बिहार विधान सभा चुनाव : रामगढ़ पर कौन फहराएगा पताका, सभी कर रहे जीत के दावे

बिहार विधान सभा चुनाव : रामगढ़ पर कौन फहराएगा पताका, सभी कर रहे जीत के दावे

सांकेतिक फोटो-सोशल मीडिया

दुर्गावती। समाजवादियों के किले पर जीत का परचम कौन लहराएगा, इस सवाल का जवाब तलाश रही है रामगढ़ विधानसभा की जनता।

 जदयू के झंडे तले राजनीतिक खेती करने वाले अशोक सिंह ने जब नीतीश कुमार के दल से टिकट नहीं मिला तो खटिया ले मैदान में उतरे और नारा दिया रामगढ़ का घोड़ा है, नीतीश कुमार ने छोड़ा है। 

यह नारा अशोक सिंह को सशक्त किया और उनके जनाधार को देखकर भारतीय जनता पार्टी के लोगों ने लपक लिया और उन्हें गठबंधन धर्म के तहत भाजपा का उम्मीदवार पिछले चुनाव में बनाया जो 5 वर्षों तक निर्विघ्न जनता के बीच अपनी पैठ बनाने में सफल रहे।

वहीं राजद से टिकट नहीं मिलने की आस खो चुके सुधाकर सिंह ने मंत्री पुत्र होने का फायदा उठा भाजपा से टिकट ले कर एक बार अपनी किस्मत आजमाई लेकिन हाथ खाली रहा तथा अपनी राजनीतिक विरासत अपने दमखम पर खड़ा करने में नाकाम रहे। 

लेकिन वर्तमान समय में कमल का दामन छोड़ फिर अपने पैतृक विरासत पर राजद के सिंबल के तले अपनी दावेदारी ठोक दी है। अब देखना यह है कि पिता से मिली हुई राजनीतिक विरासत को कायम रखने में कामयाब हो पाते हैं या नहीं। 

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वही कभी जगदानंद सिंह की छाया में भैया कहने वाले अंबिका पहलवान ने राजनीतिक शुरुआत कभी जिला अध्यक्ष रह कर तो कभी पार्टी के विश्वासपात्र और भैया के करीबी का भी खिताब अपने नाम किया था। जिनके साए में उपचुनाव और चुनाव जीत कर विधानसभा जाने का सौभाग्य प्राप्त किया। लेकिन आज इच्छाओं की पूर्ति नहीं होने के कारण लालटेन को छोड़ हाथी पर सवार हो मैदान में उतरे है।

 रामगढ़ विधानसभा में सबसे ज्यादा दिलचस्प बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर रस्साकशी देखने को मिली थी। रामगढ़ विधानसभा की हस्तियां हाथी पर सवार होने के लिए बेताब थे, यही नहीं गांव-गांव घूमकर जनसंपर्क अभियान भी चला रहे थे ।लेकिन सब को दरकिनार कर अंबिका पहलवान ने टिकट हासिल कर लिया। 

सबसे दिलचस्प बात यह है कि उनके चुनाव में जितने भी टिकट के दावेदार थे चुनाव प्रचार में भाग लेना या मंच साझा करते कहीं नहीं दिखाई दे रहे।

जिससे लगता है कि उन क्षेत्रीय नेताओं का भीतर घात क्या गुल खिलाता है या अंततः सबको साथ बटोरने में वर्तमान बहुजन उम्मीदवार सफल हो पाते हैं या नहीं।


उम्मीदवारों के समर्थक अपने-अपने उम्मीदवार के जीत का दावा करते दिख रहे हैं तो चौराहे पर गली नली नल जल रोड बिजली स्कूल कॉलेज, उज्जवला योजना के तहत गैस सिलेंडर जन धन योजना स्वास्थ्य बीमा जैसे मुद्दों पर भी बुद्धिजीवी वर्गों में चर्चा जोड़ पकड़ रही है। जनता एक-एक कर सबके आगे और पीछे का इतिहास खंगाल रही हैं।

अब चुनाव का सुरूर परवान पर है, अंत समय में क्या गुल खिलाती है  जनता और कौन  फहरा पता है गढ़ पर पताका यह चुनाव के बाद ही तय हो पाएगा।