सरकारी डाक्टरों की अनदेखी से सफेद हाथी साबित हो रहा है प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र

सरकारी डाक्टरों की अनदेखी से सफेद हाथी साबित हो रहा है प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र

Hindi Samachar-चन्दौली

जिला संयुक्त चिकित्सालय चकिया में स्थित प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र इन दिनों मरीजों के लिए मृग- मरीचिका साबित हो रहा है। इस औषधि केंद्र का लाभ इसलिए नहीं मिल पा रहा है, क्योंकि कुछ चिकित्सक खुद इस केंद्र के प्रति उपेक्षा का भाव रख रहे हैं।

आईपीएफ राज्य कार्य समिति सदस्य अजय राय व सपा नेता दशरथ सोनकर ने चिकित्सकों पर लगाया गम्भीर आरोप

जन औषधि केन्द्र पर उपलब्ध दवा की जगह बाहरी मेडिकल स्टोर की दवा लिखते हैं सरकारी

चन्दौली में जन औषधि केन्द्र की एक्सपायर हो गई लगभग तीन लाख रुपए की दवाएं

सांकेतिक फोटो


Purvanchal News Print

चकिया /चन्दौली । जिला संयुक्त चिकित्सालय चकिया में स्थित प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र इन दिनों मरीजों के लिए मृग - मरचिका साबित हो रहा है। क्षेत्रीय रोगियों को इस औषधि केंद्र का लाभ इसलिए नहीं मिल पा रहा है, क्यों कि इस अस्पताल के कुछ चिकित्सक खुद इस केंद्र के प्रति उपेक्षा का भाव रखते रहे हैं और मरीजों को इस केंद्र से दवा खरीदने के लिए प्रेरित भी नहीं करते।

 आलम यह है कि दवा मरीज को लिखा करतें है जो जन औषधि केन्द्र पर उपलब्ध नहीं होता हैं, और तो और मरीजों के बीच यह भाव पैदा करने की कोशिश की जाती है कि इस केंद्र की दवा खुले बाजार वाली दवा की दुकानों की दवाओं के मुकाबले कम प्रभावशाली होती है। 

जबकि ऐसा एक दम सहीं नहीं है। जन औषधि केंद्र की जेनरिक दवाएं भी उतनी ही लाभकारी होती है जितनी की बाहर मेडिकल वाली दुकानों की होती हैं। 

आईपीएफ के राज्य कार्य समिति सदस्य अजय राय व समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता दशरथ सोनकर खुला आरोप लगाते हैं कि इसके पीछे दरअसल खेल डाक्टर के बाहर के मेडिकल स्टोर से मिलने वाली कमीशन का होता है। इसलिए कुछ डॉक्टर जन औषधि केन्द्र की दवा देने में दिलचस्पी नहीं लेते है।

 जबकि सच्चाई यह है कि जन औषधि केंद्र की दवाओं का मूल्य खुले बाजार की दवाओं के मुकाबले 60 से 70 फीसदी कम होता हैं। उक्त नेताओं  ने यह भी आरोप लगाया कि इस जन औषधि केंद्र की लगभग तीन लाख रुपए की दवा एक्सपायर हो गई? जो चर्चाओं में हैं। 

इसलिए इस मामले की जांच होनी चाहिए कि इसके लिए दोषी कौन है? उन्होंनें बताया कि इस केंद्र के बारे में बरती जा रही लापरवाही की जानकारी मुख्य चिकित्साधिकारी समेत विभाग के अन्य कई अधिकारियों को है, लेकिन सभी मौन धारण कर रखें  है।

 उन्होंने कहा कि पिछले दिनों  खुद अस्पताल गए हुए थे तो आम लोगों उन्हे इस बारे में विस्तार से जानकारी दी।

 गौरतलब रहे कि यह जन औषधि योजना पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल है। इसलिए चिकित्सकों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह इस केंद्र के बारे में मरीजों को सही जानकारी प्रेषित करें और उन्हें वहीं से ही दवा लेने के लिए प्रेरित करें। चुकी डॉक्टर मरीज के लिए भगवान होता है, इसलिए मरीज उनके सलाह को किसी भी कीमत पर नजरअंदाज नहीं कर सकते। 

इतना ही नहीं यदि यह योजना फेल होती है तो इसके लिए चिकित्सकों को काफी हद तक जिम्मेदार माना जा सकता है। क्योंकि यह योजना सीधे गरीबों को ध्यान में रखकर लागू की गई है? इसलिए सभी चिकित्सकों को अपने  दायित्व का निर्वाह करना चाहिए?

आइए, यह है ‪प्रधानमंत्री जन औषधि योजना के कुछ महत्वपूर्ण रिपोर्ट 

पहली जुलाई 2015 को  पीएम नरेंद्र मोदी इस योजना की घोषणा की थी।  इस योजना में सरकार द्वारा उच्च गुणमवत्ता वाली जैनरिक (Generic) दवाईयों के दाम बाजार मूल्य से कम पर उपलब्ध कराए जाने की बात कही गई। कारण जेनेरिक दवाइयां ब्रांडेड या फार्मा के मुकाबले काफी सस्ती मिलती हैं और प्रभावशाली उनके बराबर ही होती है। जन औषधि अभियान मूलत: जनता को जागरूक करने के लिए उद्देश्य से शुरू किया गया। 

ताकि जनता को ब्रांडेड मेडिसिन की तुलना में  कम मूल्य पर जेनरिक दवाएं मिल सक। साथ ही इसकी क्वालिटी में किसी तरह की कमी नहीं हैं। साथ ही यह जेनेरिक दवायें मार्केट में मौजूद हैं जिन्हें आसानी से प्राप्त किया जा सकता हैं।

इस योजना में आम नागरिकों को बाजार से 60 से 70 फीसदी कम कीमत पर दवाइयां मुहैया कराई जाती है। शुरू में देश 1000 केंद्र संचालित किए जा रहे थे , लेकिन अब उनकी संख्या 5000 से भी अधिक हो गई है।  ......(रिपोर्ट-अलका राय)