Agri Business Idea: अब पारंपरिक फसलों की जगह नगदी फसलों की खेती अधिक फायदेमंद साबित हो रही है | आज हम ऐसी फसल के बारे में बताने जा रहे हैं। इसकी पोषक तत्वों के रूप भरपूर मांग है | इसका नाम है राजमा | यह पोषक तत्वों से भरपूर दलहनी फसल कहलाती है |
Kheti - Badi / पूर्वांचल न्यूज प्रिंट | देशभर में इसकी मांग में तेजी से बढ़ी है। राजमा (Rajma) का सेवन स्वास्थ्य के लिए रामबाण है। बीते कुछ सालों से रबी सीजन (Rabi Season) में राजमा खेती (Rajma Ki Kheti) मैदानी इलाकों में अब शुरू की जा चुकी है। अगर किसान राजमा की उन्नत किस्मों की खेती करें तो उन्हें काफी इनकम होगी और कुछ महीनों में ही वह लखपति बन जायेगा।
राजमा की क्या है किस्में, जानें
Kidney bean cultivation से बेहतर उपज और धनप्राप्ति के लिए किसानों को राजमा की उन्नत किस्मों की बुवाई करनी चाहिए । अगर राजमा की उन्नत किस्में- मालवीय-137, पी.डी.आर-14 (उदय), अम्बर (आई.आई.पी.आर-96-4), वी.एल.-63, उत्कर्ष (आईआईपीआर-98-5), अरूण उपलब्ध है तो उसे ही बोयें ।
राजमा के लिए मिट्टी और बुवाई का क्या है समय ?
राजमा के लिए दोमट और हल्की दोमट मिट्टी बेहतर साबित होती है। पानी के निकास की व्यवस्था ठीक होनी चाहिए। खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करने पर खेत पूरी तरह से तैयार हो जाता है।
बुवाई के समय मिट्टी में पर्याप्त नमी बहुत जरूरी है। 120 से 140 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थीरम से बीज उपचार करने के बाद खेत में डाला जाता है , जिससे कि पर्याप्त नमी मिल सके। अक्टूबर के तीसरे और चौथा सप्ताह बुवाई के लिए बेहतर होता है। पूर्वी क्षेत्र में नवम्बर के पहले सप्ताह में राजमा की बुवाई की जाती है। इसके बाद अगर बुआई होती है तो उत्पादन में कमी होने का डर रहता है।
राजमा फसल के लिए उर्वरक और सिंचाई कैसे करें
राजमा में राइजोबियम ग्रंथियां न होने के कारण नाइट्रोजन की अधिक मात्रा में जरूरत होती है। 120 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फॉस्फेट और 30 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। 60 किग्रा नाइट्रोजन और फॉस्फेट व पोटाश की मात्रा बुवाई के समय और बची आधी नाइट्रोजन की मात्रा टाप ड्रेसिंग में देनी जरूरी है। 20 किग्रा प्रति हेक्टर गंधक देने से लाभकारी नतीजा मिल जाते हैं।
2% यूरिया के घोल का छिड़काव 30 दिन और 50 दिन पर करने से राजमा की उपज बढ़ती है। राजमा में 2 या 3 सिंचाई की जरूरत होती है। बुवाई के चार हफ्ते बाद प्रथम सिंचाई जरूर करनी चाहिए। इसके बाद सिंचाई एक महीने के अन्तराल पर करनी चाहिए। सिंचाई हल्के रूप में करें ताकि पानी खेत में न ठहरे।
खेत निराई-गुड़ाई, फसल कटाई और इसका भंडारण
दरअसल, पहले सिंचाई के बाद निराई और गुड़ाई करनी चाहिए। गुड़ाई के समय थोड़ी मिट्टी पौधे पर चढ़ानी चाहिए। जिससे कि फली लगने पर पौधे को सहारा मिल सके। फसल उगने के पहले पेन्डीमेथलीन का छिड़काव (3.3 लीटर/हेक्टर) करके खरपतवार नियंत्रण कर लें |
जब फलियां पक जाएं तो फसल काटनी चाहिए। अधिक सूखने पर फलियां चटकने लगती हैं। मड़ाई या कटाई करके दाना को बाहर निकाल लेते हैं।