Purvanchal News Print, लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा श्रम कानूनों पर तीन साल के लिए लगाई रोक औद्योगिक विकास को अवरूद्ध कर देगा. इससे निवेशक भी निवेश करने से बचेंगे. दरअसल, श्रम कानूनों द्वारा श्रमिकों को मिले अधिकारों के कारण उनका विश्वास व्यवस्था में बहाल रहता था और श्रम विभाग द्वारा विवाद उत्पन्न होने पर हस्तक्षेप करने से बेहतर उत्पादन के लिए अनिवार्य शर्त औद्योगिक शांति कायम रहती थी.मगर सरकार द्वारा कानूनों को खत्म करने से औद्योगिक विवाद बढेंगे और मालिकों के लिए भी बड़ा खतरा उत्पन्न होगा. इसलिए सरकार को इस मजदूर विरोधी उद्योग विरोधी अध्यादेश को तत्काल प्रभाव से वापस लेना चाहिए. यदि सरकार वापस नहीं लेती है तो इसके खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जायेगा. यह प्रतिक्रिया मजदूरों के नेता अजय राय ने दी है.
उन्होंने इस फैसले की तीखी निंदा करते हुए कहा कि सरकार ने यहां तक कर दिया कि अब श्रमिक उत्पीड़न पर श्रम विभाग एक अदद नोटिस तक किसी मालिक को नहीं देगा और किसी कारखाने का निरीक्षण नहीं करेगा. यह श्रमिकों को मालिकों का बंधुआ मजदूर बना देना है. ऐसे तो नई आर्थिक-औद्योगिक नीतियों के लागू करने के बाद से ही श्रम कानूनों को कमजोर किया जा रहा है. अब तो वह हाथी के दिखाने वाले दांत ही रह गए है.जिसे भी योगी सरकार ने उखाड़ दिया.
उन्होंने कहा कि निवेश आकर्षित करने और कोरोना महामारी के दौरान बंद पड़े उद्योगों को पुनर्जीवित करने का सरकार का तर्क भी सही नहीं है. सभी जानते हैं कि पिछले पंद्रह साल से प्रदेश में हर सरकार ने साल डर साल इंवेस्टर्स समिट करके निवेश आकर्षित करने का प्रयास किया लेकिन प्रदेश में कोई नया निवेश नहीं हुआ. इस सरकार का भी तीन साल बीत चुका. योगी सरकार से प्रदेश की जनता जानना चाहती है कि आखिर इनके कार्यकाल में कितना निवेश हुआ. वास्तविकता तो यह है कि कई ईकाइयां खराब कानून व्यवस्था के कारण प्रदेश से चली गयी. उन्होंने कहा कि इस काले अध्यादेश के खिलाफ मजदूरों में सोशल मीडिया के जरिए मुख्यमंत्री को पत्र भेजने का अभियान चलाया जायेगा और सहयोगी संगठनों के साथ व्यापक मंच तैयार कर सरकार को इसे वापस लेने के लिए बाध्य किया जायेगा.