कविता: सरित कटियार
कस्तूरी तो जैसे मृग नाभी में मिले
वैसे प्रभू ह्रदय मे मानुष के मिले
ढूंढता क्यों जंगल में पहाडो़ में फिरे
एक नजर दिल के आइने में गिरे
शीशे में देख कर अपनी काया को पहचाने
दाग लगे कितने ये देख के जाने
गुरु प्यार पाके हमें दाग छुडा़ने
माया मे नही प्रभु काया भीतर पाने
जन्म दिया प्रभू किरपा ने तेरी
मुर्शिद ने किस्मत है फेरी
जायेगी साथ वही पूंजी कमाके
तीनों किरपाओं की लाज रखनी
उंगली थामके साथ अपने चलाये
पीछे आये चलते को गिरने से थामने
कहां धरो पग खुश होके बतायें
कष्ट सहके हमें मंजिल मिलायें
प्रीत लगाके मीत अपना बनायें
दिल से लगाके अंखियों में बसाये
नज़रों में नूर दिन रात है लिये
जीव को प्यार से अपना कहें
सुख जाके दुःख आये जीवन की कहानी
नदिया में लहर जैसे बहता है पानी
कर्म किये जा फल बेशुमार है
इंसानियत की ये नादानी है
----------------------------------