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बिहार/दुर्गावती (कैमूर): कोरोना काल का तांडव बढ़ते जा रहा है, लगता है कि इस महामारी में जनजीवन सामान्य रूप से कब पटरी पर लौटेगा कुछ कहा नहीं जा सकता है.
ऐसी विषम परिस्थिति में प्राथमिक विद्यालय मिडिल स्कूल हाई स्कूल समेत तमाम प्राइवेट स्कूल भी साथ में बंद हैं.
वैसी स्थिति में जिन नाजुक बच्चों के हाथों में किताब कलम स्लेट पेंसिल रहता था आज उन बच्चों के हाथों में गुल्ली डंडा गोली कौड़ी गद्दील जैसे खेलों से अपना समय ग्रामीण इलाकों में काटते नजर आ रहे हैं.
यह बच्चे सुबह10:00 बजे से लेकर सायंकालीन 4:00 बजे तक स्कूल में रहा करते थे और जब घर आते थे तो थोड़ा बहुत खेलने के बाद स्कूल में शिक्षकों के द्वारा दिए गए टास्क को पूरा करने में व्यस्त रहते थे.
लेकिन लंबे समय से विद्यालय से दूरी बनने के कारण आज उनकी रूचि खेलों के प्रति बढ़ गई है. लगता ही नहीं है कि पीछे की कोई विषय वस्तु इन्हे याद भी है.
उच्च क्लास के बच्चे तो नेट के माध्यम से कुछ अध्ययन कर भी लेते हैं.तो वही कुछ बड़े परिवार के बच्चे प्राइवेट टीचरों के द्वारा ट्यूशन घर पर कर लेते हैं,
लेकिन मिडिल क्लास और दलित महादलित समाज के बच्चों की जिंदगी तो पूरी तरह से पटरी पर से उतर चुकी है.
ग्रामीण क्षेत्रों के समाजसेवी राम अशीष राम संजय राम शिवपूजन राम शिव नारायण प्रजापति माया बैठा कहते हैं की.
एक तो लॉकडाउन में ग्रामीण व्यवसाय पूरी तरह से चौपट हो गया है. वही हम सब गरीबों के बच्चों का तो भविष्य ही बिल्कुल दांव पर लग गया आने वाले समय में यदि सरकार स्कूल भी खोल दे तो पुनः अबोध बच्चों को पटरी पर लाना बहुत ही टेढ़ी खीर होगी.
इस महामारी काल में बच्चों के भविष्य को लेकर ग्रामीण इलाकों में बदलते हुए परिवेश से बच्चों के भविष्य को लेकर ग्रामीण बहुत चिंतित नजर आ रहे हैं.
इसलिए सरकार को यह निश्चित करना चाहिए कि जिन बच्चों को कोविड-19 की जांच कराकर नेगेटिव पाए जाने वाले बच्चों तथा नेगेटिव टीचरों की व्यवस्था कर सरकार को मासूमों की जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश करनी चाहिए. जिस से आने वाला भविष्य और भटकाव बच्चों के अंदर ना हो पाए.
रिपोर्ट:संजय मल्होत्र