जिस घर में तुलसी शंख तथा शालीग्राम की पूजा होती है उस परिवार में अकाल मृत्यु नहीं होती : डा. बृजेश मणि पाण्डेय

जिस घर में तुलसी शंख तथा शालीग्राम की पूजा होती है उस परिवार में अकाल मृत्यु नहीं होती : डा. बृजेश मणि पाण्डेय

तीन दिवसीय संगीतमय कथा के दूसरे दिन डा. .बृजेशमणी पांडेय जी ने त्रिपुरासुर की कथा का वर्णन करते हुए बताया कि यह कथा पूर्ण रूप से आध्यात्मिक है | 
जिस घर में तुलसी शंख तथा शालीग्राम की पूजा होती है उस परिवार में अकाल मृत्यु नहीं होती : डा.  बृजेश मणि पाण्डेय

By-Diwakar Rai /ब्यूरो चीफ चंदौली / Purvanchal News Print

जिले में विकास खंड बरहनी अंतर्गत स्थित ग्राम सभा कंदवा के शिव मंदिर प्रांगण में चल रहे तीन दिवसीय संगीतमय कथा के दूसरे  दिन में वाराणसी से पधारे विद्वान डा .बृजेशमणी पांडेय जी ने त्रिपुरासुर की कथा का वर्णन करते हुए बताया कि यह कथा पूर्ण रूप से आध्यात्मिक है| 


 त्रिपुर यानी तीन प्रकार की शरीर ही है स्थूल,सूक्ष्म और कारण साधक अपनी साधना के द्वारा स्थूल से सूक्ष्म एवं सूक्ष्म से कारण शरीर में प्रवेश करते हुए आत्म तत्व का ज्ञान प्राप्त करता है शंखचूड की कथा का वर्णन करते हुए बताया कि शंखचूड दंभ नामक राक्षस का पुत्र था पूर्व जन्म में वह भगवान का प्रिय सखा सुदामा नाम का गोप था श्री राधा जी के श्राप से दानव योनि में चला गया शंखचूड की पत्नी का नाम तुलसी था, बाद में यह तुलसी ही तुलसी वृक्ष के रूप में परिणत हुई तुलसी की शरीर ही गंडकी नदी बन गई आज भी शालिग्राम शिला गंडकी नदी से प्राप्त होती है जिस घर में तुलसी शंख तथा शालिग्राम की पूजा होती है उस परिवार में अकाल मृत्यु नहीं होती है | 

जिस घर में तुलसी शंख तथा शालीग्राम की पूजा होती है उस परिवार में अकाल मृत्यु नहीं होती : डा.  बृजेश मणि पाण्डेय

 शालिग्राम शिला को कभी भी तुलसी से अलग नहीं करना चाहिए ऐसा करने से कालांतर में पारिवारिक वियोग का दुख सहन करना पड़ सकता है यज्ञदत्त दीक्षित नाम का एक ब्राह्मण था जिसके पुत्र का नाम गुणनिधि था कालांतर में वह जुआ खेलने लगा अपनी सारी संपत्ति नष्ट कर दिया पिता को जब यह समाचार ज्ञात हुआ तो उसने पुत्र और पत्नी दोनों का परित्याग कर दिया | 


भूख प्यास से व्याकुल गुणनिधि भोजन की तलाश में शिव मंदिर में गया पूजा करने वाले लोग जब सो गए तब उसने अपना कपड़ा फाड़ कर बुझ रहे दीपक की बत्ती बनाया बत्ती बनाने के पीछे शिव भक्ति कारण नहीं थी वह तो शिवप्रसाद को देखने के लिए बत्ती बढ़ाया था पूजा करने वालों के सो जाने के बाद शिव नैवेद्य लेकर वह जा रहा था पैर के लगने से लोग जाग गए उसे मारा और वह अंधा हो गया कालांतर में मृत्यु होने के बाद शिव मंदिर में प्रकाश करने के कारण उसे शिवलोक की प्राप्ति हुई तीसरी जन्म में यही गुणनिधि धनाध्यक्ष कुबेर बना ऐसी भगवान शिव की कृपा उसे प्राप्त हुई। 


कथा श्रवण करने अच्युतानंद त्रिपाठी, अनिल सिंह, राम जी,  बाबूनंदन, बलराम पाठक, श्यामलाल, बीरेंद्र यादव, शिवशंकर, हरीनाम, अंजनी राय, श्रीमती धर्मा राय, मंजू शर्मा, रीना, गीता, जानकी, लखरानी आदि श्रोतागण उपस्थित रहे


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