डीएम के समक्ष आईपीएफ के अजय राय द्वारा वनवासियों की समस्याओं को उठाते हुए वनाधिकार कानून लागू करने की मांग की गयी |
🔷आईपीएफ ने चकिया सम्पूर्ण समाधान दिवस पर जिलाधिकारी को सौंपा पत्रक
🔷डीएम ने तत्काल वन में बसें लोगों की बैठक कर उनकी समस्या को सुनकर हल करने का दिया आश्वासन
चकिया,चंदौली | डीएम के समक्ष आईपीएफ के अजय राय ने उठाते हुए वन निवासियों की समस्या व वनाधिकार कानून लागू करने की मांग की गयी |
आज चकिया सम्पूर्ण समाधान दिवस पर आए जिलाधिकारी को वनाधिकार कानून के अनुपालन और वन भूमि पर बसे आदिवासियों व वनाश्रितों की बेदखली पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने के संदर्भ में आज पत्रक दिया है।
आईपीएफ राज्य कार्य समिति सदस्य अजय राय ने दिए पत्रक में जिलाधिकारी अवगत कराया कि नौगढ़ चकिया तहसील में वन भूमि पर पुश्तैनी बसे आदिवासियों और वनाश्रितों के अधिकार / जमीन पर मालिकाना अधिकार देने के लिए बना वनाधिकार कानून लागू करने में हीलाहवाली किया जा रहे हैं पत्रक में कहा गया कि वन भूमि पर पुश्तैनी काबिज आदिवासियों व वनाश्रित जातियों के भौमिक अधिकार के लिए देश की संसद ने अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 (2007) बनाया था।
इस अधिनियम के आधार पर अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 (2007) व संशोधन नियम 2012 का निर्माण भारत सरकार ने किया था। इस कानून के अनुपालन में विधिक प्रक्रिया का अनुपालन नहीं किया गया था।
चंदौली जनपद में ही 14088 दाखिल दावों में 13998 दावों को मनमाने ढ़ग से खारिज कर दिया गया जिनमें से अधिकांश ग्रामस्तर की समितियों द्वारा स्वीकृत थे। हालत यह थी कि खारिज करने के बाद दावेदार को सूचित तक नहीं किया गया। यहां तक की ग्रामस्तर की वनाधिकार समिति द्वारा स्वीकृत किए दावों के प्रपत्र में भी हेराफेरी की गयी है। ऐसी स्थिति में आल इण्डि़या पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) से सम्बद्ध आदिवासी वनवासी महासभा के द्वारा माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में जनहित याचिका सं. 27063/2013 दायर की थी।
जिसमें दिनांक 05 अगस्त 2013 को माननीय मुख्य न्यायाधीश की खण्ड़पीठ ने दिए निर्णय में कहा था कि अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 (2007) व संशोधन नियम 2012 के अनुसार जिले, तहसील व ग्राम सभाओं में वनभूमि पर प्रस्तुत दावों के सम्बन्ध में विधिक प्रक्रिया अपनायी जाएं। निर्णय में दावेदार को ग्रामसभाओं में दावा करने को कहा गया, जिससे कि वनाधिकार समितियां नियमतः संस्तुति कर सकें और यदि कोई दावेदार असंतुष्ट है तो संशोधित नियम 2012 के प्रावधानों के तहत राहत के लिए अगली कार्रवाई कर सकता है।
माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन हेतु हमने कई बार पत्रक जिला प्रशासन को दिए थे। इन पत्रकों पर तात्कालीन जिलाधिकारी महोदयों ने माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के आलोक में वनाधिकार कानून को लागू करने का आदेश भी दिया था। जिसके बाद नौगढ़ समेत चकिया, शहाबगंज विकास खण्डों में ग्रामस्तर की वनाधिकार समितियों का पुर्नगठन भी किया गया। परन्तु खेद के साथ अवगत कराना है कि आज तक प्रक्रिया पूर्ण नहीं हुई और वनाधिकार कानून के तहत पेश दावों का निस्तारण नहीं हुआ।
आपके संज्ञान में लाना चाहेंगे कि वनाधिकार कानून के अध्याय तीन की धारा 5 में स्पष्ट प्रावधान है कि ‘किसी वन में निवास करने वाली अनुसूचित जनजाति या अन्य परम्परागत वन निवासियों का कोई सदस्य उसके अधिभोगाधीन वन भूमि से तब तक बेदखल नहीं किया जाएगा या हटाया नहीं जाएगा जब तक कि मान्यता और सत्यापन प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती है।‘
इस स्पष्ट वैधानिक प्रावधान के बाबजूद नौगढ़ में वन विभाग लगातार पुश्तैनी जमीन पर बसे आदिवासियों एवं वनाश्रितों को जमीन से बेदखल कर रहा है। जिससे सामाजिक तनाव उत्पन्न हो रहा है।
ऐसी स्थिति में जिलाधिकारी से निवेदन किया गया कि माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के आलोक में वनाधिकार कानून की प्रक्रिया को जनपद में प्रारम्भ कराते पुश्तैनी जमीनों पर पेश वनाश्रितों के दावों का निस्तारण कर उन्हें जमीन पर अधिकार दिलाने और जब तक वनाधिकार कानून की प्रक्रिया पूर्ण न हो तब तक बेदखली की कार्यवाही पर रोक लगाने का वन विभाग को निर्देश देने का कष्ट करें।
जिलाधिकारी ने उपजिलाधिकारी चकिया से कहा कि तत्काल वनाधिकार कानून को लागू कराने को लेकर हाईकोर्ट के दिशा के अनुरूप बैठक कर समस्या का निस्तारण करें!