कोरोना का इम्पैक्ट: बीमार न हो मध्यम वर्ग मगर कर्जदार होना तय- हरवंश पटेल
3/30/2020 05:28:00 pm
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में नोटबन्दी और दूसरे कार्यकाल में कोरोना की महामारी से लंबे समय के लॉक डाउन ने मध्यम वर्ग के आर्थिक व्यवस्था की नींव को हिलाकर रख दिया है। स्थिति तो यह है कि अबकी बार कोरोना में मध्यमवर्गीय लोगों की बीमारी से मौत हो या ना हो लेकिन उन्हें कर्जदार बनना तय माना जा रहा है। नोटबन्दी की मार झेलने के बाद से आर्थिक तंगी से अभी तक उबर भी नहीं पाए थे कि उनको दूसरी मार पड़ गयी। उनको सिर्फ भगवान का ही भरोसा बचा है। उनकी कमाई शून्य हो गई है। उनके काम धंधे बंद हो गए हैं। कोरोना की महामारी समाप्त होने के बाद उन्हें जल्द काम मिलना भी मुश्किल होगा। कम्पनियां उन्हें दुबारा काम पर रखेंगी की नहीं यह भविष्य के गर्भ में है। अगर व्यापारी है तो बाजार में जब अर्थ नहीं होगा तो उनके घर का खर्चा नहीं निकाल पाएंगा। इन दिनों स्थिति यह हो गई है कि उनके खर्चे लगातार बढ़ रहे हैं, वे किसी तरह की कटौती भी नहीं कर सकते हैं। यह भी सत्य है कि सरकारी योजनाओं पर सबसे अधिक कब्जा गरीब वर्ग का होता है अथवा उच्च वर्ग अपनी ताकत के बल पर परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से काबिज रहता है। जहां सरकारी मदद गरीब वर्ग के लिए ही सबसे अधिक आवंटित होती है वहीं सरकारी खिड़की मध्यमवर्गीय परिवार के लिए बहुत कम ही खुलती है। इसका परिणाम यह होगा कि यह मध्यम वर्ग लंबे समय के लिए कर्जदार होने जा रहा है। मध्यम वर्ग की एक सोच यह भी है कि कभी वह अपने को गरीब मानता ही नहीं है और कभी अमीर के साथ खड़ा हो भी नहीं पाता है। वह बीच में खड़ा होकर पीसता रहता है। यही वजह है कि वह दोहरी मानसिकता में घूंट घूंट कर दम तोड़ता जा रहा है। कोरोना के इस संकट की घड़ी में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल व यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने मकान मालिकों से कहा है कि वे अपने किरायेदारों से किराया न लें। राज्य सरकारें इस तरह की कई सुविधायें दे रही है। गरीबों को राशन, गैस व अन्य आर्थिक मदद देनी शुरू कर दी। ताकि वे आसानी से उबर सके। जबकि मध्यम वर्ग इस लाभ के सारे मानकों को पूरा नहीं कर पायेगा। नतीजतन कई तरह से पिटना शुरू हो गया है। उसे गैस का सिलेंडर भी नगदी खरीदना है। बिजली का बिल भुगतान करना पड़ेगा। खाने के लिए राशन की व्यवस्था करनी पड़ेगी। उसे टैक्स भी भरना है। बच्चों की फीस से लेकर उनके तमाम खर्चे हैं। इनकम टैक्स भी देना होगा। अगर वे किराए के मकान में रखते हैं तो उनको किराया भी देना पड़ेगा। ऐसे में कोरोना की इस महामारी में मध्यम वर्ग की कमाई जब शून्य ही शून्य है तो यह तय है कि उसको इन सारे खर्चो के लिए कर्ज लेना पड़ेगा। यह कर्ज साहूकार से लें अथवा किसी बैंक से लोन लेकर उसकी भरपाई करे। इसका परिणाम होगा कि वह लंबे समय तक कर्जदार बना रहेगा। इस संकट से उबरने में सरकार सबसे अधिक मदद कर सकती है। इसके लिए सरकार को योजनाओं प्राप्त करने के मानकों में ढील देनी पड़ेगी और साथ ही अपनी मदद की इकोनॉमिकल विंडो भी खोलना पड़ेगा। तभी यह कर्ज से उबर सकते हैं। अगर ऐसा नहीं हुआ तो स्थिति कोरोना वायरस से निपटने के बाद काफी भयावह हो जाएगी, जो कोरोना से कम नहीं होगा।