देश की आजादी के समय भारत के शासक वर्ग ने कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को शासन चलाने की नीति के रूप में ग्रहण किया था।
● यूपीएस कर्मचारियों के जमा धन को लूटने की नीति कहते हुए आईपीएफ नेता अजय राय ने उठाया सवाल
● कहा - सरकार कल्याणकारी राज्य की घोषित जिम्मेदारी से पीछे हट रही
चंदौली / पूर्वांचल न्यूज़ प्रिंट: देश की आजादी के समय भारत के शासक वर्ग ने कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को शासन चलाने की नीति के रूप में ग्रहण किया था। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा जैसे विभिन्न आयाम सरकार की जिम्मेदारी थी।
इसी के तहत कर्मचारियों की न्यूनतम आवश्यकता के अनुसार वेतन और सेवानिवृत्ति के बाद वृद्धावस्था में सम्मानजनक जीवन जीने के लिए गैरअंशदायी पेंशन योजना को स्वीकार किया गया था।
आईपीएफ राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य अजय राय ने यूपीएस कर्मचारियों के जमा धन लुटने की नीति हैं, इसलिए पुरानी पेंशन बहाल करें सरकार |
इस पुरानी पेंशन व्यवस्था में कर्मचारियों को कोई अंशदान नहीं देना पड़ता और 20 साल की सेवा पूरी करने के बाद अंतिम वेतन का 50 प्रतिशत पेंशन के रूप में मिलता था। उसकी मृत्यु के बाद उसके परिवारजनों को इसका 60 प्रतिशत पेंशन के रूप में प्राप्त होता था। इसके अलावा यह भी प्रावधान था कि कर्मचारी जीपीएफ (जनरल प्रोविडेंट फंड) में अपनी सेवा काल में अंशदान जमा करता था जो सेवानिवृत्ति के वक्त में ब्याज सहित उसे प्राप्त हो जाता था। इसके अलावा कर्मचारियों को ग्रेच्युटी का भी भुगतान किया जाता था।
आईपीएफ नेता ने कहा कि 1991 में नई आर्थिक औद्योगिक नीतियों आने के बाद सरकार ने कल्याणकारी राज्य की अपनी जिम्मेदारियां से पल्ला झाड़ना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे जो सुविधा मजदूरों और कर्मचारियों को मिलती थी उनमें एक-एक कर कटौती की जाती रही। 2004 में अटल बिहारी वाजपेई की एनडीए सरकार ने पुरानी पेंशन योजना को खत्म करके नई पेंशन योजना चालू किया।
इस पेंशन योजना में कर्मचारियों का अंशदान 10 प्रतिशत रखा गया और सरकार शुरुआत में 10 प्रतिशत का अंशदान करती थी जिसे बाद में बढ़ाकर 14% कर दिया गया। इससे सेवाकाल में जो पूरी धनराशि बनती थी उसका 60 प्रतिशत कर्मचारियों को सेवानिवृति के समय मिल जाता था और शेष 40 प्रतिशत को शेयर मार्केट में लगाया जाता था और उसके लाभांश के रूप में पेंशन दी जाती रही।
इस योजना के कारण बहुत सारे कर्मचारियों को 5000 से भी कम पेंशन प्राप्त हुई।राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब तथा हिमाचल प्रदेश की राज्य सरकारों ने पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने की बात की है। जिसमें से राजस्थान में भाजपा सरकार बनने के बाद ओपीएस को वापस ले लिया गया। उन्होंने कहा कि भाजपा और आरएसएस की सरकार समझ रही है कि कर्मचारियों को नाराज करके वह देश में लम्बे समय तक राज नहीं कर सकती है।
इसलिए मोदी सरकार ने वित्त सचिव टी वी सोमनाथन के नेतृत्व में नई पेंशन स्कीम में सुधार के लिए एक कमेटी का भी गठन किया। हालांकि इस कमेटी के अध्यक्ष द्वारा पुरानी पेंशन को लागू करने से साफ इनकार कर दिया गया और इसे सरकार पर बड़ा वित्तीय भार बताया।
उन्होंने कहा कि अभी मोदी सरकार ने 24 अगस्त 2024 को यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) की घोषणा की है। इस पेंशन स्कीम में सुनिश्चित पेंशन के नाम पर कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति वर्ष के 12 महीनों में प्राप्त वेतन के बेसिक पे के 50 प्रतिशत को पेंशन के रूप में देने का प्रावधान किया गया है। शर्त यह है कि कर्मचारी 25 साल की नौकरी पूरा करें तभी उसे यह पेंशन मिलेंगी !सरकार का यह प्रावधान अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के कर्मचारियों के हितों के पूर्णतया विरुद्ध है।
उन्होंने कहा कि पुरानी पेंशन देने में सरकार का संसाधन ना होने का तर्क भी बेमानी है। इस देश में संसाधनों की कमी नहीं है यदि यहां कॉरपोरेट और सुपर रिच की सम्पत्ति पर समुचित टैक्स लगाया जाए तो इतने संसाधनों की व्यवस्था हो जाएगी कि कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना लागू की जा सकती है। साथ ही साथ शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अधिकार की भी गारंटी होगी।