पितर देवता का पक्ष (पितृपक्ष) 21 सितम्बर मंगलवार से शुरू हो रहा है, कैसे पितर प्रसन्न होंगे। किस कार्य से बचें, जानें पूरा तरीका...।
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सांकेतिक फोटो |
श्राद्ध क्या है इसकी सम्पूर्ण जानकारी?
श्राद्ध दो प्रकार के होते है ।
1: पिण्डक्रिया
2: ब्राह्मण भोजन
1:-पिण्डक्रिया-यह प्रश्न स्वाभाविक है कि श्राद्ध में दी गई अन्न सामग्री पितरो को कैसे मिलती है ?
"नाम गोत्रम च मन्त्रस्च दत्तमन्म नयन्तितम।अपि योनिशतम प्राप्तांसतृप्तिस्ताननुगच्छन्ति"।।वायुपुराण
श्राद्ध में दिये गए अन्न को नाम ,गोत्र, हृदय की श्रद्धा के साथ संकल्प पूर्वक दिये हुए पदार्थ भक्ति पूर्वक उच्चारित मन्त्र द्वारा उनके पास भोजन रूप में उन्हें प्राप्त होता है।
2:-ब्राह्मण भोजन- निमंत्रितान ही पितरं उपतिष्ठन्ति तान द्विजान।वायुवच्चानुगच्छन्ति तथा सीनानुपास्ते(मनुस्मृति)
अर्थात श्राद्ध में निमंत्रित ब्राह्मण में पितर गुप्त रूप से प्राण वायु की भांति उनके साथ भोजन करते है मृत्यु के पश्चात पितर सूक्ष्म शरीर धारी होते है, इसीलिए वह दिखाई नहीं देते।
#तीरईव वौ पितरों मनुष्येभ्यः(शतपथ ब्राह्मण)
अर्थात सूक्ष्म शरीर धारी पितर मनुष्यों में छिपे होते है।
#धनाभाव में श्राद्ध -धनाभाव एवम समयाभाव में श्राद्ध तिथि पर पितर का स्मरण कर गाय को घास खिलाने से भी पूर्ति होती है यह व्यवस्था पद्मपुराण ने दी है।यह भी सम्भव न हो तो इसके अलावा भी श्राद्ध करता एकांत में जा कर पितरो का स्मरण कर दोनों हाथ जोड़कर पितरों से प्रार्थना करें।
(न मेस्ति वित्तम न धनम च नान्यछश्राद्धढोपयोग्यम स्वपितृन नतोस्मि। तृप्यन्तु भक्त्या पितरो मयोतौ कृतौ भुजौ वर्तमनी मारूतस्या।
(विष्णु पुराण)अर्थात हे पितृगण मेरे पास श्राद्ध हेतु न उपयुक्त धन है न धान्य है मेरे पास आपके लिए हृदय में श्रद्धा भक्ति है मैं इन्ही के द्वारा आपको तृप्त करना चाहता हूं आप तृप्त होइये।
श्राद्ध सामान्यतः तीन प्रकार के होते है :- (नित्य नैमितकम काम्यम त्रिविधम श्राध्म उच्यते) यम स्मृति में 5 प्रकार तथा विस्वामित्र स्मृति में 12 प्रकार के श्राद्ध का वर्णन है किंतु 5 श्राद्ध में ही सबका अंतर्भाव हो जाता है।
1-नित्य श्राद्ध -प्रतिदिन किया जाने वाला श्राद्ध -जलप्रदान क्रिया से ही इसकी पूर्ति हो जाती है।
2-नैमितकम श्राद्ध-वार्षिक तिथि पर किया जाने वाला श्राद्ध।
3-काम्यश्राद्ध-किसी कामना की पूर्ति हेतु किया जाने वाला श्राद्ध ।
4-वृद्धि श्राद्ध (नान्दी श्राद्ध)-मांगलिक कार्यों, विवाहादि में किया जाने वाला श्राद्ध।
5-पार्वण श्राद्ध- पितृपक्ष अमावस्या आदि पर्व पर किया जाने वाला श्राद्ध ।श्राद्ध कर्म से मनुष्य को पितृदोष ऋण से मुक्ति के साथ जीवन में शुखशांति तो प्राप्त होती है।अपितु परलोक भी सुधरता है।
श्लोक: पिता धर्म:पिता स्वर्ग:पिताही परमम तप:।
पितरी प्रितिमापन्ने प्रियन्ते सर्व देवता।
सर्वतीर्थमयी माता सर्व देव मय:पिता।
मातरं पितरं तस्मात सर्वयत्नेन पूजयेत।।
इस सृष्टि में हर चीज का अथवा प्राणी का जोड़ा है।जैसे-रात और दिन/अंधेरा और उजाला/सफेद और काला/अमीर और गरीब/नर और नारी इत्यादि बहुत गिनवाए जा सकते है। सभी चीजें अपने जोड़े से सार्थक है अथवा एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों एक दूसरे पर निर्भर रहते है इसी तरह दृश्य और अदृश्य जगत का भी जोड़ा है दृश्य जगत है जो हमें दिखता है और अदृश्य जगत वो है जो हमे नही दिखता।ये भी एक दूसरे पर निर्भर है और एक दूसरे के पूरक भी है।
'पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है'
मित्रो पितृलोक भी अदृश्य जगत का हिस्सा है और अपनी सक्रियता के लिए दृश्य जगत के श्राद्ध पर निर्भर है।सनातन धर्म ग्रन्थो के अनुसार श्राद्ध के 16 दिनों में लोग अपने पितरो को जल देते है तथा उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध करते है ऐसी मान्यता है कि पितरो का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरो के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है।
पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है।इसी दिन से महालय (श्राद्ध)का प्रारम्भ भी माना जाता है।श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए।पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्ष भर तक प्रसन्न रहते है।
धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरो का पिंड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु पुत्र पौत्रादि यश स्वर्ग पुस्टि बल लक्ष्मी पशु सुख साधन तथा धन धान्य आदि की प्राप्ति करता है श्राद्ध में पितरो को आशा रहती है कि हमारे पुत्र पुत्रादि हमे पिंडदान तथा तिलांजलि प्रदान कर सन्तुष्ट करेंगे,इसी आशा के साथ वे पितृ लोक से पृथ्वीलोक पर आते है।यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिन्दू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध से जुड़ी कई ऐसी बाते है जो बहुत कम लोग जानते है, मगर ये बातें श्राद्ध करने से पूर्व जान लेना बहुत जरूरी है। क्यूंकि कई बार विधिपूर्वक श्राद्ध न करने से पितृ श्राप भी दे देते है।
आज हम आपको श्राद्ध से जुड़ी कुछ विशेष बातें बता रहे हैं जो इस प्रकार है:-
1:-श्राद्ध कर्म में गाय का ही दूध,दही,घी काम में लेना चाहिए पर यह ध्यान रखें कि गाय को बच्चा पैदा हुए 10 दिन से ऊपर हो 10 दिन के अंदर जन्म दिए हुए गाय का दूध श्राद्ध कर्म में उपयोग नही करना चाहिए।
2:-श्राद्ध में चांदी के बर्तन का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही राछसो का नाश करने वाला भी माना गया है।पितरो के लिए चांदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिए जाएं तो वह तृप्तिकारक होता है।पितरो के लिए अर्घ,पिंड और भोजन के बर्तन भी चांदी के हो तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है।
3:-श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनो हाथो से पकड़ कर लाने चाहिए एक हाथ से लाये अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन प्रेत छीन लेते है।
4:-ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर एवम व्यंजनों की प्रशंसा किये बगैर करना चाहिए क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं जब तक ब्राह्मण मौन रहकर भोजन करता है।
5:- जो पित्र शस्त्र आदि से मारे गए हो उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए, इससे वे प्रसन्न होते है।श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए, पिंडदान पर साधारण या नीच मनुस्यो की दृष्टि पड़ने से वह पितरो को नहीं पहुचता ।
6:-श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है।उसके घर में पितर भोजन नहीं करते बल्कि श्राप देकर लौट जाते है।ब्राह्मणहीन श्राद्ध से मनुष्य महापापी होता है।
7:-श्राद्ध में जौ कंगनी मटरसरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है, तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध सफल हो जाता है वास्तव में तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते है।कुशा प्रेतों से बचाते हैं।
8:-दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नही करना चाहिए, वन पर्वत, पुण्यतीर्थ एवम मंदिर दूसरे की भूमि नहीं माने जाते क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नही माना गया है।अतः इन स्थानों पर श्राद्ध किया जा सकता है।
9:-चाहे मनुष्य देवकार्य में ब्राह्मण का चयन करते समय न सोचें,लेकिन पित्र कार्य में योग्य ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए क्योंकि श्राद्ध में पितरो की तृप्ति ब्राह्मणों द्वारा ही होती है।
