Dalit Vote Bank in Uttar Pradesh : बीजेपी, एसपी, बीएसपी की दलित वोट बैंक पर खास नजर है. कभी-कभी प्रत्यक्ष या एकतरफा व्यक्त किया जाने वाला वोट बैंक बिखरता नजर आता है।
लखनऊ | बीजेपी, एसपी, बीएसपी की दलित वोट बैंक पर खास नजर है. कभी-कभी प्रत्यक्ष या एकतरफा व्यक्त किया जाने वाला वोट बैंक बिखरता नजर आता है। यही वजह है कि बीजेपी को इस बार दलित वोटरों से काफी उम्मीदें हैं. हालांकि, यह देखने वाली बात होगी कि वह भगवा पार्टी को कितना समर्थन देंगे।
लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 80 सीटें सबसे अहम भूमिका निभाती हैं | इस बार राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के बाद बीजेपी को यूपी की सभी सीटें जीतने की उम्मीद है. हालांकि, उसे सपा-कांग्रेस गठबंधन और मायावती की बसपा पार्टी से चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। उत्तर प्रदेश में दलित वोट बैंक का गणित लगातार बिगड़ रहा है. आइये जानते हैं कि इस बार गणित किस पार्टी के पक्ष में रह सकता है।
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— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) February 29, 2024
पिछले 10 वर्षों में कार्य बदल गया
यूपी की राजनीति में दलित वोट बैंक की भूमिका पिछले 10 सालों में काफी बदल गई है. यहां तक कि सभी राजनीतिक दलों को इसके लिए अपनी रणनीति भी बदलनी पड़ रही है. कभी अनियमित या एकतरफा रहने वाला यह वोट बैंक समय के साथ जिस तरह से बिखरा है, उसके पीछे बीजेपी की रणनीति भी काम करती है.
पिछड़ा वर्ग वोट बैंक के बाद मजबूत
उत्तर प्रदेश की राजनीति में 40 फीसदी से ज्यादा ताकत रखने वाले पिछड़े वर्ग के वोट बैंक के बाद सबसे बड़ी ताकत दलित वोट बैंक था | यूपी की आबादी में इसकी हिस्सेदारी तकरीब 21 फीसदी बताया जाता है | यह वोट बैंक 2007 तक मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ मजबूती से जुड़ा रहा। फिर 2012 में बिखराव शुरू हुआ, लेकिन 2014 में किसी को अंदाजा नहीं था कि बीजेपी दलित वोट बैंक में इतना बड़ा बिखराव कर देगी। यहां 66 उपजातियों के इस वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा अब बीजेपी के साथ है |
"ओबीसी और दलितों के लिए किये
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पीएम मोदी ने काम" - Amit Shah
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दलित वोट बैंक का अन्य जातियों में बिखराव
दलित वोट बैंक में सबसे बड़ी आबादी जाटव समुदाय से आती है | यह वोट बैंक अभी भी बहुजन समाज पार्टी का है, लेकिन बाकी जातियों में बिखराव है. इस बची हुई हिस्सेदारी को लेकर बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच खींचतान चल रही है| अखिलेश यादव ने कांशीराम का नाम लेकर इस वर्ग के मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश जरूर की है, लेकिन उन्हें कितनी सफलता मिलेगी, यह नहीं कहा जा सकता. पीडीए फॉर्मूले पर न तो पिछड़ा वर्ग और न ही दलित पूरी तरह से अखिलेश के साथ हैं |