महान आध्यात्मिक महागुरु आचार्य डा. मदन गोपाल वाजपेयी जी ने अपने शिष्यों के बीच इस नवरात्र में साधना के माध्यम से स्वास्थ्य अर्जन करने का विधान बताया है।
सकलडीहा, चंदौली / पूर्वांचल न्यूज प्रिंट । आज सर्वत्र भीषण अशांति छाई हुई है। दुर्बलता, निराशा, शक्तिहीनता, का संगम है। समाज में हिंसा और भ्रष्टाचार आदि प्रवृत्तियां बढ़ती जा रही हैं। जिसके परिणाम स्वरूप लोग रोग और शोक से ग्रसित हो रहे हैं। इसका एकमात्र कारण साधना से विमुख होना है।
यह उक्त विचार आयुष ग्राम चिकित्सालय चित्रकूट धाम के संस्थापक व हजारों शिष्यों को सनातन धर्म और संस्कृति से बोध कराने वाले महान आध्यात्मिक महागुरु आचार्य डा. मदन गोपाल वाजपेयी जी ने अपने शिष्यों के बीच इस नवरात्र में साधना के माध्यम से स्वास्थ्य अर्जन करने का विधान बताया है। आगे कहा कि हांथ में कलावा बांध लेना, माथे पर लाल पट्टी बांधलेना, किसी मंदिर की यात्रा कर लेना साधना नहीं है।
साधना भारतीय चिकित्सा की वैदिक विधि के सिद्धांत पर आधारित है। जैसे गुरु पूर्णिमा, श्रावणी, शरद पूर्णिमा, विजयादशमी, दीपावली, होली आदि पर्व पर समय का ऐसा कालचक्र वातावरण निर्मित करता है कि इस समय पर किया गया आराधना, साधना, उपासना विशेष प्रभावकारी होते हैं। जिसका प्रभाव शारीरिक तथा मानसिक स्तर पर चिरकाल तक बना रहता है। हमारे ऋषियों, मुनियों, पूर्वजों और आचार्यों ने कालचक्र के अनुसार जो उपासना पर्व बनाया है। वह पूर्ण रूप से वैज्ञानिकता पर आधारित हैं। जिसमें शरीर, मन, बुद्धि, चेतना को विशेष प्रभावित करते हैं।
इन्हीं में से वसंत नवरात्र भी एक है जो शक्ति अर्जन के उपासना, आराधना का महापर्व है। इस ऋतु में कफ दोष बढ़ता है। जिसके कारण आलस्य, भारीपन, जड़ता, निद्रा, मूढ़ता आदि का शरीर में विकार उत्पन्न होता है। जो बीस प्रकार के रोगों की उत्पत्ति करता है। इससे बचाव के लिए शास्त्रीय विधान है कि नववर्ष में हर घर में स्नानादि करके पवित्र होकर ध्वजारोहण करना चाहिए और नीम के कोमल पत्ते, पुष्प बराबर बराबर लेकर स्वाद के अनुसार कालीमिर्च, सेंधा नमक, हींग, जीरा और अजवाइन मिलाकर खालीपेट सेवन करना चाहिए।
वहीं साधना के दौरान इंद्रिय संयम, मन संयम, विचार संयम, अर्थ संयम और आहार - जल संयम परम आवश्यक है। व्रत साधना में फलाहार सबसे अच्छा है। लेकिन ताजा फल ही होना चाहिए। शुगर रोगियों को टमाटर, संतरा, बादाम (12 घंटा पूर्व भिगोया) और छाछ का सेवन करना चाहिए। मन शांति के लिए जप करना सबसे श्रेष्ठ है।
प्रातः काल और संध्याकाल यथाशक्ति गायत्रीमंत्र का जप करना आवश्यक है। सबसे अच्छा गुरु प्रदत्त मंत्र का श्रद्धा और विश्वास के साथ अधिक से अधिक जप करना चाहिए।