दही और चूड़ा का संयोजन केवल एक व्यंजन नहीं है, बल्कि यह परंपरा, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक महत्व का संगम है। यह प्रकृति के उपहार और ऋतुओं के बदलाव का उत्सव मनाने का प्रतीक है।
मकर संक्रांति पर लोग दही और चूड़ा क्यों खाते हैं ?
Dharm- Astha / Purvanchal news Print : मकर संक्रांति पर दही और छुड़ा खाने की परंपरा भारतीय संस्कृति में गहराई से जुड़ी हुई है, खासकर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में। इसके पीछे कई सांस्कृतिक, पारंपरिक और स्वास्थ्य से जुड़े कारण हैं |
1. मौसमी और जलवायु संबंधी कारण
सर्दी का अंत: मकर संक्रांति सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का प्रतीक है, जो सर्दियों के कठोर दौर के समाप्ति की ओर संकेत करता है। पाचन में सहायक: दही के ठंडे और पाचन में मददगार गुण इस मौसम में शरीर को संतुलित रखने में सहायता करते हैं।
2. पारंपरिक और पोषण संबंधी महत्व
आसान पाचन: चूड़ा (चिवड़ा) हल्का और आसानी से पचने वाला भोजन है, जो त्योहार के समय आदर्श माना जाता है। पोषण से भरपूर: दही कैल्शियम, प्रोबायोटिक्स और विटामिन से भरपूर होता है, जबकि छुड़ा कार्बोहाइड्रेट का अच्छा स्रोत है, जो सर्दियों में ऊर्जा प्रदान करता है।
3. प्रतीकात्मक महत्व
फसल उत्सव: मकर संक्रांति एक फसल उत्सव है। छुड़ा, जो नए चावल से बनाया जाता है, मेहनत और समृद्धि का प्रतीक है।सादा और सात्त्विक भोजन: दही और छुड़ा का संयोजन सादगी और विनम्रता को दर्शाता है, जो इस पर्व की आध्यात्मिक भावना के अनुरूप है।
4. धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
पुराणिक कथा: हिंदू मान्यताओं के अनुसार, इस दिन दही और चूड़ा का सेवन शुभ माना जाता है और यह भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रतीक है।
5- क्षेत्रीय परंपराएं: बिहार और अन्य क्षेत्रों में इस व्यंजन को गुड़ के साथ खाया जाता है, जो जीवन में मिठास और सकारात्मकता का प्रतीक है।