खाद्यान्न को आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से बाहर करने पर विरोध शुरू
Harvansh Patel6/08/2020 10:05:00 pm
◆ खेती किसानी, खाद्यान्न सुरक्षा और आत्मनिर्भरता के खिलाफ है यह सरकारी सोच, किसान करेंगे आंदोलन
चन्दौली /लखनऊ: मोदी सरकार द्वारा प्रमुख कृषि उत्पादों को आवश्यक वस्तु अधिनियम व कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को कानून के दायरे से बाहर किये जाने और मंडी कानून को खत्म करने के फैसले को किसानों के साथ एक छलावा बताया है. किसानों का कहना है कि मोदी सरकार भले ही इन बदलावों को कृषि सुधारों का नाम दे रही हो और इन्हें किसानों के हितों में बताकर अपनी पीठ थपथपा रही है मगर सच्चाई यह है कि इस निर्णय से न तो किसानों को फायदा होगा और न ही जनता इससे लाभान्वित हो सकेंगी. यह कृषि व्यापार करने वाली कम्पनियों की सीधे लूट है. इस लूट पर किसान संगठनों ने अपनी आवाज बुलंद करने का निर्णय लेते हुए अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी है.
मजदूर किसान मंच के प्रभारी अजय राय ने कहा कि खाद्यान्न को आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से बाहर करना खेती किसानी, खाद्यान्न सुरक्षा और आत्मनिर्भरता के खिलाफ है.उन्होंने कहा कि कोरोना संकट से अर्थव्यवस्था को उबारने के नाम पर कृषि क्षेत्र में मंडी कानून को खत्म करने, ठेका खेती को कानूनी दर्जा देने और खाद्यान्न को आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से बाहर करने का फैसला किसान विरोधी है.
अखिल भारतीय किसान सभा के नेता परमानन्द कुशवाहा ने कहा कि ठेका खेती का एकमात्र मकसद किसानों की कीमत पर कॉर्पोरेट पूंजी की लूट और मुनाफे को सुनिश्चित करना है. ऐसे में लघु और सीमांत किसान, जो इस देश के किसान समुदाय का 75% है और जिनके पास औसतन एक एकड़ जमीन ही है, पूरी तरह बर्बाद हो जाएगा और उसके हाथ से यह जमीन भी निकल जायेगी. यह नीति देश की खाद्यान्न आत्म-निर्भरता और सुरक्षा को भी खत्म कर देगी. किसान विकास मंच के नेता राम अवध सिंह ने कहा कि साम्राज्यवादी देश और बहुराष्ट्रीय कंपनियां छोटे और विकासशील देशों में खाद्यान्न पर-निर्भरता को राजनैतिक ब्लैकमेल का हथियार बनाये हुए हैं और वहां के संसाधनों पर कब्जा करने के लिए राजनैतिक अस्थिरता फैलाने का ही उनका इतिहास रहा है. कृषि क्षेत्र में इस परिवर्तन से देश की संप्रभुता ही खतरे में पड़ने जा रही है. उन्होंने कहा है कि वास्तव में इन निर्णयों के जरिये मोदी सरकार ने देश के किसानों और आम जनता के खिलाफ जंग की घोषणा कर दी है, क्योंकि यह किसान समुदाय को खेती-किसानी के पुश्तैनी अधिकार से ही वंचित करता है और उन्हें भीमकाय कृषि कंपनियों का गुलाम बनाता है. ये कंपनियां किसानों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार की शर्तों के साथ बांधेगी, जिससे फसल का लागत मूल्य मिलने की भी गारंटी नहीं होगी.
किसान नेता दुर्गा यादव ने कहा कि मोदी सरकार किसानों की फसल की सरकारी खरीदी करने की व्यवस्था को ही खत्म करना चाहती है और किसानों को स्वामीनाथन आयोग की सी-2 लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देने की सिफारिश को लागू करने से बचना चाहती है.
किसान नेता शिवनारायण बिन्द ने कहा कि ठेका खेती का कई राज्यों में बुरा अनुभव रहा है. पिछले वर्ष ही माजीसा एग्रो प्रोडक्ट नामक कंपनी ने छत्तीसगढ़ के 5000 किसानों से काले धान के उत्पादन के नाम पर 22 करोड़ रुपयों की ठगी की है. जिन किसानों से अनुबंध किया था या तो उनसे फसल नहीं खरीदी या फिर किसानों के चेक बाउंस हो गए थे. गुजरात में भी पेप्सिको ने उसके आलू बीजों की अवैध खेती के नाम पर नौ किसानों पर पांच करोड़ रुपयों का मुकदमा ठोंक दिया था. ये दोनों अनुभव बताते हैं कि ठेका खेती के नाम पर आने वाले दिनों में कृषि का व्यापार करने वाली कंपनियां किस तरह किसानों को लूटेगी.
किसान नेताओं ने सरकार की तीखी निंदा करते हुए किसान संगठनों को भी इसके खिलाफ लामबंद करने की घोषणा की है.