covid-19 से उपजे भूख की पदचाप को रोकने के लिए खर्च हो रहे बेहिसाब धन, जन निगरानी समिति के गठन की उठ रही है मांग

covid-19 से उपजे भूख की पदचाप को रोकने के लिए खर्च हो रहे बेहिसाब धन, जन निगरानी समिति के गठन की उठ रही है मांग



स्वराज अभियान के नेता अजय राय ने कहा है कि  कोरोना संक्रमण के दौरान जान व जहान दोनों बचाने के लिए धन खूब खर्च हो रहा है। मगर इस पर निगरानी भी जरूरी है ताकि कहीं लोगों के मन  में इसके दुरुपयोग की भावना न पनपने पाए। तब कहीं आज मौजूदा समय से अधिक संकट आ जायेगा। उन्होंने आगे कहा कि कोविड-19 जैसी महामारी में कम्युनिटी किचन तथा अन्य विभिन्न माध्यमों से लोगों की आवश्यक आवश्यकता पूर्ति हेतु शासन ने अपने खजाने की मुंह खोलने का दावा कर रहा है। जिसके तहत चाहे जनप्रतिनिधि हो या फिर प्रशासन सभी अपने-अपने तरह से लोगों की आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति करने में लगें हैं लेकिन वास्तव में इसमें कितनी सच्चाई है। यह आम जनमानस के समझ से परे है। सरकार एक तरफ तो कहती हैं गरीब परिवारों में राशन कार्ड  के तहत मुफ्त राशन निर्गत कर दिया हैं जिसके तहत सरकार महीने भर  
अभी एक बार  लोगों में यूनिट के हिसाब से राशन दे भी रही है! वही कम्युनिटी किचन के माध्यम से भी लोगों में लंच पैकेट का वितरण किया जा रहा है। पुलिस प्रशासन से लेकर सत्ताधारी नेताओं सहित कई समाजिक संगठन व व्यक्ति द्वारा क्षेत्र  के  स्थापित किसानों व व्यापारियों से चंदे के रूप में गेहूं चावल  दाल सहित कई चीजे भी इकट्ठा किया गया है। यह सब तो आम जनमानस के हित में उठाया गया एक प्रशंसनीय कदम है , लेकिन कहीं न कहीं एक बात जरूर खटकती है। जहां राशन वितरण के दौरान फोटो  खींचने पर पाबंदी है जो कि उचित भी है लेकिन बिना किसी सोशल ऑडिट  के यह जानकारी कैसे हो पाएगी की किसने कितना किन-किन पात्र व्यक्तियों  के पेट भरने के लिए कितना धन खर्च किया   गयाहै। जहां की आए दिन कहीं न कहीं किसी न किसी माध्यम से शिकायत मिलती रही है की सरकार द्वारा निर्गत धन से कराए गए विकास कार्यों में घोर अनियमितता बरती जाती है। मानक और जमीन पर कराए गए काम का अंतर सीधे-सीधे विपरीत होने का आरोप लगता रहता है ऐसे में क्या सरकारी धन का सच में सही ढंग से पात्र व्यक्तियों के पास वह सुविधाएं पहुंच पा रहे हैं कि नहीं जितना की दावा किया जा रहा है ऐसे  मे अगर सोशल ऑडिट की व्यवस्था नहीं कराई जाती तो निश्चित रूप से सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों में भारी भरकम लूट खसोट की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। अब कागजों में दिखाए जा रहे खर्च में कितनी सच्चाई है इसके लिए निगरानी समिति की गठन करना अत्यंत आवश्यक है क्षेत्र के तमाम प्रबुद्ध जनों ने इस तरफ सरकार का ध्यान आकृष्ट कराया है।