कविता: पानी-पानी.....।

कविता: पानी-पानी.....।

Hindi Samachar/साहित्य

कविता: बहुत प्यासा संसार है
पानी जरा बचाओ भाई

कवियत्री-लता प्रासर

पानी-पानी..
बहुत प्यासा संसार है
पानी जरा बचाओ भाई
पानी पानी चिल्लाकर पानी को कर रहा पानी पानी
कौन यहां जग बैरी है 
सूख रहा अब आंख का पानी
सागर नदिया पोखर झील
विष भरा कितना पानी
जो जग पानी का रखवाला है
वही तो चोरों का साला है
कोई हरा पिये कोई लाल पिये
पीने वाले कमाल पीये
पानी का रंग भी बदल गया
ढलका पानी छलका पानी
दाम चाहे जितना ले लो
दे दो मुझको हल्का पानी
प्यास बढ़ी है जग की जब से
भाव बढ़ गया पानी का तब से
पीने वालों पीना कुछ भी नानी का पानी याद रखो
हलक तुम्हारा सूखा न रहे
काटना पड़े चाहे गला तुम्हे
बस अपने हलक को तर रखना
ये पानी बड़ा बेमानी है
तब ढूंढ रहे बाहर पानी
घर का पानी खारा लागे
पिता के आंखों का पानी 
बच्चों में भरकर देखो तुम
मां की आंखों का पानी
जरा समेटकर देखो तुम
आसमान से बरसा पानी
धरती हो गई पानी पानी
भरे बाजार जब पानी बिकता
कितने आंखों से पानी सूखता
क्यों पानी को हाय लुटा रहा
अपने में सबकी हाय पटा रहा
तरसोगे इक दिन तुम भी
पानी को विष बनाय रहे
पानी पानी  का खेल बड़ा
हर ओर सिपाही मुस्तैद खड़ा
बेचा पानी उसने ही है
जो पानी का मोल लगा न सका
रहने दो पानी को पानी
मत करो यहां भी मनमानी
जब पानी उबाल पर आयेगा
तब कहां ये जग बच पायेगा!

लता प्रासर
पटना बिहार
7277965160

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