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कहानीकार व गीतकार - सूरज कुमार निर्मल |
मुझे आज भी याद है ,
जब कोई गाना हिंदी या भोजपुरी में हिट सुपरहिट होता था , तब काफी सिंगर मेरे पास आते थे और उनका एक ही कहना होता था कि मुझे ऐसा ही गाना लिख कर दीजिए ,,
दिल से कहूं तो उस समय मेरी सारी सोच धरी कि धरी रह जाती थी ,
पापी पेट का सवाल था , सो लिखते तो थे , मगर गायकों को तो उस हिट गाने का नशा सवार होता था , उनको वैसा ही गाना चाहिए होता था ,
कभी कभी तो चार छ गाना लिखकर भी हम उस गायक महाशय के विचारों में उतर नहीं पाते थे ,
क्योंकि उनकी सोच उस एक हिट सुपरहिट गीत पर जाकर अटक चुका था ,,
बात बड़ी पुरानी है जब भोजपुरी में एक गाना आया था ' लॉलीपॉप लागेलू ' जिसे भोजपुरी के स्टार गायक पवन सिंह ने गाया था और दिल्ली कि एक बड़ी संगीत कंपनी से रिलीज हुआ था ,
उस गीत ने देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी भोजपुरी के झंडे गाड़ दिए थे , पवन सिंह रातों रात सुपर स्टार सिंगर बन चुके थे ,,,
उस समय जो दुर्गति गीतकारों की हुई थी वो एक गीतकार ही जानता है ,
मेरे पास बहुत से गायक आते और कहते कि लॉलीपॉप जैसा गीत चाहिए ,
हम गीत तो लिखते थे किन्तु लॉलीपॉप नहीं लिख पाते थे ।
शायद कुछ गीत उससे भी बेहतर बन जाते थे ,
लेकिन गायकों के दिलों दिमाग में जो हिट होने का भूत सवार था उस समय ,,
कसम से यार ,,वो आज भी नहीं उतरा है , लेकिन हम जैसे राइटरों को समझ में तो आ ही गया ,,
की लॉलीपॉप का गायक ब्रांड था , रिलीज करने वाली कंपनी भी ब्रांड थी , संगीतकार भी ब्रांड थे , मार्केटिंग में दिन रात एक किया गया , समय के साथ सबकुछ ब्रांड ही ब्रांड था ,,
शायद यही वजह थी कि लॉलीपॉप जैसा गीत इतिहास रच गया ,,
अब यही बात आज भी गायकों को समझ नहीं आती कि हिट सुपरहिट होने के लिए ये ब्रांड नाम की संजीवनी कितना जरूरी होती है ,
यूं ही कोई पवन सिंह और खेसारी नहीं बनता , यूं ही कोई सोनू निगम और नेहा कक्कड़ नहीं बनता ,,
उनकी मेहनत और तजुर्बे के साथ साथ उन्हें स्टार बनाता है पर्दे के पीछे वाला वो ब्रांड ,,,
जिसे रात दिन एक करना पड़ता है ,
वैसे भी देखा गया है कि गीत संगीत एक जादू कि तरह से है , बड़े बड़े दिग्गज धाराशाही हो जाते है , बड़े बड़े खर्चीले म्यूजिक विडियो आए राम गए राम वाली बात हो जाती है ,
कभी कभी कुछ ऐसे भी गीत संगीत आ जाते हैैं जिनके सिर पैर का भी पता नहीं होता और फिर भी वो इतिहास बना जाते हैं ,,
कुछ ऐसे सिंगर भी सुपर स्टार की लिस्ट में शामिल हो जाते हैं जिनको संगीत का " सा " भी नहीं आता ,,,
फिर कौन गीत कैसा संगीत , जनता को पसंद आयेगा ये आजकल के सिंगरों को कैसे पता ???
जहां तक मेरा मानना है कि गीत वही हिट होते हैं जिनके बोल नए हों , जिनमें भारी भरकम शब्द ना हो , जो गीत एक बार के सुनने में ही जुबान पर चढ़ जाए ,,
जिसका संगीत भी गीत कि तरह शालीनता लिए हो ,,
साथ ही साथ समय की डिमांड और रिलीजिंग का ब्रांड लेबल हो ,,,
अन्यथा हर गीत से शिकायत ही रह जाएगी ,
वैसे एक बात और देखी गई है कि हर सिंगर अपने गीत खुद ही लिख लेता है भले ही वो दर्शकों के चित पर चढ़े या ना , मगर उनको याद करना चाहिए कि गीत का लेखन तजुर्बे की लत को कहते हैं , जो किसी स्कूल में सिखाया पढ़ाया नहीं जाता ,,ये कुदरती देन होती है ।
बहरहाल देखा जाय तो कब क्या लोगों को पसंद आ जाए इसकी भविष्यवाणी कभी हो ही नहीं सकती ,,
किंतु तजुर्बा जरूर बता देता है ,,,
इसलिए तजुर्बेकार की संगत ही बेहतर भविष्य की ओर ले जाएगी, गीतकारों को समझने की भूल ना करें ,
गीतकारों को ही समझने दीजिए
इसी में समझदारी होती है !
साभार: सूरज कुमार निर्मल
"गीतकार व कहानीकार"
नई दिल्ली