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बिहार/दुर्गावती (कैमूर): गरीबों की मदद की ढिंढोरा किसी भी पार्टी के नेता भले ही पीटते रहें, लेकिन मूलतः मूलभूत सुविधाएं उन गरीबों तक नहीं पा रहीं हैं जिन्हें इसकी जरूरत है और राज्य में राज करने वाली सरकारें भी विफल हैं.
एक ऐसे ही वाकया दुर्गावती थाना क्षेत्र के ग्राम बसंतपुर निवासी रवि कुमार की है. अपने तीन भाई और तीन बहनों में सबसे बड़ा रवि कुमार काफी संघर्ष से अपनी पढ़ाई को अंजाम तक पहुंचाया. अपने पिता की बड़ा संतान होने के नाते अपने घर की बढ़ते हुए आर्थिक तंगी को देखकर रवि कुमार ने बीएससी की परीक्षा पास करने के बाद दिल्ली की तरफ नौकरी की तलाश में पहुंचा. जहां हीरो होंडा कंपनी में डाटा ऑपरेटर का काम करने लगा.
लॉकडाउन होने के बाद वह भी नौकरी हाथ से निकल गई. जिसके बाद रवि कुमार ने ग्रामीण इलाकों से ब्याज पर पैसा लेकर दुर्गावती बाजार के सबसे गंदे स्थान को साफ किया तथा वहीं एक चमकीले की झोपड़ी लगाकर ब्याज के पैसे से कंप्यूटर खरीद ऑनलाइन और फोटो कापी का काम करना शुरू कर दिया.
उसके पिता शिवानंद प्रसाद गुजरात में एक निजी कंपनी में काम करते थे, जिनके बल पर रवि कुमार 2012 में हाई स्कूल, 2015 में आईएससी एवं दो हजार अट्ठारह में बीएससी की सभी परीक्षाएं प्रथम श्रेणी मैथ ऑनर्स के साथ पास किया और छह महीने की कंप्यूटर कोर्स की पढ़ाई पूरी की.
लेकिन लॉकडाउन लगने के बाद घर की हालत बिल्कुल बिगड़ गई. पिता पुत्र के नौकरी छूट जाने के बाद आज परिवार चलाना मुश्किल हो गया है.
घर पर मात्र 5 डिसमिल जमीन के साथ कुछ भी नहीं है. चुनावी वर्ष में बिहार सरकार अपने चुनाव में व्यस्त है, लेकिन सरकार चाहे राज्य की हो या चाहे केंद्र की ऐसे युवाओं का लिस्ट बनाने और बेरोजगारों को रोजगार देने के लिए सरकार के द्वारा में कोई पहल न कोई कदम उठाए गए.
ऐसी परिस्थिति में अब उन युवाओं को सोचना चाहिए कि आने वाली सरकार कैसी होनी चाहिए, जो आपत्ति काल में घर में बैठे युवाओं की तरफ एक नजर भी देखना मुनासिब नहीं समझ रही हो.
सरकार यह नहीं सोच पाई कि आखिरकार जिस गरीब परिवार की नौकरी छुटी लॉक डाउन में घर गए. उनका परिवार अब कैसे चलता होगा.
इसलिए समाचार पत्र के माध्यम से उन नौजवानों का ध्यान एक बार आकृष्ट कराना चाहता ,जो लॉकडाउन और बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं.
Report:संजय मल्होत्रा