10:-जो ब्यक्ति किसी कारण वश एक ही नगर में रहने वाली अपनी बहन जमाई और भांजे को श्राद्ध में भोजन नही कराता उसके यहां पितर के साथ ही देवता भी अन्न ग्रहण नही करते।
11:-श्राद्ध करते समय यदि कोई भिखारी आ जाये तो उसे आदर पूर्वक भोजन करवाना चाहिए, जो ब्यक्ति ऐसे समय में घर आये याचक को भगा देता है उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता और उसका फल भी नष्ट हो जाता है।
12:-शुक्लपक्ष के रात्रि में, युग्म दिनों में(एक ही दिन दो तिथियों का योग) तथा अपने जन्मदिन पर कभी श्राद्ध नहीं करना चाहिए धर्म ग्रन्थों के अनुसार सायंकाल का समय प्रेत के लिए होता है यह समय सभी कार्यों के लिए निंदित है अतः शाम के समय कभी श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए।
13:-श्राद्ध से प्रसन्न पितृगण मनुस्यो को पुत्र धन विद्या आयु आरोग्य लौकिक सुख मोक्ष और स्वर्ग प्रदान करते है।श्राद्ध के लिए शुक्ल पक्ष की अपेक्षा कृष्ण पक्ष श्रेष्ठ माना गया है।
14:-रात्रि को प्रेत समय माना गया है अतः रात्रि में श्राद्ध कर्म नही करना चाहिए।दोनो सन्ध्यायो के समय भी श्राद्ध कर्म नही करना चाहिए, दिन में आठवे मुहूर्त(कुटपकाल)में पितरो के लिए दिया गया दान सफल होता है।
15:-श्राद्ध में ये चीजें होना महत्वपूर्ण है:-गंगाजल, दूध,शहद,दौहित्र, कुश,और तिल जरूरी होता है।केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है।सोने,चांदी,कांसे,तांबे,के पात्र उत्तम है।इनके अभाव में पत्तल परास का उपयोग किया जाता है।
16:-तुलसी से पितृगण प्रस्सन होते है ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पितृगण गरुण पर सवार होकर विष्णु लोक को चले जाते है।तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक सन्तुष्ट रहते है।
17:-रेशमी ,कम्बल,उन,लकड़ी,तृण, पर्ण,कुश आदि के आसन श्रेष्ठ है।आसन में लोहा किसी भी रूप में पयुक्त नही होना चाहिए।
18:-चना मसूर उड़द कुथली सत्तू मूली काला जीरा कचनार खीरा काला उड़द काला नमक लौकी बड़ी सरसो काले सरसो की पत्ती और बासी अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध है।
19:-श्राद्ध तिथि के पूर्व ही यथाशक्ति विद्वान ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलावा दे।श्राद्ध के दिन आये ब्राह्मणों को कम्बल के आसन पर बिठाये (बिठाने से पहले अपने हाथों से सभी ब्राह्मण का चरण धोवे और आशीर्वाद मांगे)।
20:-पितरो के पसन्द का भोजन,दूध,दही,घी,और शहद के साथ अन्न से बनाये गए पकवान जैसे खीर आदि है।इसीलिए ब्राह्मण को ऐसे भोजन कराने का विशेष ध्यान रखें।
21:-तैयार भोजन में से गाय, कुत्ता,कौवा, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा निकाले और उनका भाग उनको अपने हाथों से खिलाये।देवता व चींटी का गाय को खिला सकते है।इसके बाद ब्राह्मण को भोजन करवाये।उसके बाद उनको तिलक लगाएं।यथाशक्ति वस्त्र ,अन्न,दक्षिणा दे और ताम्बूल खिला कर आशीर्वाद मांगे।
22:-ब्राह्मण को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ बिदा करने आये।इससे पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते है।।
23:-इसके बाद सभी लोग भोजन करे।
24:-पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है, पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में सपिंडों को श्राद्ध करना चाहिए।एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करे या सबसे छोटा अगर सभी अलग रहते है तो सभी अवश्य ही श्राद्ध करे।
25:-गया जाने के बाद भी यह क्रिया करना चाहिए।जिस वर्ष शादी या कोई मृत्यु हो जाता है तो उस वर्ष श्राद्ध नही किया जाता है।
26:-जल,भोजन,पिंडदान, आदि करने से आपके पितर बहुत प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते है।
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रिपोर्ट: आचार्य त्रिपुरारी पाठक |