राज्य में आर्थिक नीति के पाठ्यक्रम को बदलने और पूंजी पलायन को रोकने की जरूरत : अजय राय

राज्य में आर्थिक नीति के पाठ्यक्रम को बदलने और पूंजी पलायन को रोकने की जरूरत : अजय राय

अभी तक सरकार की ओर से कोई आंकड़ा प्रस्तुत नहीं किया गया है और न ही कोई सर्वेक्षण किया गया है | 


चंदौली: बहुत प्रचार हो रहा है कि योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा 13 जनवरी से 26 फरवरी, 2025 तक आयोजित महाकुंभ से राज्य की अर्थव्यवस्था में 3 लाख करोड़ रुपये से अधिक का इजाफा होगा।

अभी तक सरकार की ओर से कोई आंकड़ा प्रस्तुत नहीं किया गया है और न ही कोई सर्वेक्षण किया गया है जिसमें महाकुंभ के कारण राज्य की अर्थव्यवस्था में कोई उल्लेखनीय प्रगति देखी गई हो। वहीं, जनवरी और फरवरी 2025 के जीएसटी संग्रह के आंकड़ों में महाकुंभ फैक्टर नजर नहीं आ रहा है। जीएसटी संग्रह के आंकड़ों से आप अपने निष्कर्ष निकाल सकते हैं ! 

उत्तर प्रदेश में जनवरी और फरवरी 2025 (इन दो महीनों में महाकुंभ का आयोजन किया गया था) में जीएसटी संग्रह 18,671 करोड़ रुपये था। जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में मात्र 2,021 करोड़ रुपये अधिक है। यह सामान्य वृद्धि को दर्शाता है। राष्ट्रीय स्तर पर इसी अवधि में यह वृद्धि 35 हजार करोड़ रुपये है।

गौरतलब है कि इस अवधि (जनवरी और फरवरी 2025) के दौरान जीएसटी लेवी की राज्यवार गणना में उत्तर प्रदेश पांचवें स्थान पर है। वास्तव में, वैश्विक निवेशक सम्मेलन जैसे आयोजनों से लेकर महाकुंभ जैसे आयोजनों तक, एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना आम बात हो गई है। 

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि वर्तमान में राज्य की अर्थव्यवस्था यानि राज्य जीडीपी 27 लाख करोड़ रुपये है जो एक ट्रिलियन डॉलर यानि 85 लाख करोड़ रुपये से बहुत दूर है। इस बीच, 2027 तक इसे हासिल करने का लक्ष्य घोषित किया गया है! सरकार अर्थव्यवस्था को लेकर चाहे जो भी दावे करे, लेकिन यहां स्थिति यह है कि राज्य के नागरिकों द्वारा बैंकों में जमा की गई पूंजी का एक बड़ा हिस्सा अन्य समृद्ध राज्यों में चला जाता है। बेरोजगारी की समस्या भी गंभीर होती जा रही है।

कुल मिलाकर राज्य में आर्थिक नीति की दिशा गलत है। यदि इसमें परिवर्तन किया जाए, विशेषकर पूंजी पलायन को रोका जाए तथा कृषि एवं विनिर्माण क्षेत्र (सूक्ष्म एवं लघु उद्योग) पर जोर देने जैसे उपाय किए जाएं, तो राज्य की अर्थव्यवस्था को गति मिल सकती है तथा आम नागरिकों की बुनियादी समस्याएं भी हल हो सकती हैं। श्रमिकों के अधिकारों के लिए अभियान में इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया जा रहा है।

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