हिंदी समाचार/चन्दौली
भाजपा सरकार द्वारा पेश बजट करोड़ों बच्चों के भविष्य को अंधकार में धकेलने, उच्च शिक्षा व्यवस्था की तर्ज पर स्कूली शिक्षा को भी निजी व कॉर्पोरेट घरानों के हाथों में सौंपने वाला है।
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एआईपीएफ नेता अजय राय |
हाईलाइट्स:
● बजट में शिक्षा पर भाजपा सरकार की अनदेखी का एआईपीएफ नेता ने लगाया आरोप
●देश के स्कूलों में 17.1 फीसदी शिक्षकों के पद खाली हैं (कुल स्वीकृत 61.8 लाख पदों में से 10.6 लाख पद वर्ष 2020-21के शैक्षणिक साल में रिक्त रहे)
●2016-17 के एक आंकड़े के मुताबिक 18% अध्यापक योग्यता के मामले में शिक्षा अधिकार क़ानून, 2009 के मानकों पर खरे नहीं
Breaking News, चन्दौली। भाजपा सरकार द्वारा पेश बजट करोड़ों बच्चों के भविष्य को अंधकार में धकेलने, उच्च शिक्षा व्यवस्था की तर्ज पर स्कूली शिक्षा को भी निजी व कॉर्पोरेट घरानों के हाथों में सौंपने वाला यह बजट है।
देश के आम नागरिकों के बच्चों को दोयम दर्जे की शिक्षा तक सीमित रखने का यह बजट कहा जा सकता है। यह बजट सार्वजनिक शिक्षा और बाल अधिकारों के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
उन्होंने कहा कि यदि सरकार वाकई सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था को मजबूत और पुनर्जीवित करने का इरादा रखती है, तो उसे पूर्व-प्राथमिक से कक्षा 12 (3-18 वर्ष) तक सभी बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करने हेतु शिक्षा के अधिकार कानून, 2009 के विस्तार के मद्देनजर पर्याप्त बजट आवंटन पर ज़ोर देना चाहिए था।
देश के स्कूलों में 17.1 फीसदी शिक्षकों के पद खाली हैं (कुल स्वीकृत 61.8 लाख पदों में से 10.6 लाख पद वर्ष 2020-21 के शैक्षणिक साल में रिक्त रहे) जिन्हें तत्काल भरे जाने की जरूरत है।
यू डाइस 2016-17 के एक आंकड़े के मुताबिक 18% अध्यापक योग्यता के मामले में शिक्षा अधिकार क़ानून, 2009 के मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं जिनके प्रशिक्षण और नियमितीकरण का काम अभी अधूरा है। ऑनलाइन शिक्षा के कारण भी असमानता की एक बड़ी खाई पैदा हो गई है।
क्योंकि 80 प्रतिशत गांवों में रहने वाले तथा शहरों के गरीब बच्चे, जिनमें लड़कियों की संख्या बहुतायत है, कम्प्यूटर, लैपटॉप, स्मार्ट फोन तथा उचित संसाधनों के अभाव के कारण शिक्षा के दायरे से बाहर होते जा रहे हैं।
कोरोना काल के बाद स्कूलों के खुलने की बात हो रही है और आशंका है कि 25 से 30 फीसदी बच्चे स्कूलों से ड्रॉप आउट हो जाएँगे। दूसरी तरफ, बच्चों को शिक्षा का बुनियादी हक दिलाने वाला शिक्षा अधिकार कानून 2009 11 साल गुजर जाने के बाद भी महज 12.7% स्कूलों में ही लागू किया जा सका है।
अभी भी हमारे 52 से 54 फीसदी स्कूल बुनियादी सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे हैं जहां स्वच्छ पीने का पानी, हाथ धोने की सुविधा व प्रयोग में लाने लायक शौचालय नहीं है।
इन तमाम दुश्वारियों से निपटने के लिए आर्थिक संसाधनों की पहले से भी ज्यादा जरूरत थी। इसमें कोई संदेह नहीं कि आर्थिक संसाधनों के बगैर न तो शिक्षा अधिकार कानून पूरी तरह लागू हो सकता है और न ही हाल में कैबिनेट द्वारा स्वीकार की गई नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का क्रियान्वयन हो सकता है।
लेकिन सरकार अपने बजट अभिभाषण में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के के अनुरूप बनाए जाने वाले 15000 मॉडल विद्यालयों, 750 एकलव्य विद्यालयों और पीपीपी मॉडल में 100 सैनिक स्कूलों के खोले जाने का महज उल्लेख करके देश के करोड़ों–करोड़ बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेना चाहती है।
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