अखिलेश सरकार ने भी कोई कार्रवाई नहीं की और अब भाजपा सरकार भी हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी वनाधिकार लागू करने में हीला हवाली कर रही है।

सांकेतिक फोटो

Highlights:
● यूपी विधान सभा चुनाव में आदिवासियों दलितों के सवालों को बनेगा चुनावी मुद्दा : आईपीएफ
● भाजपा के आदिवासी विरोधी मानसिकता के कारण आज भी आदिवासियों को नहीं मिल रहा उनका अधिकार
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नौगढ़ (चन्दौली)। वनाधिकार कानून के अंतर्गत आदिवासियों को भूमि आवंटन वनाधिकार कानून के अंतर्गत आदिवासियों और वनवासियों को उनके कब्ज़े की ज़मीन का मालिकाना हक दिया जाना था ।
यह कानून 2008 में लागू हुआ था, जिस समय उत्तरप्रदेश में मायावती की सरकार थी। लेकिन अपने आप को दलितों का मसीहा घोषित करने वाली मायावती की सरकार ने आदिवासियों को भूमि आवंटन न करके उनके 81% दावे रद्द कर दिए।
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इसके विरुद्ध आइपीएफ की आदिवासी वनवासी महासभा ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करके अस्वीकृत दावों का पुनर्निरीक्षण कर भूमि आवंटन का आदेश प्राप्त किया था परंतु उस पर अखिलेश सरकार ने भी कोई कार्रवाई नहीं की और अब भाजपा सरकार भी हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी वनाधिकार लागू करने में हीला हवाली कर रही है।
इस प्रकार मायावती तथा अखिलेश व भाजपा की आदिवासी विरोधी मानसिकता के कारण उत्तर प्रदेश के आदिवासी भूमि का अधिकार पाने से वंचित रह गए हैं।
आईपीएफ व मजदूर किसान मंच ने वनाधिकार कानून के अंतर्गत आदिवासियों के अस्वीकृत दावों को पुनर्निरिक्षित कर भूमि आवंटन को चुनावी मुद्दा बनायेगा।
उक्त जानकारी आईपीएफ प्रदेश कार्य समिति समिति सदस्य अजय राय ने दी। उन्होंने कहा कि किसानों के समस्या और मंहगाई के मुद्दे पर आज भी सपा बसपा सड़क पर उतर कर भाजपा का विरोध करने की जगह केवल टूयीट तक सीमित हैं।
सपा इस मुगालते में हैं कि भाजपा के हिन्दूत्व व कारपोर्रेट गठजोड़ का विरोध किए बिना जाति गठजोड़ कर या आधार विहीन नेताओं को पार्टी में शामिल कराकर भाजपा को चुनाव में शिकस्त दे देंगें। जो अंततः एक दिन यह भूल साबित होगा।