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स्वतंत्रता आंदोलन में दुर्गावती के लोगों की अहम भूमिका थी. हर कोई आजादी आंदोलन में कूदने के लिए आगे था. कइयों ने देश को आज़ाद करने में अपने को बलिदान दे दिया.
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दुर्गावती (कैमूर): देश को आजाद कराने में दुर्गावती प्रखंड के लोगों ने भी अपनी अहम निभाई थी.
स्वतंत्रता आंदोलन में कुछ लौट कर घर आए तो कुछ का शव भी परिजनों को नहीं मिल पाया था.
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी फोटो:pnp |
कुछ प्रखंड मुख्यालय और जिला मुख्यालयों के शिलालेख तक ही सीमित रह गए.
आजादी में भाग लेने वाले शिव जतन गुप्ता आजादी के सन 34 और 42 के आंदोलन में अपने साथी अलियार सिंह ठाकुर, दयाल सिंह, रामनरेश यादव, करीमन लाल, पलकु तिवारी को लेकर कमान संभाले थे. दूसरी तरफ अवधेश कुमार दुबे, लाल बिहारी दुबे, बांके दुबे, भोलाराम, गायत्री चौबे सहित दर्जनों कार्यकर्ताओं को लेकर आजादी के लिए सक्रिय थे.
जिसमें आंदोलनकारी कार्यकर्ताओं का मुख्य नेतृत्व स्वर्गीय दिनेश दत्त पांडे करते थे. दिनेश दत्त पांडे कहते थे क आजादी की लड़ाई के समय हम लोग यह नहीं जानते थे कि घर और परिवार भी हम लोगों के पास है. रात-रात दूर-दूर तक पैदल चलकर आजादी के लिए लोगों को प्रेरित करते थे.
जिससे लोग आंदोलन में जुड़ा करते थे और आंदोलन की कड़ी दिन पर दिन आगे बढ़ती जाती थी. आजादी के सभा में जोश भरा देश भक्ति गीत से स्वतंत्रता सैनिकों का उत्साहवर्धन करने वाले हीरा सिंह ने भी अहम भूमिका निभाई थी.
मंगल देव पांडे जो डाकिया बने रहे वह एक दूसरे स्वतंत्रा सेनानी तक पहुंचाने के लिए अथक प्रयास करते थे. जिनको अंग्रेजों ने फरारी घोषित कर दिया था.
जिनकी मृत्यु अधौरा स्वतंत्रता सेनानियों को डाक पहुंचाते समय जंगल में हो गई थी. जिनकी लाश भी परिजनों को नहीं प्राप्त हुई थी. प्रखंड के दलित समाज से जुड़े भोलाराम अपना अंतिम सांस बांकीपुर जेल में तोड़ा था.
वही गायत्री चौबे को भी अंग्रेजों ने गया जेल में खूब पीटा और उनकी मूछें तक उखाड़ ली गई और फिर पटना के बाकि पुर जेल भेज दिया गया. जहां घायल अवस्था में उनकी मृत्यु हो गई.
जिनका शव भी उनके परिजनों को नहीं सौंपा गया था. इस समय आजादी की लड़ाई चल रही थी. वह समय का वर्णन करते हुए दिनेश दत्त पांडे कहां कहते थे अंग्रेजों की यातनाओं को देखकर रूह कांप जाता था. जिसका परिणाम रहा कि मेरे कान के पर्दे फट गए.
जिसमें पूर्ण रूप से सुन नहीं पा रहा था. स्वर्गीय पांडे जी ने अपने जीवित काल में बताया था कि हम लोगों के बीच रहे विभिन्न साथियों को कई जगह जेल भेजा गया था. मुझे हजारीबाग जेल भेजा गया और वहां से फिर बांकीपुर जेल में शिफ्ट किया गया.
जहां पर भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और उनकी बहन जेल में थे. गांधी जी के व्यक्तिगत आंदोलन में भी दुर्गावती मुझे बुलाया गया था. 41 और 42 में जो क्रांति हुई थी अंग्रेजों के हथियार लूटने में 76 साल की जेल हुई थी. लेकिन काफी जद्दोजहद के बाद कुछ समय सजाएं कम हुई थी.
मेरे साथ बाजार निवासी सत्तार अंसारी ने भी भूमिका निभाई थी. हमारे मुकदमे को हाईकोर्ट के मुख्यमंत्री रहे सत्येंद्र बाबू ने लड़ा था जिसके बाद से सजा कम हुई .जब देश आजाद हुआ और संविधान लागू हुआ तब जाकर हम जेल से बाहर आया और सारा केस हमारे ऊपर से खत्म हुआ था.
वैसे आजादी में बहुत लोगों का योगदान रहा, लेकिन शाहाबाद रेंज के स्वतंत्रता सेनानियों की पहचान को लिखने का काम स्वर्गीय दिनेश गिरी एवं आजादी के दीवाने विधायक तथा स्वतंत्रता सेनानी रहे स्वर्गीय मंगल चरण सिंह को ही प्राप्त था.
ये लोग इसे आजादी के सिपाही का प्रमाण पत्र देते थे. उन्हीं लोगों को सरकार ने पेंशन और सुविधाएं भी देती थी.
Report: Sanjay Malhotra