जब भी हम बीमार होते हैं तो शीघ्र स्वस्थ होने की अभिलाषा लेकर नामी अस्पतालों में जाते हैं। लेकिन वहां के चिकित्सक को हम साक्षात् भगवान् का स्वरूप समझते है मगर वह डाक्टर के भेष में सौदागर निकल रहे हैं।
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फोटो - आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी |
धन कमाने की बढ़ी लोलुपता, नामी गिरामी चिकित्सा प्रतिष्ठानों के 45 प्रतिशत चिकित्सक लिखते हैं गलत पर्चा
सकलडीहा, चंदौली। जब भी हम बीमार होते हैं तो शीघ्र स्वस्थ होने की अभिलाषा लेकर नामी अस्पतालों में जाते हैं। लेकिन वहां के चिकित्सक को हम साक्षात् भगवान् का स्वरूप समझते है मगर वह डाक्टर के भेष में सौदागर निकल रहे हैं। जो अधिक धन कमाने की लोलुपता को लेकर प्रतिबंधित अंग्रेजी दवाओं को खिलाने से बाज नहीं आ रहे हैं।
यह उक्त जनजागरुकता फैलाने वाले विचार को आयुष ग्राम चिकित्सालय चित्रकूट धाम के संस्थापक आचार्य डा. मदन गोपाल वाजपेई जी ने अपने शिष्यमंडली के बीच व्यक्त किया। आगे एक सरकारी रिपोर्ट का खुलासा करते हुए बताया कि देश व प्रदेश की महत्वपूर्ण स्वास्थ संस्थानो के 45 प्रतिशत चिकित्सक मरीजों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। इसमें दिल्ली एम्स, सफदरगंज अस्पताल, बड़ौदा मेडिकल कॉलेज, मुम्बई जीएसएमसी, ग्रेटर नोएडा का सरकारी मेडिकल कॉलेज, सीएमसी वेल्लोर, पीजीआई, इन्दिरा गाँधी मेडिकल कॉलेज पटना आदि शामिल हैं।
यह रिपोर्ट कोई छोटी एजेंसी नहीं बल्कि देश की आईसीएमआर (इण्डियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) जैसी वैज्ञानिक, प्रतिष्ठित और सरकारी संस्थान ने बीते 12 अप्रैल को एक चर्चित हिंदी दैनिक समाचार पत्र के मुख्यपृष्ठ पर प्रकाशित कर सभी को चौका दिया है। रिपोर्ट में बताया गया कि ये डॉक्टर आधा-अधूरा पर्चा लिख रहे हैं, अनावश्यक दवाइयाँ भी लिख रहे हैं। जो दूसरे रोग को पैदा कर रही हैं। साथ में यह दवाएं शरीर को भारी क्षति पहुँचा रही हैं। पैंटाप्राजोल, रोबोप्राजोल, डोमपेरिडोन और एंजाइम दवायें धुँआधार लिखी जा रही हैं। जो स्वास्थ्य के लिए घातक साबित हैं। सबसे खराब स्थिति यह पायी गयी है कि लिखित पर्चों में एक भी पर्चा भारतीय मानकों के अनुरूप नहीं मिला।
बल्कि कुछ पर्चे अमेरिकन एसोसिएशन के दिशा- निर्देशों, अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन, अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन तथा अन्य विदेशी मेडिकल एसोसिएशन के निर्देशों पर आधारित पाए गये हैं। यह कारनामा कोई छोटे चिकित्सक नहीं बल्कि बड़ी-बड़ी डिग्री धारक वाले करीब 18 वर्षो से प्रैक्टिस कर रहे चिकित्सको का हैं। ब्लडप्रेशर, श्वसनतंत्र, पेट के रोग और डायबिटीज के पर्चे तो सर्वाधिक गड़बड़ थे। सच बात है कि किसी भी डॉक्टर का एलोपैथिक पर्चा देखिए उसमें पैन-40, पैंटाप्राजोल, ओमेप्रोजाल या रेबोप्राजोल जो एक बार खाली पेट खायी जाती है।
लेकिन इन दवाओं को लंबे समय तक चलाया जा रहा है। जबकि इन दवाओं के निर्देश में साफ लिखा रहता है कि कम समय के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए। क्योंकि ये दवायें किडनी रोग की समस्यायें दे सकती हैं। किन्तु कैसी विडम्बना है कि किडनी के डॉक्टर ही इन दवाओं को लिख रहे हैं। सोचनीय और सावधान योग्य बात यह है कि आईएमसीआर ने जब सरकार के शीर्ष इन 13 चिकित्सा संस्थानों के डॉक्टरों की यह दशा पायी तो प्राइवेट नर्सिंग होम्स और हॉस्पिटल्स में क्या चल रहा होगा। यह एक यक्ष प्रश्न बनकर खड़ा हो गया है। आज ऐसे मकड़ जाल में फसते जा रहे हैं कि एलोपैथ पर ही निर्भर हो गये हैं।
अब हम सभी यदि एक होकर इस अंधेर नगरी, चौपट राजा का विरोध नहीं करेंगे तो उनकी ऐसी चांदी कटती रहेगी। वहीं विरोध की कड़ी में आयुष ग्राम चिकित्सालय ट्रस्ट चित्रकूट धाम अपने आयुष ग्राम मासिक पत्रिका के माध्यम से जनजागरुकता अभियान चलाने की जंग छेड़ रखा है। इस अभियान का जनमानस में समर्थन भी मिलने लगा है। हमारा विश्वास है कि प्रभु श्रीराम जी की इस तपोभूमि चित्रकूट धाम से चलाया जा रहा मानव कल्याणकारी अभियान जरूर सफल होगा।
जनमानस की आवाज को अब तो सर्वोच्च न्यायालय को इस मानवघाती प्रकरण को स्वत: संज्ञान लेना चाहिए जिससे ऐसे डॉक्टरों का लाइसेन्स रद्द करते हुए चिकित्सा सेवा पर पूर्ण प्रतिबंध लगा देना चाहिए। आईएमए ने एलोपैथ और एलोपैथी डॉक्टरों को गलत कहने पर स्वामी रामदेव को सुप्रीम कोर्ट तक ले गयी। लेकिन इन एलोपैथ चिकित्सको कोकब सुप्रीम कोर्ट घसीट कर ले जायेगी। यह प्रश्न सबके सामने खड़ा हो गया है। जिससे मानवता घातियों को सबक मिल सके।
वहीं अब अपनी वैदिक चिकित्सा पद्धति, अपने वैदिक स्वास्थ्य नियम, खान-पान आदि को समझना होगा और स्वयं परिवर्तित होना होगा। हम सभी का पूरा प्रयास यही होना चाहिए कि कोई रोगी होने ही न पाये और यदि हो जाय तो उसे वैदिक चिकित्सा के माध्यम से रोग को जड़ से मिटाया जाना चाहिए।