जनरल बिपिन रावत जिस यूनिट में तैनात हुए, जिसमें उनके पिता तैनात थे। जनरल रावत को काउंटर इंसरजेंसी और हाई-ऑल्टीट्यूड वारफेयर में महारथ हासिल था और उनका तजुर्बा दशकों का रहा है।
NEW DELHI: तीनों सेना के सर्वोच्च अधिकारी (CDS) जनरल बिपिन रावत के नाम कई बड़े बड़े सम्मान हैं, जिन्हें गिना नहीं जा सकता है। फौजी परिवार में उनका जन्म हुआ और वहीं पले -बढ़े और जनरल से CDS तक का सफर तय किया। कहते हैं कि उनका व्यक्तिगत नेतृत्व, साहस और अनुभव ही ब्रिगेड को मिली भारी सफलता के लिए महत्वपूर्ण बने हुए थे। इसे भी पढ़े: तमिलनाडु के कुन्नूर जिले में सेना का हेलीकॉप्टर क्रैश, कैबिनेट की बैठक बुलाई गई
तीनों सेना के सर्वोच्च अधिकारी (CDS) जनरल बिपिन रावत के
करियर की शुरुआत 16 दिसंबर 1978 को 11वीं गोरखा राइफल की 5वीं बटालियन में कमिशन पद से हुई थी। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि जनरल रावत जिस यूनिट में तैनात हुए जिसमें उनके पिता तैनात थे। जनरल रावत को काउंटर इंसरजेंसी और हाई-ऑल्टीट्यूड वारफेयर में महारथ हासिल है और उनका तजुर्बा दशकों के रहा है।
भारत-चीन युद्ध के वक्त जनरल रावत ने मोर्चा संभाला था और इनकी इसमें बड़ी भूमिका रही। 1987 में सुमदोरोंग चू घाटी में एक झड़प के दौरान जनरल रावत की बटालियन को चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के खिलाफ तैनात किया गया था, जबकि 1962 के युद्ध के बाद विवादित मैकमोहन रेखा पर यह गतिरोध पहला सैन्य टकराव था जिसमें रावत मोर्चा संभाल हुए थे। उन्होंने मेजर के रूप में उरी, जम्मू और कश्मीर में एक कंपनी की कमान संभाला था।
एक कर्नल के रूप में उन्होंने किबिथू में वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ पूर्वी सेक्टर में अपनी बटालियन 5वीं बटालियन 11 गोरखा राइफल्स की कमान संभाल रखी थी।
बताते हैं कि उनकी हाल की उपलब्धियों को देखा जाए तो 17 दिसंबर 2016 को भारत सरकार ने दो और वरिष्ठ लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीण बख्शी और पी.एम. हारिज़ को पीछे छोड़ते हुए उन्हें 27वें थल सेनाध्यक्ष के रूप में नियुक्त कर दिया था। उन्होंने जनरल दलबीर सिंह सुहाग की रिटायरमेंट के बाद 31 दिसंबर 2016 को 27वें सीओएएस के रूप में सेनाध्यक्ष का पदभार ग्रहण कर लिया।
जनरल रावत फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ और जनरल दलबीर सिंह सुहाग के बाद गोरखा ब्रिगेड से थल सेनाध्यक्ष बनने वाले तीसरे अधिकारी रहे। वर्ष 2019 में अमेरिका की अपनी यात्रा पर, जनरल रावत को यूनाइटेड स्टेट्स आर्मी कमांड और जनरल स्टाफ कॉलेज इंटरनेशनल हॉल ऑफ़ फ़ेम में शामिल किया गया था। वे नेपाली सेना के मानद जनरल भी रहे हैं। भारतीय और नेपाली सेनाओं के बीच एक-दूसरे के प्रमुखों को उनके करीबी और विशेष सैन्य संबंधों को दर्शाने के लिए जनरल की मानद रैंक देने की परंपरा रही है।
MONUSCO (कांगो का एक मिशन) की कमान संभालते हुए जनरल रावत ने अपनी सेवा की सर्वोच्च भूमिका निभाते हुए कांगो में तैनाती के दो सप्ताह के भीतर ही इस ब्रिगेड को पूर्व में एक बड़े हमले का सामना भी करना पड़ा था। जिसने न केवल उत्तरी किवु (गोमा की क्षेत्रीय राजधानी) बल्कि पूरे देश में स्थिरता के लिए खतरा पैदा हो गया था, जनरल रावत की कमान में ही उत्तर किवु ब्रिगेड को मजबूत किया ।
कहते हैं कि उनका व्यक्तिगत नेतृत्व, साहस और अनुभव ही ब्रिगेड को मिली भारी सफलता के लिए महत्वपूर्ण बने हुए थे।
बताया जाता है कि जून 2015 में मणिपुर में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ वेस्टर्न साउथ ईस्ट एशिया (UNLFW) से जुड़े उग्रवादियों के घातक हमले में जब अठारह भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे, तब भारतीय सेना ने सीमा पार से हमलों का जवाब दिया जिसमें पैराशूट रेजिमेंट की 21वीं बटालियन की इकाइयों ने म्यांमार में एनएससीएन-के बेस पर हमला किया था। दीमापुर स्थित III कोर के संचालन नियंत्रण में 21 पारा था, उस समय जिसकी कमान रावत के पास ही थी। उनकी कमान में की गई कार्रवाई सैन्य कार्रवाई में सबसे अहम स्थान रखता रहा है।