रिपोर्ट- संजय मल्होत्रा, कैमूर: हाथी की सवारी कर यूपी के रास्ते बिहार की सियासत में दखल देने के लिए दिल दलबदलू नेताओं की एक लंबी फेहरिस्त है यह खासकर कैमूर के रामगढ़ विधानसभा में. हालांकि सही बात यह है कि बसपा के दावेदार वह भी हैं जिन्हें राजद ने चार बार टिकट दिया और दो बार राजद के टिकट पर चुनाव जीत विधानसभा पहुंचे. और अब तो उन्हें भी बसपा की यारी पसंद आने लगी है. जिले में चारों सीटों पर बसपा से सीधा मुकाबला राजद से ही रहा है. राजद ने ही बसपा को कमजोर करने में कोई कसर नहीं छोड़ा था.
वहीं टिकट के प्रमुख दावेदारों की लिस्ट में हैँ.
खैर 1985 से लेकर 2005 तक रामगढ़ विधानसभा राजद का अभेद किला रहा है. यानी रामगढ़ विधानसभा राजद के लिए मुफीद रहा लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव का नतीजा सभी समीकरणों को ध्वस्त कर गणित और केमिस्ट्री पर आधारित हो गया. और पहली दफा 2015 में समाजवाद की धरती पर भाजपा का कब्जा हो गया.
जानकारों की मानें तो साल 2005 के बाद से ही विकास की पहिया रामगढ़ विधानसभा में ठहर सी गई है.
ख़ैर एक उम्मीद के साथ 2005 में बदलाव की किरण फूटी लेकिन पिछले 5 सालों में विकास पर ग्रहण लगता चला गया. और यह विकास अंधकार में गुमनाम हो गया.
हालांकि रामगढ़ विधानसभा में 300 करोड़ रुपए की योजनाओं की चर्चा सबकी तो नहीं मगर बहुतेरे लोगों की जुबान पर है.
लेकिन इसके उलट चर्चा ,
इस बात की हो रही कि विकास के नाम पर खर्च किए गए सैकड़ों करोड़ों रुपए पनबाहा में समा गया.
चाहे लरमा पंप कैनाल मुख्य नहर की पक्की लाइनिंग का मामला हो या फिर सड़क और पुल पुलिया के विकास का पहिया, बगैर ब्रेक का गतिमान हो गया है. बहरहाल 2009 के लोकसभा चुनाव में रामगढ़ से सिटिंग विधायक जगदानंद सिंह ने लोकसभा बक्सर से चुनाव लड़े और जीते भी तब इस सीट पर अपने सबसे विश्वासपात्र छोटे भैया को टिकट दिलवा दिया.
वे उपचुनाव और आम चुनाव में मामूली मतों से जीते मगर फिर 2015 के चुनाव में वे भाजपा के हाथों हार गए.
फिलहाल भैया के छोटे भाई राष्ट्रीय जनता दल को टाटा बाय-बाय बोल हाथी की सवारी कर ली है. उधर, यूपी की सियासत से चलकर हाथी रामगढ़ के जरिए बिहार की सियासत में सेंध लगाने की फिराक में है.
हालांकि अभी टिकटों को लेकर मारामारी व दावेदारी भी आनी है.
अभी तक गठबंधन और ना ही प्रत्याशियों का ऐलान हुआ है.
तो दूसरी तरफ जगदानंद के बेटे सुधाकर सिंह पिछले एक साल से बिहार की राजनीति से लेकर रामगढ़ की सियासत में जोर लगाए हुए हैं.
कोरोना संक्रमण के दौरान जरूरतमंदों के बीच जाकर राहत सामग्री वितरित करने की बात हो या फिर तेजस्वी भोजनालय के जरिए प्रवासी मजदूरों को भोजन कराने की या फिर संगठन की मजबूती का दिन रात लगे हुए हैं.
वहीं भाजपा को बिहार की सत्ता में करीब 14 साल रहने के बाद भी विकास के बजाय , देश भक्ति राष्ट्र भक्ति , हिंदुत्व भगवा और भाजपा की जो गणित केमेस्ट्री से मेल खाती है.
वही आधार होगा चुनाव जीतने का , लेकिन मतदाता भी 15 साल बनाम 15 साल का हिसाब-किताब लगाए बैठे हैं.
वोटरों को हर एक बात समझ में आती है, 1985 से लेकर 2015 तक क्या था?
और कितना विकास हुआ? इसके इतर 2005 से 2020 तक कैमूर जिले और रामगढ़ में कितना विकास हुआ है और इसका हिसाब-किताब जनता लगाकर बैठी है. विधानसभा के चुनाव में इसका करारा जवाब देगी.