शिव इतने दयालु हैं कि शिव पुराण की कथा सुनने से बड़े से बड़े पापी का उद्धार हो जाता : बृजेश मणि

शिव इतने दयालु हैं कि शिव पुराण की कथा सुनने से बड़े से बड़े पापी का उद्धार हो जाता : बृजेश मणि

तीन दिवसीय संगीतमय कथा में विद्वान डा.बृजेशमणि पांडेय जी ने कहा - " शिव इतने दयालु हैं कि शिव पुराण की कथा सुनने से बड़े से बड़े पापी का उद्धार हो जाता है | " 

शिव इतने दयालु हैं कि शिव पुराण की कथा सुनने से बड़े से बड़े पापी का उद्धार हो जाता : बृजेश मणि
शिव इतने दयालु हैं कि शिव पुराण की कथा सुनने से बड़े से बड़े पापी का उद्धार हो जाता : बृजेश मणि

By-Diwakar Rai / ब्यूरो चीफ चंदौली / Purvanchal News Print 

जिले के विकास खंड बरहनी में स्थित ग्राम सभा कंदवा के शिव मंदिर प्रांगण में चल रहे  तीन दिवसीय संगीतमय कथा के प्रथम दिवस में वाराणसी से पधारे विद्वान डा.बृजेशमणि पांडेय जी ने  देवराज नामक ब्राह्मण के उद्धार की कथा का वर्णन करते हुए बताया कि भगवान शिव इतने दयालु हैं कि बड़े से बड़ा पापी का उद्धार शिव पुराण की पावन कथा सुनने से हो जाता है | 

शिव प्रसाद ग्रहण करने के बारे में बताया कि जहां-जहां चण्ड अर्थात गोसाई का अधिकार है वहां का प्रसाद ग्रहण करना उचित नहीं है जहां चण्ड का अधिकार नहीं है उस प्रसाद को भक्ति से ग्रहण करना चाहिए बाण लिंग, लौह लिंग, सिद्ध लिंग, स्वयंभू लिंग तथा संपूर्ण प्रतिमाओं में चण्ड का अधिकार नहीं है जो लिंग के ऊपर का द्रव्य है वह अग्राह्य है और जो लिंग के स्पर्श से पृथक है उसे पवित्र जानना चाहिए भगवान शिव ने दिव्य सहस्र वर्ष तक तप करने के अनन्तर अपनी लीला से नेत्रों को जोर से बंद किया जिससे उनके नेत्रों से जल के बिंदु गिरे। 

शिव इतने दयालु हैं कि शिव पुराण की कथा सुनने से बड़े से बड़े पापी का उद्धार हो जाता : बृजेश मणि

उन आंसुओं से ही रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए जो रुद्राक्ष आंवले के फल के समान है वह श्रेष्ठ है बेर के फल के आकार का रुद्राक्ष मध्यम तथा चने के आकार का अधम है शिव पुराण के अनुसार नारद मोह का वर्णन करते हुए व्यासजी ने बताया कि  स्वयंभूके जितेंद्रिय होने का घमंड नहीं करना चाहिए देवर्षि नारद का यही घमंड उन्हें अंतत: वानर का मुख प्रदान कर देता है गीता में भी लिखा है कि साधक जब स्त्रियों का संग करता है तब उसके अंदर भोग और वासना उत्पन्न हो जाती है और वासना के पूर्ण न होने पर क्रोध उत्पन्न होता है क्रोध के वशीभूत उचित अनुचित का विवेक मर जाता है विवेक का नाश हो जाने से व्यक्ति का चारित्रिक विनाश हो जाता है | 

अतः हमें कुसंग से बचने का प्रयास करते हुए कभी भी स्वयं के किसी गुण पर अभिमान नहीं करना चाहिए। कथा श्रवण करने वाले बलराम पाठक वेदप्रकाश राय डॉ जे.एन.राय हरिवंश राय अशोक गुप्ता अनिल सिंह शीला, रीना,मंजू शर्मा बड़ी संख्या में कथा प्रेमी उपस्थित रहे।

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