किसानों की दुर्दशा...प्यारा नाम है उसका – देश

किसानों की दुर्दशा...प्यारा नाम है उसका – देश

संस्कारों की अरगनी पर टंगा, एक फटा हुआ बुरका
कितना प्यारा नाम है उसका – देश.


जो मुझको गंध और अर्थ और कविता का कोई भी शब्द नहीं देता,
सिर्फ़ एक वहशत, एक आशंका और पागलपन के साथ,
पौरुष पर डाल दिया जाता है, ढंकने को पेट, पीठ, छाती और माथा.

उपरोक्त लाइनों को जब दुष्यंत ने लिखा होगा तो यकीनन देश का कर्णधार उस वक्त इस दिखावटी देशप्रेम के वहशीपन और अंध राष्ट्रप्रेम से कोसों दूर रहा होगा.

वरना अपना हक मांग रहे लाखों किसानों की भीड़ पर आँसू गैस के गोले बरसाना, इस कड़ाके की ठंड में पानी की बौछार और वो कहीं सिंहासन तक न पहुँच जाएं इसके लिए सड़कों को खोद देना और बिना उनकी मांगों को सुने, उनसे बात किए पूरी भीड़ को एक लाइन में खालिस्तानी करार दे देने वाले मीडिया, सत्ता के मुलाजिम और सोशल मीडिया पर साइनाइड की उलटी करते भाड़े के टट्टुओं के लिए एक शायर पर देशद्रोह का ठप्पा लगा उसे देश निकाला दे देना शायद बहुत आसान होता है.

लेकिन जब बंजर भूमि के वक्ष को चीरकर अन्न उगा सम्पूर्ण देश का पेट भरने वाले किसानों को आवाज उठाने पर गाली और हक मांगने पर गोली मिलने लगे तो यह जरूरी हो जाता है की कलम की धार को शब्द रूपी हथौड़े की मार से शमशीर की तरह ज्यादा हीं पैनी कर दी जाए जो आपके अंहकार के छाती पे एक प्रबल वार हो.


अरे साहब आपका क्या जाता है इन किसानों से बात करने में आपके पास और कोई दूसरा रास्ता है भी नहीं, क्यूँकि आप इन किसानों को डरा नहीं सकते आप पानी की धार से किसे डराने का प्रयास कर रहें हैं उन्हें जो पानी के वेग को मोड़ के छोटे छोटे क्यारियों में बांट के अपने खेत की सिंचाई करते हैं

 या उस आँसू गैस से जिससे भयंकर धुंध को वो हर पूस की रात में कन्धे पे फावड़ा रख के खेत की तरफ निकल के चिर देते हैं इनका तो गोलियां भी कुछ नही बिगाड़ सकती 

क्योंकि इन्ही के परिवार से वो सूरमा निकलते हैं जिन्हें सीमा पे सीना ताने खड़े देख गोलियां भी अपना रुख मोड़ लेती हैं,

साहब सड़कों के गड्ढे भी इनके आगे बौने है शायद आप भूल रहे हो कि ये वही है जो खेत में गढ्ढे बना कर अपने पौरुष के बल पे अरमानों के बीज बोके पसीने से सींच के देश का पेट पालते हैं.

अपने सत्ता के मद में इतने चूर मत हो जाइए की इनकी बातें भी सुननी आपको नागवार लगे और आप इन्हें खलिस्तानी कहते हैं.

 एक बार अपनी हिटलर शाही भूल के इनके बीच जाइये और इनको समझिए क्यूँकि वो किसान कभी उपद्रवी नहीं हो सकता जो धरती को अपनी माँ कहता हो और हर फसल को अपने बच्चे की तरह पालता हो.

 अगर आपको संदेह है कि ये देश विरोधी कारवाई है और इसमें कुछ उपद्रवी तत्व हैं तो आप देश के ऊंचे पद पे विराजमान हो आपमें इतनी परख तो है ही कि आप परख सकते हो कि कौन उपद्रव कर रहा है और कौन अपनी मांग लेकर आया है.

 वरना फिर बेकार है आपका ये दम भरना की आप सब जानते हो.

इनके बीच जाइये, इनकी बात सुनिये अपनी सुनिये ये किसान है समझेंगे जरूर क्यूँकि ये पौधों की भी भाषा समझते हैं फिर आप तो इंसान हो.

और इन्हें उपद्रवी और ना जाने क्या क्या कहना बन्द करिये अगर ये बगावत पे उतर आए तो जो धरती का सीना चिर सकते हैं वो अपने पे आ गए तो आपसे रुकने वाले नहीं है और उसी धरती को खोद के ऐसा गढ्ढा तैयार कर देंगें की आप धरातल में चलें जायेंगे
अपनी कुर्सी को कुछ पल के लिए  छोड़िए और इनकी बातों को सुनिये ये राजनीति करने वाले नहीं हैं.

इन्हें पानी ,खाद ,बीज ,हल ,तेल 
निराई गुड़ाई और कटाई के अलावा फुर्सत हो तब न ये राजनीति करेंगें.

साहब और ये सब कर सकते हैं तो आपकी भी निराई गुड़ाई सिंचाई कर सकते हैं
बस आपसे अंत मे यही निवेदन है कि आप इनकी बातों को सुने समझें और इन्हें समझाए और इनकी बातों पे अमल करें न कि तुगलकी फरमान सुनाए.

मुझे ये पूरा भरोसा है कि ये आपकी बातें जरूर समझेगें क्यूँकि इनके पास भी दिल है
जो आपसे और हमसे बहुत बड़ा है
और ये देश की शान हैं.

रिपोर्ट-✍🏻 सौरभ त्रिपाठी
ग्राम पोस्ट- नईबाजार
 चन्दौली, (उत्तर प्रदेश)
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