संघ की सांप्रदायिक राजनीति का मोहरा बनी मायावती: दारापुरी

संघ की सांप्रदायिक राजनीति का मोहरा बनी मायावती: दारापुरी


Purvanchal News Print                                                                लखनऊ: पूर्वी उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और जौनपुर में दलितों व मुसलमानों के बीच हुए झगड़े को आधार बनाकर पूरे प्रदेश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण , विभाजन को पैदा करने और इस आधार पर दलित सामाजिक आधार को अपने पक्ष में जीतने में लगी आरएसएस व भाजपा की राजनीति का मोहरा बन चुकी हैं बहुजन समाज की नेता मायावती. जो अक्सर योगी सरकार की तारीफ में आए उनके बयान से प्रतीत होता है.                                           यह प्रतिक्रिया ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता और पूर्व आईजी एसआर दारापुरी ने प्रेस को जारी अपने बयान में व्यक्त की है. 
                                                    

उन्होंने कहा कि ग्रामीण स्तर पर मौजूद सामंती व्यवस्था और पिछड़ेपन के कारण आए दिन छोटे-मोटे झगड़े और विवाद पैदा होते रहते है. इन विवादों को हल करने और इनका समाधान करने के लिए मौजूदा व्यवस्था में कानून मौजूद हैं और सरकारें उस कानून के अनुसार काम करती हैं.                                           यदि कोई दोषी है तो उसे दंड भी मिलता है. लेकिन भारतीय जनता पार्टी और  संघ हर छोटी-मोटी घटना में सांप्रदायिकता की संभावना तलाशने में जुट जाती है.                                                                                         दरअसल सरकार न चला पाने की विफलता के कारण चौतरफा जनता से अलगाव में गई भाजपा व संघ की सरकार इस तरह की विभाजनकारी राजनीति के जरिए अपने जनाधार को मजबूत बनाना चाहती हैं.                                       दुःखद यह है कि बहुजन राजनीति करने वाली मायावती सरीखी नेता इस राजनीति का मोहरा बन रही हैं और लगातार संघ-भाजपा के एजेंडे की तारीफ़ कर रही हैं.                                  मायावती खुद को और अपने परिवार को सीबीआई से बचाने के लिए यह काम कर रही हैं, जो उनके लगातार आ रहे बयानों से प्रकट हो रहा है.                                                                                   दरअसल यह बहुजन राजनीति के दिवालियेपन को भी प्रदर्शित करता है. जौनपुर की घटना में जो नूर आलम का नाम लिया गया है, अखबारों की खबर के अनुसार वह साल भर से सऊदी में काम कर रहा है और वहां मौके पर मौजूद भी नहीं था.                                                                                                    इसलिए आवश्यकता इस बात की थी कि सरकार इस घटना की निष्पक्ष उच्च स्तरीय जांच कराती, सत्य को सामने लाती और कानून के अनुसार कार्यवाही करती लेकिन सरकार ने यह न कर दलित उत्पीड़न की घटना के बहाने ध्रुवीकरण की राजनीति का अवसर खोजा है. इसी प्रकार जौनपुर के बथेरा गाँव वाली घटना में  राजनीतिक कारणों से कुछ गलत नामज़दगी की गयी है. 
                                                   दारापुरी ने दलितों से अपील की है कि मायावती जैसी अवसरवादी, सिद्धान्तहीन एवं एजेंडा विहीन राजनीति से उनका भला नहीं होने वाला है. उन्हें एक नई लोकतांत्रिक जन राजनीति के साथ खड़ा होना होगा क्योंकि वही समाज का लोकतंत्रीकरण कर दलित मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगी.