अगर आपने भी किसी बैंक से कोई लोन लिया है और उसे चुका नहीं पा रहे हैं तो आपको अपने अधिकारों के प्रति भी जागरूक होना पड़ेगा |
नई दिल्ली। आज के महंगाई के दौर में ज्यादातर लोगों की उनकी आमदनी से बड़ी बचत नहीं हो पाती है। ऐसी स्थिति में उन्हें पैसों की जरूरत पड़ने पर बैंक से लोन लेना पड़ता है, लेकिन कई बार पैसों की तंगी के कारण उसे समय पर वापस चुकाना मुश्किल हो जाता है।
इस स्थिति में लोन के लिए सिक्योरिटी के तौर पर रखे गए एसेट को भी गंवाना पड़ जाता है। बैंक इस परिस्थिति में लोन के लिए गिरवी रखी प्रॉपर्टी को जब्त करने का कानूनी अधिकार का इस्तेमाल करते हैं।
अगर आपने भी किसी बैंक से कोई लोन लिया है और उसे चुका नहीं पा रहे हैं तो आपको अपने अधिकारों के प्रति भी जागरूक होना पड़ेगा, ऐसी स्थिति में आपके पास कई अधिकार बनते हैं, जिनका उपयोग आप जरूरत पड़ने पर कर भी सकते हैं। आइए हम आप को बताते हैं कि वह कौन का अधिकार है।
नहीं दे सकते लोन रिकवरी एजेंट धमकी
यदि आप बैंक से लोन लेकर उसे समय पर नहीं चुका पाते हैं तो बैंक रिकवरी एजेंट के जरिए आपसे पैसे वसूलने लगते हैं। कई बार रिकवरी एजेंट कस्टमर्स को डरा धमकाकर लोन वसूलने की कोशिश भी करते हैं। यह आपके लिए जानना जरूरी हो गया है कि उन्हें कस्टमर यानि आप को धमकाने या बदसलूकी करने का कोई अधिकार नहीं बनता है। वे केवल सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे के बीच ही कस्टमर के घर वसूली को जा सकते हैं।
अगर रिकवरी एजेंट्स कस्टमर्स से किसी तरह की बदसलूकी करते हैं तो इसकी शिकायत बैंक में आप कर सकते हैं। बैंक से सुनवाई न होने पर बैंकिंग लोकपाल से गुहार लगाई जा सकती है। कोई भी बैंक या एजेंट लोन की वसूली करने के लिए बिना नोटिस दिए आपकी प्रॉपर्टी को कब्जे में लेने का कोई अधिकार है।
30 दिन पहले पब्लिक नोटिस जारी करने का नियम
जब कोई कस्टमर 90 दिनों तक लोन की किस्त नहीं चुकाता है तब उस अकाउंट को नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (NPA) में डाल दिया जाता है। लेकिन, इसके साथ ही लेंडर के लिए लोन लेने वाले डिफॉल्टर को 60 दिन का नोटिस जारी करना पड़ता है। अगर नोटिस पीरियड में भी वो लोन का री-पेमेंट नहीं करता है, तब उसकी प्रॉपर्टी को कब्जे में लेने का अधिकार बनता है। जबकि प्रॉपर्टी की नीलामी से 30 दिन पूर्व पब्लिक नोटिस जारी करने के नियम है।
नीलामी करने से पहले उस प्रॉपर्टी की कीमत के लिए नोटिस जारी
लेंडर को अपने डिफाल्ट कस्टमर्स के एसेट की नीलामी करने से पहले उस प्रॉपर्टी की कीमत के लिए नोटिस जारी करता है। जिसमें रिजर्व प्राइस, तारीख और नीलामी के समय का भी जिक्र किया जाता है। ऐसे में कस्टमर को लगता है कि उसके एसेट की कीमत कम लगाई गई है तो वह उसकी नीलामी को चुनौती दे सकता है। वहीं नीलामी होने के बाद भी कस्टमर को लोन की वसूली के बाद बची हुई बाकी रकम पाने का पूरा अधिकार बनता है।