहीं,
 केंद्रीय एजेंडा बनेंगी।
 यहाँ के बजट, योजनाएँ, निवेश और नीति
  किसी और इलाके की तुलना में नहीं,
  यहीं के लोगों की ज़रूरत और क्षमता के हिसाब से तय होंगे।


6. पूर्वांचल के लिए विज़न – केवल नारा नहीं, ठोस योजना

पृथक पूर्वांचल राज्य की बात करते समय
सिर्फ नारेबाजी से काम नहीं चलेगा।

इसके साथ–साथ
हमें एक स्पष्ट विज़न भी तैयार करना होगा –
जिसमें हो:
  •  हर ज़िले के लिए
  शिक्षा–स्वास्थ्य–रोज़गार के ठोस लक्ष्य,
  •  किसान और एग्रो–इंडस्ट्री के लिए नीति,
  •  युवाओं के लिए रोजगार और उद्यमिता का रोडमैप,
  •  सड़कों, रेल, उद्योग–क्षेत्र, टूरिज्म, IT–सर्विस जैसे सेक्टरों की योजना।

यही सोच आगे चलकर
पूर्वांचल विज़न 2025–2035 जैसे दस्तावेज़ों में
बदली जा सकती है,
जो सरकार, समाज और आंदोलन
तीनों के लिए
एक संदर्भ (Reference) बन सके।


7. क्यों अब चुप रहना विकल्प नहीं है

आज अगर हम
फिर से “समय सब ठीक कर देगा” सोचकर
चुप बैठ गए,
तो आने वाली पीढ़ियों के सामने
हमारे पास कोई जवाब नहीं होगा।

पूर्वांचल की लड़ाई
सिर्फ चुनावी भाषण की लाइन नहीं रहनी चाहिए।
यह हर जागरूक नागरिक की जिम्मेदारी बन चुकी है कि –

  • सवाल पूछे,
  •  समाधान सुझाए,
  •  और शांतिपूर्ण, संवैधानिक तरीके से
  क्षेत्रीय न्याय की आवाज़ को मजबूत करे।

 निष्कर्ष: पूर्वांचल राज्य – भविष्य की पीढ़ी के लिए एक जिम्मेदार मांग

पृथक पूर्वांचल राज्य की मांग
कलह, नफरत या विभाजन की मांग नहीं है।

यह मांग है कि

> “पूर्वांचल को भी
> वही अवसर, वही सम्मान,
> और वही विकास–संभावनाएँ मिलें
> जो देश–प्रदेश के अन्य हिस्सों को मिल रही हैं।”

यह मांग है कि
पूर्वांचल का युवा
अपने घर–गाँव के आसपास
इज्ज़त और रोज़गार पा सके,
किसान का पसीना
सिर्फ कर्ज़ और मजबूरी में न बह जाए,
और हमारी आने वाली पीढ़ी
हमसे यह न पूछे कि –
“जब पूर्वांचल के साथ अन्याय हो रहा था,
तब आप कहाँ थे?

इसलिए,
पृथक पूर्वांचल राज्य
आज एक विकल्प नहीं,
बल्कि
ऐतिहासिक आवश्यकता बन चुका है।

 लेखक - हरवंश पटेल 
 राष्ट्रीय  संयोजक 
पूर्वांचल राज्य जनआंदोलन
 Mob- 8543805467/7905048010

➧ सबसे विश्वसनीय पूर्वांचल का हिंदी न्यूज वेबसाइट पूर्वांचल न्यूज़ प्रिंट | For more related stories,follow: News in Hindi -👉 Facebook 👉Twitter 👉 Instagram 👉 Teligram.👉Google News. 👉हमें गूगल में खोजने के लिए purvanchalnewsprint.co.in लिख कर सर्च करें |