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आंकड़े कहते हैं कि यहां मात्र 767 मजदूरों को ही सौ दिन का काम मिल पाया है. यहां कुल लक्ष्य 33.25 लाख मानव दिवस के सापेक्ष अब तक 117.8 प्रतिशत लोगों को मनरेगा योजना के तहत रोजगार उपलब्ध करने के दावे किये गए हैं।
●जनपद में अनुसूचित जाति को शून्य बताने वाले अधिकारियों ने 17हजार 827 को दे दिया काम, क्या यह आंकड़ों में हेराफेरी या हकीकत!
पूर्वांचल/चन्दौली। मनरेगा के तहत दर्ज आंकड़े कहते हैं कि मात्र 767 मजदूरों को ही सौ दिन का काम मिल पाया है.यहां कुल लक्ष्य 33.25 लाख मानव दिवस के सापेक्ष अब तक 117.8 प्रतिशत लोगों को मनरेगा योजना के तहत रोजगार उपलब्ध करने के दावे किये गए हैं।
हकीकत यह है कि महात्मा गाॅधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना यानि मनरेगा के तहत केंद्र व उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कोरोना महामारी में मजदूरों को काम के दावे की अब पोल खुलने लगी है।
यह मनरेगा काम सिर्फ कागजों पर दिख रहा है। जिन जनपदों में काम हुआ भी है वहां आंकड़ों में जमकर बाजीगरी दिखाई गई है.
मजदूरों को काम देने के दावे के आंकड़े की हकीकत
मात्र एक उद्दाहरण लें तो यूपी में सबसे पिछड़ा चन्दौली जनपद में यहां भी पोल खुलती नजर आ रही है. आंकड़े कहते हैं कि यहां मात्र 762 मजदूरों को सौ दिन का काम मिल पाया है.
वही आदिवासियों वनवासियों की अधिकता वालें नौगढ़ ब्लॉक में मनरेगा मजदूरों को मात्र 47 मजदूरों को ही सौ दिन काम सका है।
आश्चर्यजनक पहलू तो यह है कि वनाधिकार कानून के तहत चन्दौली में एक भी एस टी ( अनुसूचित जनजाति) न होने का कोर्ट में सरकारी हलफनामा जमा है और यहां एक भी अनुसूचित जनजाति का जाति प्रमाण पत्र जारी नहीं होता हैं।
लेकिन मनरेगा के तहत 17827 अनुसूचित जनजाति के लोगों को मनरेगा मजदूरी में काम दे दिया गया है। यह अपने आप में मनरेगा घोटाले की कहानी बयां कर रही है।
चन्दौली में मनरेगा लेखा जोखा-
पहली अप्रैल से 11 सितंबर 2020 के दर्ज आंकड़े-
चन्दौली में कुल जॉब कार्ड- 2 लाख 46 हजार 748.
मजदूरों को काम मिला- एक लाख 936.
चकिया में जॉब कार्ड- 42, 958.
मजदूरों को काम मिला-20 हजार 970 परिवार
नौगढ़ में जॉब कार्ड-34 हजार 059.
मजदूरों को काम मिला- 9 हजार 914.
शहाबगंज कुल जॉब कार्ड- 26 हजार 271.
मजदूरों को काम मिला-15 हजार 696.
आंकड़े पर गौर करें तो पूरे जनपद में मनरेगा मजदूरों के जॉब कार्ड धारक 2,46,748 परिवार में आधे से कम मनरेगा परिवार को ही काम मिल पाया है लेकिन आंकड़ों में यहां 38 लाख 38 हजार 488 मानव दिवस सृजित हुए हैं यानि मनरेगा मजदूरों को काम मिला हैं.
इसमें भी आकंड़ों की ही बाजीगरी दिख रही हैं। चर्चा है कि कई गाँव की जमीनी सच्चाई यह हैं मनरेगा मजदूरों ने काम किया छह दिन का किया और मजदूरों की काम करने की संख्या बढ़ाकर 14 दिन करके खाते में मनरेगा मजदूरों को पैसा भेजा गया फिर उस पैसे को करता धर्ताओं ने वापस अपनी जेब में साल दी. इसे सच मान लिया गया तो मनरेगा मजदूरों को काम देने की संख्या बहुत ही कम हो जायेगी।
क्या कहते हैं एक सौ दिन के काम के आंकड़े
पूरे एक सौ दिन काम- 767.
चकिया -287.
नौगढ़-47.
शहाबगंज-247.
इस प्रकार चन्दौली में कुल 38 लाख, 38 हजार 888 रोजगार सृजित किया गया.
जबकि 77.77 लाख रुपये का रोजगार सृजित किया गया.
इन आंकड़ों में ही प्रवासियों को मनरेगा के तहत काम के दावे की खुद कलई हर स्तर खुल जा रहीं हैं. सबसे ज्यादा मजदूरों के आगमन के बीच चकिया, नौगढ़ और शहाबगंज ब्लॉक की कलई तब खुल जा रहीं जब अनुसूचित जातियों की भर मार होने के बाद भी कम लोगों को काम मिला है।
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महात्मा गाॅधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के सम्बन्ध में जिलाधिकारी ने बताया कि लक्ष्य 33.25 लाख मानव दिवस के सापेक्ष अब तक 117.8 प्रतिशत लोगों को मनरेगा योजना के तहत रोजगार उपलब्ध कराया जा चुका है। जनपद में कुल 13 हजार दो सौ उन्नीस प्रवासी श्रमिकों के सापेक्ष 12 हजार 435 श्रमिकों को मनरेगा के तहत रोजगार उपलब्ध कराया जा चुका है।
न कोई जांच टीम, नाही कोई जिम्मेदार अधिकारी
पूरे जनपद में मनरेगा के तहत कराए गया कार्यों को लेकर लूटने का अच्छा मौका था कर्ता धर्ताओं के लिए, वजह यह थी कि इसकी जांच के लिए कोई जिम्मेदार अधिकारी नहीं था. गांव के सेकेट्री व ग्राम प्रधान ही सारे मास्टर रोल पर अधिकार जमाये हुए थे.
कितना मजदूर काम कर रहा है और उसका कितना भुगतान होगा सब इन्हें ही करना था. कई जगह तो अभी भी मजदूरों को किये हुए काम का पैसा नहीं मिला। जो काम हुआ है वह बारिश में डूब गया, ऐसे मिला लूटने का अवसर। अब न तो जांच का डर और काम दिखाने की जरूरत।
मजदूरों को काम देने में केन्द्र व राज्य की सरकारें पूरी विफल रही : अजय राय
आईपीएफ प्रवक्ता व मजदूर किसान मंच के प्रभारी अजय राय ने कहते हैं कि मनरेगा मजदूरों को काम देने में केन्द्र व राज्य की सरकार पूरी तरह से विफल रही है।
केवल चन्दौली ही नहीं मनरेगा मजदूरों को काम देने की आकड़ों में खेल पूरे प्रदेश में खेला गया है। अगर सरकार क मास्टर रोल की अनिवार्यता खत्म कर जो मजदूर मनरेगा के तहत काम करना चाहते थे, उनको जॉब कार्ड पर हाजरी भर कर काम दिया जाता तो हेरा फेरी की गुंजाइश कम रहती।
जब मजदूरों के पास जांब कार्ड था ही तो इसमें दिक्कत क्या थी। वहीं उन्होंने यह भी मांग उठाया कि किसानों के किसानी में लगने वाले मजदूरों को भी मनरेगा में लाकर किसानों को लाभ दिया जाए।
source: भूपेन्द्र कुमार/रविन्द्र यादव