भाजपा के वन संरक्षण संशोधन अधिनियम 2023 को ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने आदिवासी और पर्यावरण विरोधी बताया

भाजपा के वन संरक्षण संशोधन अधिनियम 2023 को ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने आदिवासी और पर्यावरण विरोधी बताया

कल लोकसभा में पारित किए गए वन संरक्षण संशोधन अधिनियम 2023 को ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने आदिवासी और पर्यावरण विरोधी करार दिया है।

भाजपा के वन संरक्षण संशोधन अधिनियम 2023 को ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने आदिवासी और पर्यावरण विरोधी बताया

🔷राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ट्वीट कर हस्तक्षेप करने और केंद्र सरकार को इस कानून को वापस लेने का निर्देश देने की अपील की

🔷आईपीएफ के प्रदेश  कार्य समिति सदस्य अजय व आदिवासी वनवासी महासभा नौगढ़ प्रभारी गंगा चेरो बोले -नया वन संरक्षण संशोधन बिल कारपोरेट घरानों को वन भूमि उपलब्ध कराने के लिए मोदी सरकार द्वारा लाया गया


नौगढ़|  कल लोकसभा में पारित किए गए वन संरक्षण संशोधन अधिनियम 2023 को ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने आदिवासी और पर्यावरण विरोधी करार दिया है। आईपीएफ के प्रदेश कार्य समिति सदस्य अजय व आदिवासी वनवासी महासभा नौगढ़ प्रभारी गंगा चेरो ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ट्वीट कर हस्तक्षेप करने और केंद्र सरकार को इस कानून को वापस लेने का निर्देश देने की अपील की है। 

प्रेस को जारी अपने बयान में आईपीएफ द्वय  नेता ने कहा नया वन संरक्षण संशोधन बिल कारपोरेट घरानों को वन भूमि उपलब्ध कराने के लिए मोदी सरकार द्वारा लाया गया है। यह कानून वन अधिकार कानून 2006 को कमजोर कर देगा और वनाधिकार कानून से आदिवासियों के हाथों में आई जमीनों को छीनने का काम करेगा। यह यह दुखद है कि आदिवासी और पर्यावरण विरोधी इस कानून को पास कराने के लिए मोदी सरकार हड़बड़ी में है। 

कल जब संसद में मणिपुर हिंसा के खिलाफ हंगामा हो रहा था उसी बीच महज चार सांसदों से बात रखवा कर 40 मिनट में सरकार ने इस बिल को लोकसभा में पास करा दिया। इसके पहले भी संसद के बहुतायत सदस्यों की राय के बावजूद सरकार ने इसे स्थाई समिति को भेजने की जगह भाजपा की बहुमत वाली संसदीय समिति को भेजा। जिसने बिना किसी स्टेक होल्डर से बात किए और न सभी पार्टियों की राय लिए बिल को लोकसभा में पेश करने के लिए कहा।

 यह भी गौरतलब है कि सरकार के खुद बनाए हुए एससी-एसटी कमीशन ने इस बिल का विरोध किया था और कहा था कि यह आदिवासी अधिकारों पर बड़े पैमाने पर हमला करेगा। लेकिन उसकी आपत्ति को भी सरकार ने नहीं सुना। यही नहीं इस बिल से उत्तर पूर्व के मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, मणिपुर और त्रिपुरा जैसे वनाच्छादित राज्यों में बड़े पैमाने पर वनों का नुकसान होगा। 

सरकार ने वनों के संरक्षण के लिए 1996 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गोदावरमन केस में दिए आदेशों को भी इस कानून के जरिए दरकिनार कर दिया। ऐसी स्थिति में आदिवासी मूल की राष्ट्रपति को आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए केंद्र सरकार से इस बिल को वापस लेने के लिए कहना चाहिए। आईपीएफ नेता ने कहा कि यदि सरकार इस बिल को वापस नहीं लेती तो आदिवासी समाज में इसके बारे में जनजागृति पैदा की जाएगी और सरकार की नीतियों का भंडाफोड़ किया जाएगा। 


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