Chandauli News: अवशेष प्रबन्धन पर दो दिवसीय किसान मेला का हुआ शुभारंभ

Chandauli News: अवशेष प्रबन्धन पर दो दिवसीय किसान मेला का हुआ शुभारंभ

कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा फ़सल अवशेष प्रबंधन परियोजना के अन्तर्गत दो दिवसीय किसान मेला व कृषि उद्योग प्रदर्शनी कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ।

Chandauli  News: अवशेष प्रबन्धन पर दो दिवसीय किसान मेला का हुआ शुभारंभ

चन्दौली।आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या के अन्तर्गत संचालित कृषि विज्ञान केंद्र चन्दौली द्वारा फ़सल अवशेष प्रबंधन परियोजना के अन्तर्गत दो दिवसीय किसान मेला व कृषि उद्योग प्रदर्शनी कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य अतिथि ऐ. पी. राव निदेशक प्रसार एवं कृषि विज्ञान केंद्र, वाराणसी के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवम अध्यक्ष डा. सत्यपाल सिंह की उपस्थिति में संपन्न हुआ। 

इस अवसर पर कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक व अध्यक्ष श्री सिंह ने कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत करते हुए केंद्र की गतिविधियों पर विस्तार से बात रखी। डा. सिंह ने कहा की प्राकृतिक खेती का ट्रायल कृषि विज्ञान केन्द्र पर सफलता पूर्वक प्रतिभुत हो रहा है। किसानों के लिए प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण एवं जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहा है इसके बाद से अब तक लगभग 500 से अधिक किसानों को जागरूक किया जा चुका है। 

Chandauli  News: अवशेष प्रबन्धन पर दो दिवसीय किसान मेला का हुआ शुभारंभ

मुख्य अतिथि ने कृषि विज्ञान केंद्र के कार्यों की सराहना करते हुए कहा की विगत एक दशक से खेती में मशीनों का प्रयोग बढ़ा है। साथ ही खेतीहर मजदूरों की कमी की वजह से भी यह एक आवश्यकता बन गई है। ऐसे में कटाई व गहराई के लिए कंबाईन हार्वेस्टर का प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ा है, जिसकी वजह से भारी मात्रा में फसल अवशेष खेत में पड़ा रह जाता है। 


डॉ.अमित कुमार सिंह ने कहा की अवशेष प्रबन्धन में धन, मजदूर, समय आदि की आवश्यकता होती है और दो फसलों के बीच उपयुक्त समय के अभाव की वजह से भी वे ऐसा करने के लिए बाध्य हैं। उन्होंने कहा कि फसल अवशेषों को जला देने से खेत साफ होता है। उन्होंने कहा की रसायनों के अधिकतर इस्तेमाल से कैंसर के मरीजों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है ऐसे में ऑर्गेनिक और प्राकृतिक खेती पर जोर देने की आवश्यकता है।


 डा.दिनेश यादव ने बताया की हमारे देश में सालाना 630-635 मि. टन फसल अवशेष पैदा होता है। कुल फसल अवशेष उत्पादन का 58 प्रतिशत धान फसलों से 17 प्रतिशत गन्ना, 20 प्रतिशत रेशा वाली फसलों से तथा 5 प्रतिशत तिलहनी फसलों से प्राप्त होता है। 

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मृदा विज्ञानी डा. हनुमान प्रसाद पाण्डेय ने कहा की फसल अवशेष प्रबन्धन की विधियों की जानकारी न होने व होते हुए भी किसान अनभिज्ञ बने हुए हैं। आज कृषि के विकसित राज्यों में मात्र 10 प्रतिशत किसान ही अवशेषों का प्रबन्धन कर रहे हैं। भूमि की उर्वराशक्ति में ह्रासः अवशेष जलाने से 100 प्रतिशत नत्रजन, 25 प्रतिशत फास्फोरस, 20 प्रतिशत पोटाश और 60 प्रतिशत सल्फर का नुकसान होता है। मंच संचालन डा. दिनेश यादव ने किया। 


अध्यक्षीय संबोधन करते हुए आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवम प्रौद्योगिक विश्विद्यालय के निदेशक प्रसार ने किसानों का स्वागत करते हुए कहा की पुआल को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर वाष्प से उपचारित कर चारा के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है।फसल अवशेषों का मशरुम की खेती में सार्थक प्रयोग किया जा सकता है। कई सारी कम्पनियाँ धान के पुआल से बिजली पैदा कर रही है।


 चंदौली जो कि पूरे देश में धान के कटोरे के जिले के रूप में जाना जाता है।  यह जिला पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा धान का उत्पादन चंदौली में होता है साथ ही यह भी बताया कि किसानों को केवल अपनी उपज नहीं बेचनी है ,अपितु उसके उत्पादों को भी बेचना जिससे उनकी आय में उत्तरोत्तर वृद्धि होती रहे।


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