किसानों के साथ-साथ आदिवासियों के अधिकार व पहचान को लेकर एआईपीएफ ने उठायी मांग

किसानों के साथ-साथ आदिवासियों के अधिकार व पहचान को लेकर एआईपीएफ ने उठायी मांग

Hindi Samachar/चन्दौली

जनपद के चकिया व नौगढ़ तहसील में वनाधिकार कानून के तहत जमा हुए 14088 दावों में से 13998 दावे को खारिज कर दिया गया। 

बातचीत करते हुए अजय राय, फोटो-pnp

चंदौली। जनपद के चकिया व नौगढ़ तहसील में वनाधिकार कानून के तहत जमा हुए 14088 दावों में से 13998 दावे को खारिज कर दिया गया। इनमें से ज्यादातर दावे कोल ,खरवार, गोड़, और चेरो आदिवासी जनजाति के लोगों के थे, क्योंकि वही जातियाँ जंगल की जमीन पर पुश्तैनी रुप से बसी हुई हैंं और आज भी अपनी जिंदगी को चलाने के लिए निर्भर है। यदि इन जातियों को आदिवासी का दर्जा मिला होता तो निश्चित रूप से आज वनाधिकार कानून में इन्हें अपनी पुश्तैनी जमीन पर पट्टा भी प्राप्त हो गया होता।
आश्चर्यजनक पहलू तो यह है कि कोलो को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की संस्तुति 1965 में ही भारत सरकार की गठित लोकर समिति ने कर दी थी। इसके बाद 2004 और 2013 में बकायदा जांच कराकर कोल को आदिवासी का दर्जा देने की संस्तुति उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा केन्द्र सरकार को भेज दिया।

 इसके बाद कई सरकारें बनी और कोल जाति के सांसद व विधायक भी बने लेकिन कोल जाति को आदिवासी का दर्जा देने की फ़ाइल ठंढे बस्ते में डालते गए।

 मोदी सरकार ने तो कोलो को आदिवासी का दर्जा देने के सवाल पर हमेशा मौन साध रखा। सरकार में बने मोदी को कई साल हो गए लेकिन इस सरकार ने कोलो को आदिवासी का दर्जा देने पर कुछ नहीं किया। 

यह आरोप एआईपीएफ के राज्य कार्य समिति सदस्य अजय राय लगाते हुए कहते हैं कि चन्दौली जनपद के गोड़ खरवार व चेरो आदिवासियों का ऐसा हाल है। यह जातियाँ वाराणसी जनपद में आदिवासियों की श्रेणी में प्रशासनिक चूक की वजह से शामिल हो गयी।

वास्तव में यह जातियाँ चन्दौली जनपद में रहती हैं जो वाराणसी जनपद का पूर्व में हिस्सा था।यह दु:खद है कि पूर्व और वर्तमान सांसद भी इनके बीच से आते हैं लेकिन आदिवासी पहचान और सम्मान के इस सवाल पर इनके मुंह से आवाज भी नहीं निकली। 

वहीं सपा-बसपा को केवल इनके वोट से मतलब रहता हैं। इनके अधिकार व पहचान और सम्मान के लड़ाई नहीं लड़ती है, उन्होंने कहा कि आदिवासियों की पहचान और सम्मान के सवाल पर ऑल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट ( एआईपीएफ) व नौगढ़ के विकास के लिए लगातार प्रयासरत रहे।

 इसकी पहल अखिलेन्द्र प्रताप सिंह हर समय करते रहते हैं। इस सम्बन्ध में प्रधानमंत्री,भारत निर्वाचन आयोग को पत्रक दिया गया है और हाल ही में कुछ साल पहले दिल्ली में आयोजित विशाल किसान मुक्ति मार्च के अवसर पर जनजाति कार्य मंत्रालय,भारत सरकार के सचिव से मिलकर कार्रवाई करायी गयी।
 
 इन्हें उम्मीद है कि आदिवासियों के लिए विधान सभा में सीट आरक्षित कराने और वनाधिकार कानून में हाईकोर्ट से मिलीं, इस जीत की तरह इस अधिकार को प्राप्त किया जायेगा।

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