पूर्वांचल: थम नहीं रहे कुम्हारों के आंसू, UP सरकार से नहीं मिली कोई भी मदद
Harvansh Patel6/15/2020 04:01:00 pm
By: Shriram Tiwari/ Sanjay Patel
लखनऊ/गाज़ीपुर: कोविड संक्रमण की वजह से शुरू हुए लॉक डाउन के कारण सभी तरह के उद्योग व व्यापार पर बुरा असर देखने को मिला है. ऐसे में खासकर मिट्टी के बर्तन और खिलौने बनाने वाले कुम्हारों को भी काफी नुकसान झेलना पड़ा हैं.
पूर्वांचल का गाज़ीपुर हो अथवा गाज़ियाबाद सब बराबर है. लॉक डाउन के कारण मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों की जीविका पर काफी असर पड़ा है. गाजियाबाद, बहराइच हो अथवा पूर्वांचल का गाज़ीपुर , चन्दौली हो जहां कोरोना वायरस के कारण यहां के कुम्हारों की स्थिति बहुत बुरी हो गई है. उनके सामने भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो गई है. यहां सब बराबर हो गया है. सरकारी मदद सिर्फ कागजों में चल रही है. सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है. उनके लिए कोई मदद नहीं शुरू की गई. लॉकडाउन के बाद अनलॉक- 01 (Unlock 1.0) लागू की होने के बाद भी इन्हें अपने जीवन को पटरी पर लाने के लिए आर्थिक मदद की जरूरत है. लेकिन इन कुम्हारों के पास अब तक कोई मददगार नहीं पहुंचा है.
पूर्वांचल में चन्दौली के प्रधान प्रजापति कहते हैं कि लॉक डाउन में कुम्हारों का सारा धंधा बंद हो गया है. न तो काम शुरू हो पाया नाही सरकारी मदद मिल सका है. इसी तरह का हाल गाजियाबाद की नगर कोतवाली में रहने वाले कुम्हारों का भी है. उनके आंखों से लगातार आंसू गिर रहे हैं. लेकिन उनकी आर्थिक मदद के लिए न ही कोई राजनेता पहुंचा और न जिला प्रशासन की तरफ से कोई आश्वासन मिला. सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या केवल चंद कागजों में ही गरीब मजदूरों को लाभ मिलेगा या फिर जमीनी स्तर पर कुछ दिखाई देगा.
लॉक डाउन के कारण इनकी बढ़ी परेशानी
बहराइच के जगदीश कुम्हार ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान उनके काम पर काफी असर हुआ. इस माल को खरीदने को कोई भी तैयार नहीं है. गर्मी के कारण केवल मिट्टी के मटके और सुराही बिक रही है. विवाह शादी के अलावा अन्य मांगलिक कार्यों में मिट्टी का प्रयोग फिलहाल पूरी तरह बंद है.
संक्रमण से बचने के लिए लागू हुआ था लॉकडाउन
कोरोना महामारी के कारण पूरे देश में लॉकडाउन लागू रहा. इस कारण सामान्य जीवन पर काफी बुरा असर पड़ा. अभी भी उनके जीवन और रोजगार पर कोरोना का प्रभाव जारी है. इस परिस्थिति में इन कुम्हारों को किसी भी तरह की मदद प्रशासनिक स्तर पर नहीं मिली है. वहीं किसी भी राजनीतिक दल के नेताओं ने उनकी सुध नहीं ली. मदद की दरकार में मिट्टी के कारीगर अभी भी इंतजार में हैं.